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अदालत ने देशमुख के खिलाफ जांच में सीबीआई से दस्तावेज साझा नहीं करने पर सवाल किया

मुंबई, (एजेंसी)। बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ जांच के लिए कुछ दस्तावेजों को सीबीआई के साथ साझा करने से राज्य सरकार के इनकार करने पर शुक्रवार को सवाल उठाया। अदालत ने कहा कि जब तक दस्तावेजों को नहीं देखा जाता है केंद्रीय एजेंसी यह कैसे तय कर सकती है कि पुलिस तबादलों और पोस्टिंग में कथित भ्रष्टाचार को लेकर उनके साथ कोई साठगांठ हुई थी या नहीं। राज्य सरकार ने पूर्व में दावा किया था कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा मांगे गए दस्तावेजों का देशमुख के खिलाफ एजेंसी की भ्रष्टाचार जांच से कोई संबंध नहीं है।

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पीठ सीबीआई की एक अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। इस अर्जी में आरोप लगाया गया है कि सरकार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता देशमुख के खिलाफ जांच के संबंध में कुछ दस्तावेज सौंपने से इनकार करके सहयोग नहीं कर रही है। सीबीआई की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने शुक्रवार को कहा कि सरकार दस्तावेजों को सौंपने से इनकार करके उच्च न्यायालय के जुलाई के आदेश की अवमानना कर रही है, जिसमें कहा गया था कि एजेंसी के पास पुलिसकर्मियों के तबादले और पुलिस अधिकारी सचिन वाजे की बहाली में भ्रष्टाचार की जांच करने का अधिकार है।

पीठ ने कहा कि इससे पहले राज्य सरकार ने कहा था कि वह किसी भी जांच के खिलाफ नहीं है। न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ह्यह्यअब राज्य सरकार विरोध क्यों कर रही है? हमारे पास कोई शब्द नहीं है। क्या राज्य सरकार को ऐसा करना चाहिए?ह्णह्ण राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रफीक दादा ने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने यह नहीं कहा था कि सरकार दस्तावेज देने के लिए बाध्य है और वास्तव में कहा था कि सीबीआई को केवल उन पहलुओं की जांच करनी चाहिए जिनका देशमुख और उनके सहयोगियों के साथ संबंध है। अदालत ने कहा, ह्यह्यजब तक सीबीआई दस्तावेजों को नहीं देखती, वे (सीबीआई) कैसे तय करेंगे कि कोई सांठगांठ हुई या नहीं। हमने केवल इतना कहा कि सीबीआई के पास अन्य तबादलों की जांच करने का निरंकुश अधिकार नहीं है। लेकिन वे जो दस्तावेज मांग रहे हैं, वे पुलिस तबादलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रश्मि शुक्ला (आईपीएस अधिकारी) द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट से संबंधित हैं।

न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ह्यह्यहमारा मानना है कि इन दस्तावेजों पर आप (सरकार) आपत्ति नहीं कर सकते। अनिल देशमुख जिस समय गृह मंत्री का कार्यभार संभाल रहे थे, उस समय के दस्तावेजों की आवश्यकता हो सकती है।ह्णह्ण अदालत ने रफीक दादा को महाराष्ट्र सरकार से निर्देश लेने का निर्देश दिया कि वह सीबीआई के साथ कौन से दस्तावेज साझा करने को तैयार है। अदालत ने कहा, ह्यह्यदोनों राज्य और केंद्र की एजेंसियां हैं। ऐसे कई मौके आते हैं जब जानकारी साझा की जाती है। हमें उन दस्तावेजों की सूची बताएं जिन्हें आप (राज्य सरकार) साझा करना चाहते हैं। यह एक अनुकूल और सुखद स्थिति की ओर ले जाएगा।ह्णह्ण पीठ मामले में आगे 24 अगस्त को सुनवाई करेगी। सीबीआई ने पिछले महीने दाखिल अर्जी में कहा था कि उसने राज्य के खुफिया विभाग (एसआईडी) को एक पत्र लिखा था जिसमें भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की वरिष्ठ अधिकारी रश्मि शुक्ला द्वारा पुलिसकर्मियों के तबादलों और पोस्टिंग में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भेजे गए एक पत्र का विवरण मांगा गया था, लेकिन एसआईडी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया यह मामले में जांच का हिस्सा है। सीबीआई ने 21 अप्रैल को देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी।