राष्ट्रनायक न्यूज

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राजनेताओं की महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ रहा लोकतंत्र, हर जगह ‘एक अनार सौ बीमार वाली’ स्थिति

राष्ट्रनायक न्यूज। कोरोना महामारी और वैक्सीनेशन को लेकर चल रही राजनीति के बीच देश में कई और चीजों पर चर्चा लगातार गर्म है। इन सब के बीच कई राज्यों में राजनीतिक उठापटक भी देखने को मिल रही है। कांग्रेस के लिए यह चुनौती पंजाब और राजस्थान में ज्यादा है तो वहीं भाजपा उत्तराखंड और त्रिपुरा को लेकर परेशानी का सामना कर रही है। आनन-फानन में तो भाजपा को उत्तराखंड में अपना एक बार फिर से मुख्यमंत्री तक बदलना पड़ा। इस सप्ताह हमने चाय पर समीक्षा कार्यक्रम में इन्हीं विषयों पर बात की। हमने बात की किस तरह से देश में राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से नेताओं में असंतुष्टि बढ़ती जा रही है। महत्वाकांक्षा की वजह से राजनीतिक अस्थिरता का खतरा भी सामने आ रहा है। इसी विषय पर बात रखते हुए प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि राजनीतिक अस्थिरता लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा नेताओं में संभव है परंतु उन्हें धैर्य भी रखना चाहिए ताकि लोकतंत्र मजबूत रहें। पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस संकट को लेकर नीरज कुमार दुबे ने साफ तौर पर आलाकमान पर सवाल उठाया।

चुनाव चाहे लोकसभा के हों या विधानसभा के, जनता अब जागरूक हो चुकी है और उसने स्पष्ट बहुमत देना शुरू कर दिया है ताकि स्थायी सरकार बने और राज्य तथा देश के विकास के लिए कार्य करे। डेढ़-दो दशक पूर्व केंद्र और राज्यों में गठबंधन सरकारों के बोलबाले होने के चलते भ्रष्टाचार भी बढ़ा और राजनीतिक अस्थिरता की कीमत भी देश ने चुकाई। गठबंधन सरकार को बचाये रखने के लिए सहयोगियों की बेमानी माँगें भी अक्सर माननी पड़ती थीं जिससे देश की छवि खराब हुई। अब सवाल आता है कि जनता तो जागरूक हो गयी और स्पष्ट बहुमत वाली सरकार देना शुरू कर दिया फिर क्यों राजनीतिक संकट खड़ा हो जाता है? यह इसलिए होता है क्योंकि शीर्ष पद पाने की महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही है। इसीलिए अधिकतर राज्यों में सत्तारुढ़ दलों में आपस में ही घमासान मचा हुआ है और कमोबेश हर दल इस समस्या से जूझ रहा है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार को राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मुलाकात कर अपना इस्तीफा उन्हें सौंप दिया। दिल्ली से लेकर देहरादून तक दिन भर चली मुलाकातों और बैठकों के दौर के बाद रावत ने रात करीब साढ़े गयारह बजे अपने मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ राज्यपाल से मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंपा। इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री रावत ने संवाददाताओं को बताया कि उनके इस्तीफा देने का मुख्य कारण संवैधानिक संकट था, जिसमें निर्वाचन आयोग के लिए चुनाव कराना मुश्किल था। तीरथ सिंह रावत किसी सदन के सदस्य नहीं थे और ऐसे में वर्तमान हालात को देखते हुए उपचुनाव होना भी मुश्किल लग रहा था। पौड़ी से लोकसभा सदस्य रावत ने इस वर्ष 10 मार्च को मुख्यमंत्री का पद संभाला था और संवैधानिक बाध्यता के तहत उन्हें छह माह के भीतर यानी 10 सितंबर से पहले विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना था। जनप्रतिनिधित्?व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के मुताबिक निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्?यों के विधायी सदनों में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्ते किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्?य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो।

यही कानूनी बाध्यता मुख्यमंत्री के विधानसभा पहुंचने में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में सामने आई। क्योंकि विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचा है। वैसे भी कोविड महामारी के कारण भी फिलहाल चुनाव की परिस्थितियां नहीं बन पायीं। कुछ ऐसी ही परिस्थिति का सामना पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को करना पड़ सकता है। ममता बनर्जी भी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं। ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थीं। उन्हें अपने शपथ लेने के 6 महीने के भीतर सदन का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता भी है। ममता बनर्जी ने उपचुनाव लड़ने के लिए अपनी पुरानी भवानीपुर सीट खाली भी करा ली है। लेकिन वह विधानसभा का सदस्य तभी बन पाएगीं जब अवधि के अंदर चुनाव कराए जाएंगे। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। पंजाब, राजस्थान या फिर छत्तीसगढ़, हर जगह पार्टी के अंदर अंतर्कलह की खबरें लगातार आ रही हैं। भले ही बागी नवजोत सिंह सिद्धू को मनाने की कोशिश की जा रही है लेकिन सब कुछ ठीक-ठाक होता दिखाई नहीं दे रहा है। 2 दिन दिल्ली में डटे रहने के बाद सिद्धू की मुलाकात आलाकमान से होती है। लेकिन क्या उनकी शिकायतों को लेकर कोई निष्कर्ष निकल पाया यह अभी भी किसी को पता नहीं। दूसरी ओर कैप्टन अमरिंदर सिंह विधायकों की लॉबिंग करने में जुट गए हैं। यही कारण है कि अमरिंदर ने लंच डिप्लोमेसी के जरिए अपने कुनबे को मजबूत करने की कोशिश की। लिहाजा, पंजाब में कांग्रेस के अंदर जो तकरार की स्थिति है वह आलाकमान के हस्तक्षेप के बावजूद जस के तस नजर आ रही है।

मीडिया की खबरों में एक बात और भी चल रहा था कि आलाकमान से मुलाकात के बाद सिद्धू को लेकर निर्णय लिए जा चुके है। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। चंडीगढ़ में लैंड होने के साथ ही सिद्धू अमरिंदर पर हमलावर दिखे और बिजली के बहाने सरकार को करंट देने की कोशिश की प्रताप सिंह बाजवा और सुनील जाखड़ की भी पंजाब में अलग गुटबाजी है। पंजाब को लेकर फॉमूर्ला तलाशने की कोशिश भी जारी है। लेकिन सब कुछ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के इर्द-गिर्द ही घूमता दिखाई दे रहा है। खबर यह भी रही कि काफी मान-मनौव्वल के बाद राहुल गांधी सिद्धू से मिलने को तैयार हुए। यानि कि सिद्धू को लेकर राहुल के अंदर नाराजगी भी है। सूत्र यह दावा कर रहे हैं कि सिद्धू को अमरिंदर कैबिनेट में डिप्टी सीएम के पद के अलावा आगामी चुनाव के मद्देनजर प्रचार कमेटी का अध्यक्ष और टिकट वितरण कमेटी का हिस्सा बनाया जा सकता है। लेकिन अमरिंदर सिद्धू को ज्यादा महत्वपूर्ण पद देने के खिलाफ हैं। यही कारण है कि वह विधायकों को लामबंद करने की कोशिश में हैं।

एक महीने के भीतर एक बार फिर से राजस्थान का विवाद सामने आने लगा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का टकराव एक बार फिर मीडिया की सुर्खियों में है। भले आलाकमान वहां सब कुछ ठीक-ठाक होने का दावा कर रहा हो लेकिन यह बात भी सच है कि पायलट खेमे के विधायक मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। पायलट गुट के विधायक एक बार फिर से दिल्ली पहुंच गए हैं। इसमें 15 नेताओं के शामिल होने की बात कही जा रही है। विधायकों की मांग लगातार आलाकमान से मिलने की है। यह नेता लगातार अशोक गहलोत और उनकी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं। हालांकि वर्तमान में देखें तो सचिन पायलट चुप्पी साधे हुए हैं। कांग्रेस की सबसे बड़ी मौजूदा परेशानी यह है कि वह राज्यों में उत्पन्न होने वाली अंतर्कलह और गुटबाजी को कंट्रोल करने में नाकाम साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ से भी ऐसी ही खबर है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिल रही है। भले ही टकराव यह स्वास्थ्य पॉलिसी को लेकर कहीं जा रही है। लेकिन सूत्र यह दावा कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में जो आलाकमान की ओर से ढाई-ढाई साल का मुख्यमंत्री का फामूर्ला रखा गया था उस पर अमल नहीं हो रहा है। यह बात या तो आलाकमान को पता है या फिर भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव को।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने उत्तर प्रदेश में सत्ता हासिल करने का एक नया ही फॉमूर्ला दे दिया है। प्रदेश में भागीदारी मोर्चा के नाम से एक नया संगठन बना है। इस मोर्चे से जुड़े ओम प्रकाश राजभर ने कहा है कि वो सत्ता में आए तो पांच साल में पांच मुख्यमंत्री और 20 उपमुख्यमंत्री बनाएंगे। मतलब ये कि 10 दलों से मिलकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने वाले ओम प्रकाश राजभर की सरकार आई तो 75 जिलों वाले यूपी में पांच मुख्यमंत्री होंगे और हर साल 4 उपमुख्यमंत्री होंगे। पांच साल में 20 उपमुख्यमंत्री होंगे। वो भी धर्म और जाति के हिसाब से। राजभर को पूरा भरोसा है कि यूपी की विधानसभा चुनाव में बीजेपी वाले, कांग्रेस वाले, बसपा वाले सब ताकते रह जाएंगे और राजभर सरकार बनाएंगे। भागीदारी संकल्प मोर्चा में ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल और पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के नेतृत्व वाली जन अधिकार मंच के साथ कई छोटी-छोटी पार्टियां शामिल हैं। यूपी के विधानसभा चुनाव में सभी 403 सीटों पर लड़ने का ऐलान किया और साथ में सरकार बनाने का दावा भी किया है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कर्नाटक इकाई के उपाध्यक्ष बी वाई विजयेंद्र ने कहा कि उनके पिता एवं मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा को पद से हटाने की मांग करने वाले पार्टी नेताओं के एक धड़े की मुहिम का अध्याय अब बंद हो चुका है। विजयेंद्र से सवाल किया गया था कि क्या राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे संबंधी अध्याय अब बंद हो चुका है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि बिल्कुल। अब कोई इस बारे में बात नहीं कर रहा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय महासचिव और कर्नाटक प्रभारी अरुण सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि येदियुरप्पा अच्छे से प्रशासन चला रहे हैं और भाजपा सरकार उनके नेतृत्व में कार्यकाल पूरा करेगी। उन्होंने कहा कि जब राष्ट्रीय नेताओं, राज्य भाजपा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ने भी यह कह दिया है कि वह (येदियुरप्पा) आगामी दो साल के लिए इस पद पर बने रहेंगे, तो (नेतृत्व में बदलाव का) मामला बार-बार उठाने की आवश्यकता नहीं है।

यह पूछे जाने पर कि कुछ भाजपा नेता आए दिन दिल्ली क्यों जा रहे हैं, विजयेंद्र ने कहा कि किसी पर कोई प्रतिबंध नहीं है और उनकी यात्रा को राजनीतिक रंग देना सही नहीं है, क्योंकि वे नेता वहां अपने निजी काम के लिए जाते हैं। इस महीने की शुरूआत में अरुण सिंह तीन दिनों के लिए बेंगलुरु में थे और उन्होंने येदियुरप्पा को हटाने की कुछ नेताओं की मांग की पृष्ठभूमि में मंत्रियों, विधायकों, पार्टी नेताओं और भाजपा राज्य कोर कमेटी के सदस्यों के साथ कई बैठकें कीं। कर्नाटक कांग्रेस में ह्लअंदरूनी कलहह्व के बारे में विजयेंद्र ने कहा कि यह हास्यास्पद है कि कांग्रेस में इस बात को लेकर लड़ाई चल रही है कि पार्टी से अगला मुख्यमंत्री कौन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोविड ??-19 महामारी से पीड़ित लोगों के लिए काम करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय कांग्रेस नेता आपस में लड़ रहे हैं। कुछ कांग्रेस विधायकों ने कहा है कि यदि 2023 के अगले विधानसभा चुनाव मेंकांग्रेस सत्ता में आती है तो वे राज्य का नेतृत्व करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को समर्थन देंगे, जबकि कुछ नेताओं का कहना है कि वे राज्य पार्टी प्रमुख डी के शिवकुमार को समर्थन देंगे। कांग्रेस विधायकों के इन्हीं बयानों का जिक्र करते हुए विजयेंद्र ने यह बात कही।

कांग्रेस ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर ‘सत्ता की बंदरबांट’ करने का आरोप लगाया और दावा किया कि ह्लखिलौनों की तरह मुख्यमंत्री बदलनेह्व के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जिम्मेदार हैं। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अब उत्तराखंड की जनता चुनाव का इंतजार कर रही है ताकि वह स्थिर और प्रगतिशील सरकार के लिए कांग्रेस को मौका दे सके। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘उत्तराखंड की देवभूमि, भाजपा की सत्ता की लालच, सत्ता की मलाई के लिए होड़ और भाजपा की विफलता का उदाहरण बनती जा रही है।’’ सुरजेवाला ने दावा किया, ‘‘राज्य के लोगों ने पूर्ण बहुमत देकर भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया, लेकिन भाजपा ने सिर्फ सत्ता की मलाई बांटने और सत्ता की बंदरबाट करने का काम किया। भाजपा के लिए यह अवसर सत्ता की मलाई चखने का अवसर बन गया।’’ उन्होंने दिल्ली, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में अतीत की भाजपा सरकारों में कई मुख्यमंत्रियों को बदलने जाने का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘भाजपा का एक ही

कार्यकाल में मुख्यमंत्री बदलने का इतिहास है। भाजपा खिलौनों की तरह मुख्यमंत्री बदलती है। यही उत्तराखंड में हो रहा है।’’ सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि इस स्थिति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा जिम्मेदार हैं। उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘भाजपा ने उत्तराखंड में पहले भी तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले थे और इस बार भी तीसरा मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी में हैं। हम तो कहेंगे कि अगले छह महीनों में दो-तीन और बदल दीजिए ताकि देश में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री बदलने का रिकॉर्ड बन जाए।’’ कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने आरोप लगाया, ‘‘यह भाजपा नेतृत्व की लापरवाही और नासमझी है। एक ऐसे मुख्यमंत्री को उत्तराखंड पर थोपा गया कि जो विधानसभा का सदस्य नहीं है। भाजपा ने खुशहाल देवभूमि को बदहाल करने के लिए यह सब किया है।’’

अंकित सिंह

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