राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

स्वस्थ औसत आयु के लिहाज से महिलाएं और पुरुष लगभग एक ही श्रेणी में हैं

राष्ट्रनायक न्यूज। वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिस्टिक्स रिपोर्ट 2021 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में औसत आयु तो बढ़ रही है, पर स्वस्थ औसत आयु में वैसी बढ़ोतरी नहीं दिख रही। वैश्विक औसत आयु 73.3 वर्ष है तो स्वस्थ औसत आयु 63.7 वर्ष। यानी दोनों के बीच करीब नौ साल का अंतर है। इसका साफ मतलब यह हुआ कि लोगों के जीवन के आखिरी दस साल तरह-तरह की बीमारियों, तकलीफों एवं झंझावतों के बीच गुजरते हैं। बुजुर्ग आबादी के स्वास्थ्य का पहलू बहुत महत्वपूर्ण है। जीवन लम्बा होकर सुखद एवं स्वस्थ नहीं बन पा रहा है, यह चिन्ताजनक स्थिति है, यह स्थिति शासन-व्यवस्थाओं पर एक प्रश्नचिन्ह है। वार्धक्य पश्चाताप नहीं, वरदान बने, इस पर व्यापक कार्य-योजना देश एवं दुनिया के स्तर पर बननी चाहिए।

इस रिपोर्ट में महिलाओं और पुरुषों की औसत आयु और उनके स्वास्थ्य से जुड़े कुछ पहलुओं पर नए सिरे से विचार की जरूरत बताई है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में महिलाओं की औसत आयु पुरुषों के मुकाबले अधिक है। वे अपेक्षाकृत ज्यादा लंबा जीवन जीती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि स्वास्थ्य के मामले में भी वे पुरुषों से बेहतर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अगर बात औसत स्वस्थ आयु की हो तो महिलाओं और पुरुषों के बीच का यह अंतर काफी कम हो जाता है। स्वस्थ औसत आयु के लिहाज से महिलाएं और पुरुष करीब-करीब एक जैसी ही स्थिति में हैं। यानी जीवन के आखिरी हिस्से में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों का स्वास्थ्य ज्यादा कमजोर एवं अनेक परेशानियां से संकुल होता है। अपने देश में भी औसत आयु के मामले में पुरुषों से तीन साल आगे दिखती महिलाएं स्वस्थ औसत आयु का सवाल उठने पर पुरुषों के समकक्ष नजर आने लगती हैं।

वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिस्टिक्स रिपोर्ट 2021 के सन्दर्भ में विचारणीय विषय है कि औसत आयु बढ़ने के साथ-साथ स्वस्थ एवं सुखी औसत आयु क्यों नहीं बढ़ रही है। इस सन्दर्भ में चिकित्सा-सोच के साथ-साथ अन्य पहलुओं पर गौर करने की अपेक्षा है। इस दृष्टि से सही ही कहा है कि इंसान के जीवन पर उसकी सोच का गहरा असर होता है और जैसी जिसकी सोच होगी वैसा ही उसका जीवन होगा। इसी वजह से ह्लथिंक पॉजिटिवह्व यानी ह्लसकारात्मक सोचिएह्व, यह केवल कहावत नहीं है, बल्कि स्वस्थ एवं सुखी जीवन का अमोघ साधन है। सकारात्मक सोच तब होती है जब आप सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ चुनौतियों का सामना करते हैं। यदि आप एक सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति हैं तो आप जानते हैं कि जीवन में नकारात्मक परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाए।

जीवन बाधाओं और चुनौतियों से भरा है, लेकिन अगर आप अपनी मानसिकता को बदल सकते हैं और अधिक सकारात्मक बन सकते हैं, तो यह वास्तव में आपकी स्वास्थ्य सहित कई चीजों में मदद कर सकता है। यह जीवन की सच्चाई है और अब विशेषज्ञों ने भी अपने शोध में साबित किया है कि अगर व्यक्ति जीवन में सकारात्मक सोच रखता है तो स्वस्थ और लंबा जीवन जी सकता है। पॉजिटिव सोच रखने वाले लोग खुश रहते हैं और खुश रहना एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। येल यूनिवर्सिटी के शोधकतार्ओं ने 600 से अधिक लोगों की मृत्यु दर पर जांच की, जिन्होंने सर्वेक्षण के सवालों का जवाब कुछ 20 साल पहले दिया था, जब उनकी उम्र 50 साल की थी। शोधकतार्ओं ने पाया कि कुछ लोग इस तरह के बयानों से सहमत थे, जैसे ‘मेरे बूढ़े होने पर चीजें और खराब हो रही हैं’ और ‘जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, आप कम उपयोगी होते हैं।’ वहीं कुछ इस तरह के बयानों से सहमत थे कि ‘जब मैं छोटा था तब मैं भी उतना ही खुश था।‘ पाया गया कि उम्र बढ़ने पर अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण वाले लोग नकारात्मक लोगों की तुलना में औसतन 7.5 वर्ष लम्बा, स्वस्थ एवं सुखी जीवन जीया था।

ऐसे ही बोस्टन यूनिवर्सिटी द्वारा किये गये अध्ययन में कहा गया कि लंबी उम्र का राज अच्छी सेहत, संतुलित जीवनशैली और बिना किसी अक्षमता के जीना है, लेकिन सिर्फ नजरिया बदलकर भी अच्छी सेहत पाई जा सकती है और इससे उम्र बढ़ जाती है। शोध में शामिल प्रतिभागियों की औसतन उम्र 70 साल थी। शोध में करीब 70 हजार महिलाओं और 1429 पुरुषों को शामिल किया गया था। नकारात्मक सोच वालों की तुलना में सकारात्मक लोगों के उम्र की संभावना 15 प्रतिशत ज्यादा पाई गई। नयी रिपोर्ट के अनुसार अब हमारी औसत आयु बढ़ रही है तो उस जीवन में सकारात्मकता की ज्यादा अपेक्षा है।

सकारात्मकता और हमारी इम्यूनिटी यानी रोगों से लड़ने की क्षमता (प्रतिरक्षा) के बीच गहरा संबंध हैं। एक शोध में 124 प्रतिभागियों ने भाग लिया और आशावादी सोच दिखाने वाले लोगों में अधिक रोगप्रतिरोधक क्षमता दिखाई दी। जिनका नकारात्मक दृष्टिकोण था, उन्होंने अपनी रोगप्रतिरोधक प्रणाली की प्रतिक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव दिखाया। शोध यह भी दशार्ता है कि नकारात्मक दृष्टिकोण होने से आप अनेक असाध्य बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि सकारात्मक सोच वास्तव में आपको आघात या संकट से जल्दी उबरने में मदद कर सकती है। सकारात्मक सोच आपको अधिक लचीला बनाने में मदद कर सकती है, जो इन कठिन परिस्थितियों का सामना करने में मददगार हो सकता है। तनाव वास्तव में स्वास्थ्य समस्याओं का कारक माना जाता है। सकारात्मक सोच हमारे तनाव के स्तर को सही तरीके से मैनेज करने और कम करने में मदद करता है। अगर किसी भी परिस्थिति में जल्द घबरा जाते हैं तो सबसे पहले नकारात्मकता हावी है जिससे तनाव होना तय है और तनाव के साथ उच्च रक्तचाप की शिकायत रहेगी। अगर किसी भी परिस्थिति में सकारात्मक रहकर डटे रहे तो तनाव नहीं होगा और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहेगा।

वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिस्टिक्स रिपोर्ट 2021 की रिपोर्ट में वृद्ध आबादी के स्वास्थ्य से जुड़े प्रश्नों को प्रमुखता से उजागर किया है। महिलाओं की वृद्धावस्था में गिरती स्वास्थ्य स्थितियां विशेषज्ञों की नजरों से अछूती नहीं रही है, यह अच्छी बात है। परिवार में पितृसत्तात्मक सोच के प्रभाव में महिलाओं के स्वास्थ्य को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती। खाने-पीने के मामले में भी महिलाएं खुद को पीछे रखना उपयुक्त मानती हैं। इसके अलावा आर्थिक आत्मनिर्भरता के अभाव में स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलाओं की सीधी पहुंच अमूमन नहीं हो पाती। जैसे-जैसे महिलाओं की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, इस मोर्चे पर सुधार की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन जहां तक वैश्विक स्तर पर औसत आयु और स्वस्थ औसत आयु में अंतर का सवाल है तो वहां मामला सरकार की नीतियों और योजनाओं की दिशा का भी है। विभिन्न सरकारों का ही नहीं वैश्विक स्तर पर मेडिकल रिसर्चों के लिए होने वाली फंडिंग में भी जोर मौत के कारणों को समझने और दूर करने पर रहता है जिसका पॉजिटिव नतीजा औसत आयु में बढ़ोतरी के रूप में नजर आता है। अब जरूरत बुजुर्ग आबादी को होने वाली बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करने की है ताकि उसे उन बीमारियों बचाने के उपाय समय रहते किए जा सकें। तभी हम अपने बुजुर्गों के लिए लंबा और साथ ही अच्छी सेहत से युक्त सुखी एवं प्रसन्न जीवन सुनिश्चित कर पाएंगे।

ललित गर्ग

You may have missed