राष्ट्रनायक न्यूज।
हिंदू धर्म में हरियाली तीज के बाद आने वाली कजरी तीज का भी विशेष महत्व है। यह व्रत सुगहिन महिलाओं और कुँवारी कन्याओं के लिए बहुत खास होता है। इस दिन विवाहित महिलाऐं भगवान शिव और माता पार्वती के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 25 अगस्त (बुधवार) को मनाया जाएगा। इस व्रत को कजली तीज, सातूड़ी तीज और बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत देशभर में, खास तौर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान समेत देश के कई राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कजरी तीज का व्रत रखकर सुहागन स्त्रियां भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं और अखंड सौभाग्य का वरदान मांगती हैं। इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन भी सुखमय बना रहता है और जीवन में किसी प्रकार की समस्या नहीं आती है।
कजरी तीज शुभ मुहूर्त
- तृतीया तिथि प्रारम्भ झ्र अगस्त 24, 2021 को शाम 04 बजकर 04 मिनट से
- तृतीया तिथि समाप्त झ्र अगस्त 25, 2021 को शाम 04 बजकर 18 मिनट तक
- कजरी तीज पर बन रहा है यह शुभ योग
- इस बार कजरी तीज के दिन यानी 25 अगस्त को सुबह 05 बजकर 57 मिनट तक धृति योग रहेगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस योग को बेहद शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस योग में किए गए कामों में सफलता हासिल होती है।
कजरी तीज की पूजन विधि
कजरी तीज का व्रत करने वाली स्त्रियों को सुबह जल्दी उठकर, स्नान करने के बाद नए वस्त्र धारण करने चाहिए और श्रृंगार करना चाहिए। इस व्रत में शाम को नीमड़ी माता की पूजा की जाती है। पूजन करने के लिए मिट्टी व गोबर से दीवार के किनारे तालाब के जैसी आकृति बनाई जाती है। घी और गुड़ से पाल बांधा जाता है और उसके पास नीम की टहनी को रोपा जाता है। जो तालाब के जैसी आकृति बनाई जाती है उसमें कच्चा दूध और जल डाला जाता है। फिर दिया प्रज्वलित किया जाता है। थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि पूजा सामाग्री रखी जाती है। शाम के समय में नीमड़ माता की पूजा करने से पहले रोली और जल से छिंटे मारकर माता का आह्वावहन करें। इसके बाद नीमड़ माता की पीछे की दीवार पर मेंहदी, रोली और कुमकुम से 13-13 बिंदियां लगाएं। बिंदियां लगाने के बाद अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली से काजल की बिंदी लगाएं। इसके बाद नीमड़ माता को रोली,वस्त्र और श्रृंगार आदि की वस्तुएं अर्पित करें। यह सभी वस्तुएं अर्पित करने के बाद कलश पर रोली बांधे और माता को फूलों के साथ कुछ दक्षिणा भी चढ़ाएं। सभी पूजा विधि पूरी करने के बाद किसी तालाब, नदी या बहते जल के पास जाकर एक दीपक जलाएं। दीपक जलाने के बाद उसकी रोशनी में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ और साड़ी के पल्लु में चंद्रमा को देखते हुए अर्घ्य दें।
– प्रिया मिश्रा


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