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बदलते मौसम में अधिक सावधान रहने की जरूरत, बच्चों का रखें विशेष ख्याल : सिविल सर्जन

  • साफ-सफाई का रखें विशेष ध्यान, मास्क और शारीरिक दूरी के नियम का करते रहें पालन
  • संक्रमण काल में बारिश के मौसम को लेकर सतर्कता जरूरी
  • सरकारी चिकित्सा संस्थानों में रोग की जांच व उचित इलाज का है प्रबंध

किशनगंज , 18 जुलाई। जिले में मानसून सक्रिय हो चुका है। हर दिन होने वाली बारिश के कारण जगह-जगह जलजमाव की समस्या खड़ी होने लगी है| सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन बताते है बारिश का मौसम अपने साथ ढेरों बीमारियां भी लाता है| वहीं इस मौसम में संक्रमण का भी खतरा बढ़ जाता है| बरसात के मौसम में उमस होती और अचानक बदलाव होता है| इस वजह से सर्दी-जुकाम, खांसी, बुखार और फ्लू जैसी दिक्कऔतें बढ़ जाती हैं| इस बार तो कोरोना की दूसरी लहर पहले से ही सामने है| ऐसे में इस बार मौसमी बीमारियों से कहीं ज्याअदा सावधान रहने की जरूरत है| अपनी खान-पान की आदतों का ख्या ल रखना है और बाहर निकलने से पहले भी काफी सावधानिया बरतनी हैं| ऐसे में बरसात में तले-भुने और मांसाहारी आहारों के सेवन से बचें, क्योंकि इस समय बैक्टीरिया हावी होते हैं |

मौसम में होने वाली बीमारियों का इलाज समय से कराया जाए:

सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने बताया बदलते मौसम में होने वाली बीमारियों का इलाज समय से कराया जाए| समय पर इलाज नहीं होने से यह भयावह रूप भी ले सकती हैं। मौसमी बीमारियां होने पर समय पर बेहतर उपचार करवाना चाहिए। बच्चों के बीमार होने पर इलाज में कतई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, अन्यथा तबीयत ज्यादा बिगड़ सकती है। इसके अलावा बदलते मौसम में खानपान व पहनावे पर भी ध्यान देना जरूरी है। इन दिनों करीब 15 से 20 फीसद छोटे बच्चों को श्वसन संबंधी संक्रमण (रेस्पिरेटरी इंफेक्शन) के साथ कफ व खांसी जैसी बीमारियां होती हैं। तापमान में अंतर के अलावा लोगों पर प्रदूषण का भी काफी प्रभाव पड़ रहा है। प्रदूषण के कारण धूल के कण सांस की नली के जरिए शरीर के अंदर तक पहुंच जाते हैं। इससे गले में खराश हो जाती है।

इम्युनिटी बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार का सेवन एवं देसी नुस्खे अपनाकर स्वस्थ रह सकते है :

सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने बताया इस बदलते मौसम में खुद को संक्रमण से बचाने के लिए रोज सुबह एक लौंग खाएं। ताजा बना गर्म खाना ही खाएं। इससे शरीर डी में रक्तसंचार अच्छा बना रहता है। मेथी के दाने के नियमित सेवन से अस्थमा, गठिया, कफ और गैस की समस्या जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है। इस बात का खास ख्याल रखें कि मौसम चाहे कोई भी हो, पानी हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है। इसलिए हर रोज कम से कम आठ से दस ग्लास पानी जरूर पीएं। खाने में पपीता, कद्दू, गाजर, टमाटर, पालक व अमरूद जैसे मौसमी फलों और सब्जियों को जरूर शामिल करें। इनसे शरीर का तापमान भी मौसम के मुताबिक बना रहेगा। अंकुरित अनाजों में काफी मात्रा में फाइबर और प्रोटीन होते हैं, जिनके सेवन से काफी एनर्जी मिलती है। लहसुन सर्दी-जुकाम और कफ जैसी समस्या का कारगर इलाज है। आंवला, संतरा, नींबू और इमली जैसे विटामिन-सी युक्त फल भरपूर मात्रा में लें।, बदलते मौसम में कई तरह की मौसमी बीमारियों के होने की भी संभावना काफी बढ़ जाती है। जैसे कि एलर्जी, सर्दी-खाँसी, बुखार सहित अन्य वायरल टाइप की बीमारियों की भी चपेट में लोग आ जाते हैं। इसलिए इससे बचाव के लिए हरी सब्जी, दाल, साग समेत अन्य पौष्टिक आहार का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें। बच्चों का सही पोषण का उनके माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों को विशेष ख्याल रखना चाहिए और ससमय खाना खिलाना चाहिए।

बीमारियों के संक्रमण से बचने के लिए साफ -सफाई का भी रखें विशेष ख्याल :

उन्होंने बताया कि सभी तरह की बीमारियों के संक्रमण से बचने के लिए सभी लोग साफ-सफाई का भी विशेष ख्याल रखें और घर से लेकर आसपास के जगहों पर भी साफ-सफाई का विशेष ध्यान दें। ब्लीचिंग पाउडर का नियमित रूप से छिड़काव कराएँ | साथ ही आसपास के लोगों को भी साफ- सफाई के प्रति जागरूक करें। इसके अलावा रहन-सहन के तरीके में भी बदलाव लायें । जो हमें बीमारी के दायरे से बचाये एवं हम अस्पताल जाने से बचें।

शरीर में पानी की नहीं होने दें कमी:

उन्होंने बताया कि शरीर में पानी की कमी होने के कारण भी तरह- तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए शरीर में पानी की कमी नहीं होने दें। इसके लिए लगातार शुद्ध पानी पीयें और बाहर निकलने यानी यात्रा के दौरान पानी साथ लेकर चलें।

स्वास्थ्य संस्थानों में नि:शुल्क जांच व इलाज का है इंतजाम :

सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने बताया की जिले में सदर अस्पताल समेत सभी प्राथमिक एवं सामुदायिक सरकारी अस्पतालों में इन्फ्लूएंजा , डेंगू व चिकनगुनिया रोग की जांच व समुचित इलाज का प्रबंध है। सरकारी अस्पतालों में होने वाले एलाइजा टेस्ट डेंगू की पहचान के लिये बेहद उपयोगी है। जांच में रोग की पुष्टि होने पर सरकारी अस्पतालों में इलाज का बेहतर प्रबंध उपलब्ध है। वहीं निजी चिकित्सा संस्थानों में जांच के लिये एनएस-1 किट उपयोग में लाया जाता है। लिहाजा सही समय पर रोग की पहचान करते हुए उचित इलाज करना जरूरी है।