राष्ट्रनायक न्यूज।
कोटा, राजस्थान, भारत, सहित पुरे विश्व भ्रमण पर, पृथक-पृथक पुस्तकों के नामचीन लेखक डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल की नई पुस्तक “विश्व रेगिस्तान का इंद्र धनुष” निश्चित तोर पर देश विदेश के पर्यटकों को रेगिस्तानी क्षेत्र के प्रति फैली हुई भ्रांतियों को दूर कर उन्हें पर्टयन सेर सपाटे की दृष्टि से रेगिस्तानों के भ्रमण के लिए आकर्षित करने के लिए काफी है। सहयोगी लेखक के रूप में, प्रोफेसर प्रमोद कुमार सिंघल ने पर्यटन के साथ इसमें भौगोलिक तथ्यों को जोड़कर इस पुस्तक लेखन के सुर ताल मिला दिए हैं जिससे यह पुस्तक रेगिस्तानी इतिहास का दस्तावेज बन गया है। वीएसआरडी एकेडमिक पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को आकर्षक चित्रों के साथ 198 पृष्ट में समेट दिया है।
पुस्तक में विश्व रेगिस्तान सहित भारत के मनभावन थार रेगिस्तान, जैसलमेर रेत का समंदर, बाड़मेर मरुभूमि का कमल, बीकानेर रेत के धोरों में ऊंटों का देश, जोधपुर मरुस्थल का प्रवेश द्वार, श्री गंगानगर मरुस्थल बना धन का कटोरा, हनुमानगढ़ सिंध सभ्यता का केंद्र, सीकर कला और शौर्य की भूमि, झुंझुनू ओपन आर्ट गेलेरी, चूरू चित्रात्मक हवेलियां, नागौर मरुस्थल में मध्यकलीन वैभव, पाली जैन मंदिरों का आकर्षण, जालोर प्रकृति और धर्म का संगम एवं पुष्कर मरुस्थल का मजा संबंधित अध्यायों में रेगिस्तान के वैभव, विकास, सौंदर्य, को एक इंद्रधनुष जैसा सुंदर बनाकर प्रस्तुत किया गया है।
पुस्तक को पढ़कर निश्चित तोर पर पर्यटकों का रेगिस्तान के प्रति आकर्षण हो जाना लाजमी सा है। पुस्तक रेगिस्तान के बदलते हालातों, सुख सुविधाओं, इतिहास मामले में शोध कर रहे छात्र-छात्राओं के लिए बहु उपयोगी है जबकि प्रतियोगी परीक्षा में भी यह भागीदारों के लिए ज्ञानवर्धक होने से उपयोगी है। पुस्तक के लेखन के लिए दोनों लेखकों को बधाई। प्रकृति भी अजीब है, कहीं पानी है, कहीं पहाड़, कहीं समुन्द्र तो कहीं, जंगल है, तो कहीं रेत के, नमक के, बर्फ के रेगिस्तान हैं, यही ईश्वर की लीला है। भूगोल के तथ्यों को अगर हमे देखे तो प्रकृति के बदलाव और बदलते स्वरूप के चलते यह सब सदियों से हो रहा है। निश्चय ही विश्व रेगिस्तान का इंद्र धनुष शीर्षक पुस्तक प्रकाशन के लिए जो चुना है वह अद्भुत है, अभिभूत कर देने वाला है।
इस पुस्तक के जरिये देश, विदेश के सभी रेगिस्तानों की कहानियों और उनके भूगोल से पाठकों को परिचित करने का सफलतम प्रयास किया है। विश्व के सबसे बडे़ रेगिस्तान से लेकर भारत के थार के मरुस्थल, गुजरात में कच्छ के नमक के मरुस्थल, और लद्दख में बर्फ का रेगिस्तान सहित देश विदेश के कई स्थानों पर बर्फ के रेगिस्तान के बारे में बहुउपयोगी, सारगर्भित जानकारियां समाहित की गई हैं। रेगिस्तान के बारे में दिमाग में आते ही मरू भूमि, मरुस्थल, यानी, ऐसी भूमि जो मर गयी है, निरुपयोगी है, उसका कोई उपयोग नहीं हैं, वहां ना कोई जिंदगी है ना ही फसल है बस यही एक सच कभी दिमाग में रहा कर ता था लेकिन प्रकृति के बदलाव, मानव के अविष्कारों में, कुदरत के चमत्कारों ने, रेगिस्तानों को अब मुर्दा नहीं रखा है। हर रेगिस्तान में जिंदगियाँ बसने लगी हैं, खूबूसरत नजारे हैं, इनका अपना इतिहास, अपनी संस्कृति है। यहाँ अब जन जीवन भी है, जल है और अब पर्यटन की दृष्टि से रेगिस्तान का सफर जिसे सफारी सफर कहते हैं रंगबिरंगा आकर्षक हो गया है। यकीनन खूबूसरत जिंदगियाँ इन रेत के ढेरों में ही बस्ती हैं। यह अब मरू भूमि, मरुस्थल नहीं, जीवन भूमि , जीवन स्थल बन गए हैं और रंगबिरंगे इंद्र धनुष बन गए हैं। किसी शायर ने क्या खूब कहा है क्या खूब होता “अगर यादें रेत होतीं, मुट्ठी से गिरा देते, पाँव से उड़ा देते”।
अख्तर खान अकेला
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