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गैंगस्टर विकास दुबे इनकाउंटर मामला, आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की

नई दिल्ली, (एजेंसी)। उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए गैंगस्टर विकास दुबे और पांच अन्य के मारे जाने के एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने गुरुवार को राज्य विधानसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएस चौहान और इलाहाबाद एचसी के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति शशि कांत अग्रवाल और यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता और अन्य सदस्यों की अध्यक्षता में यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि दुबे और उनके गिरोह को लेकर पर्याप्त सबूत थे। स्थानीय पुलिस, राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों के दूबे से मिलीभगत की जांच की जाएगी। पिछले साल 3 जुलाई को दुबे को गिरफ्तार करने कानपुर के बिकरू गांव में गई एक पुलिस टीम पर गोलियां चलाई गई। घात लगाकर किए गए हमले में पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। प्राथमिकी में नामित 21 लोगों में से दुबे सहित छह आरोपियों को अगले हफ्तों में मुठभेड़ों में मार दिया गया।

दुबे का था दबदबा: आयोग की रिपोर्ट में दुबे और अधिकारियों के बीच मिलीभगत की बात कही गई है, पुलिस और राजस्व अधिकारियों ने उसे और उसके गिरोह को संरक्षण दिया, यदि किसी व्यक्ति ने विकास दुबे या उसके साथियों के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज कराई तो शिकायतकर्ता को हमेशा पुलिस द्वारा अपमानित किया जाता था। यहां तक कि अगर उच्च अधिकारियों ने शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया, तो स्थानीय पुलिस ने शर्तों को निर्धारित किया, रिपोर्ट में कहा गया है कि दुबे की पत्नी के जिला पंचायत सदस्य चुनाव और उसके भाई की पत्नी को गांव के प्रधान के रूप में चुनाव लड़ना, इशारा करता है कि स्थानीय स्तर पर दुबे का दबदबा था।

अधिकारियों ने दिखाई लापरवाही: उसके खिलाफ दर्ज किसी भी मामले में जांच कभी भी निष्पक्ष नहीं थी। चार्जशीट दाखिल करने से पहले गंभीर अपराधों से संबंधित धाराओं को हटा दिया गया था। सुनवाई के दौरान ज्यादातर गवाह मुकर जाते थे। विकास दुबे और उसके सहयोगियों को अदालतों से आसानी से और जल्दी जमानत के आदेश मिल गए, क्योंकि राज्य के अधिकारियों और सरकारी अधिवक्ताओं द्वारा कोई विरोध नहीं किया गया था। अधिकारियों ने कभी भी अभियोजन के लिए विशेष वकील को नियुक्ति नहीं की, राज्य ने कभी भी जमानत रद्द करने के लिए कोई आवेदन नहीं किया, ना ही जमानत आदेश को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

दुबे से मिले हुए पुलिस कर्मियों पर होगी कार्यवाही: रिपोर्ट में कहा गया है कि चौबेपुर पुलिस स्टेशन में तैनात कुछ पुलिस कर्मियों ने, दुबे को छापे के बारे में बताया था। छापेमारी की तैयारी में कोई उचित सावधानी नहीं बरती गई और किसी भी पुलिसकर्मी ने बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहनी हुई थी। उनमें से केवल 18 के पास हथियार थे, बाकी खाली हाथ या लाठियों के साथ गए थे। रिपोर्ट ने दुबे के साथ मिले हुए दोषी लोक सेवकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की है।

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