राष्ट्रनायक न्यूज

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उच्च शिक्षा का भविष्य: शिक्षा व्यवस्था के भावी नियोजकों के लिए बड़ी चुनौती

राष्ट्रनायक न्यूज। इस कोरोना काल में किसी भी परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी है। किंतु इस कोरोना प्रभावित समय में भी देश की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के कार्यान्वयन का कार्य जारी है। विभिन्न राज्य सरकारों ने इसके लिए अपने यहां समितियां बनाकर कार्य प्रारंभ कर दिया है। अनेक विश्वविद्यालयों ने भी अपने यहां नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए समितियां, उप समितियां बनाकर इस नई शिक्षा नीति के तहत बदलाव करने एवं पाठ्यक्रम बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग लगातार इस प्रक्रिया को गति देने में लगा है। इतना तो तय है कि इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति से भारतीय शिक्षा व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन संभव हो सकेगा। ऐसा लगता है कि यह परिवर्तन सिर्फ ढांचागत परिवर्तन न होकर मूल्यों का परिवर्तन भी होगा। यों भी शिक्षा एक खास अर्थ में मानवीय एवं सामाजिक मूल्यों का प्रवाह भी है। इस नई शिक्षा नीति के तहत नई संस्थाएं बनने जा रही हैं। इसके तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की जगह उच्च शिक्षा आयोग (एचईसी) जैसी शीर्ष संस्था अस्तित्व में आएगी। इसके अलावा नेशनल रिसर्च फाउंडेशन जैसी कई अन्य संस्थाएं भी बनेंगी।

भारतीय शिक्षा व्यवस्था की शीर्ष संस्था उच्च शिक्षा आयोग के बनने से एक नए मूल्य ढांचे का निर्माण भी हो सकेगा। वैसे मूल्यों का यह ढांचा बिल्कुल नया तो नहीं होगा, बल्कि पहले से चले आ रहे शिक्षण मूल्यों के नैरंतर्य के साथ-साथ कुछ नए मूल्यों के जुड़ाव से ही इन नई संस्थाओं का स्वरूप विकसित हो सकेगा। उच्च शिक्षा आयोग के मूल्यगत निर्माण में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अब तक जिन मूल्यों का सृजन किया है, उनका भी जुड़ाव संभव है। जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी नई संस्था एकदम से शून्य में नहीं विकसित होती, उसे पहले से चली आ रही मूल्यगत परंपराओं के साथ भी संवाद करना होता है। यूजीसी ने अपने लंबे इतिहास में भारतीय शिक्षण के एक मूल्यबोध की निर्मिति एवं उसका सतत विकास किया है।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर शांति स्वरूप भटनागर से लेकर हुमायूं कबीर, डीएस कोठारी, प्रोफेसर यशपाल, डॉ. मनमोहन सिंह एवं वर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर डीपी सिंह के नेतृत्व में यूजीसी ने लगातार भारतीय उच्च शिक्षा में नया मूल्यबोध विकसित किया है। समावेशन, वंचितों का शिक्षा द्वारा सशक्तीकरण, समभाव, समरसता, उच्च राष्ट्रीय बोध, गुणात्मकता जैसे जनतांत्रिक एवं मानवीय मूल्य यूजीसी द्वारा उच्च शिक्षा में परिलक्षित होते रहे हैं। नई-नई योजनाएं, उनकी सतत मॉनिटरिंग, तथा उच्च शिक्षा का रचनात्मक व्यवस्थापन, जनतांत्रिक एवं उत्तरदायित्वपूर्ण शिक्षा-समाज बनाने की दिशा में बनती एवं विकसित होती रही है। उच्च शिक्षा के शोध, शिक्षण एवं व्यवस्थापन में यह आयोग लगातार रचनात्मक भूमिका निभाता रहा है।

देखना यह है कि नई संस्था किसी प्रकार इसे अतीत न बनने दे। पहले से चले आ रहे मूल्य बोधों का नए मूल्य बोधों के साथ समन्वय प्रस्तावित संस्थाओं के आधार होंगे। पुराने को नया होना है, जिन्हें भारतीय पारंपरिक विमर्श में पुनर्नवा होने की प्रक्रिया भी कहते हैं। यह पुनर्नवा की प्रक्रिया शिक्षण संस्थाओं के निर्माण में भी घटित होना है। यूजीसी जिन सकारात्मक मूल्य बोधों को अपने भीतर संचित करती आई है, उनका समावेशन उच्च शिक्षा आयोग में हो पाए, यह शिक्षा व्यवस्था के भावी नियोजकों के लिए बड़ी चुनौती होगी।

ऐसा विश्वास है कि पहले से चले आ रहे शिक्षा-मूल्यों के साथ भारतीय परंपरा बोध, भारतीय जमीन से उपजी अंतर्दृष्टि, आधुनिकता एवं परंपरा के गहन संवाद से उपजे मूल्यबोध शैक्षणिक मूल्य-जगत के साथ मिलकर भारतीय उच्च शिक्षा को स्वरूप दे पाएंगे। उच्च शिक्षा आयोग एक प्रकार से उच्च शिक्षा में पहले से चले आ रहे मूल्यों एवं नए मूल्यों के रचनात्मक सम्मिलन की संस्था बन पाएगी, यह एक चुनौती भी है और आशा भी। देखना यह है कि भारतीय शिक्षा का भविष्य कैसे अपनी चुनौतियों का सामना करते हुए नया वर्तमान रच पाता है।

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