राष्ट्रनायक न्यूज

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कोरोना का प्रकोप: खुल रहे स्कूल, फिर अपनी कक्षा में छात्र

राष्ट्रनायक न्यूज।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आज यानी एक सितंबर से नौवीं से बारहवीं तक कीकक्षाएं, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और कोचिंग संस्थाएं फिर से शुरू हो रही हैं। कोविड-19 की वजह से पूरे देश में शिक्षण संस्थाओं को बंद करना पड़ा था, लेकिन जुलाई और अगस्त के दौरान कई राज्यों में स्कूलों और कॉलेजों में पचास फीसदी उपस्थिति तथा कोविड प्रोटोकॉल के साथ कक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। दिल्ली के अलावा आज से पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी पहली से पांचवीं कक्षा तक के स्कूल फिर से खुल रहे हैं। इसी तरह से हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु सहित अनेक राज्यों में भी आज से स्कूल दोबारा खुल रहे हैं।

अन्य राज्यों की तरह ही दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने विद्यार्थियों, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। इसके तहत कक्षाओं में पचास फीसदी बच्चे ही उपस्थित हो सकेंगे। उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे अन्य विद्यार्थियों के साथ अपना भोजन, किताबें या स्टेशनरी वगैरह साझा न करें। भोजनवाकाश के दौरान बच्चे बंद कमरे के बजाय खुले क्षेत्र में भोजन करें। यदि कोई अभिभावक अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजना चाहता है, तो उसे इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। हम देखेंगे कि यह सब कैसे होता है। मुझे लगता है कि यह अच्छी खबर है, क्योंकि महामारी की वजह से लंबे समय तक स्कूल बंद रहे, जिससे बच्चों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। खासतौर से गरीब और वंचित परिवारों के बच्चों पर, जिनकी स्कूल तक पहुंच बहुत सीमित है।

हाल ही में हरियाणा के ग्रामीण इलाके के प्रवास के दौरान मेरी मुलाकात एक किशोरी से हुई, जो कि सड़क किनारे ताजा अमरूद बेच रही थी। हम एक गांव में थे और भूखे थे, लेकिन आसपास कोई ढाबा नजर नहीं आ रहा था। उस लड़की ने हमें अपनी टोकरी से कुछ अच्छे अमरूद निकालकर दिए। उससे बात करते हुए पता चला कि ‘कोरोना’ के कारण उसकी स्कूल की पढ़ाई छूट गई! वजह? क्योंकि घर में अलग से कोई स्मार्ट फोन नहीं था, जिससे वह पढ़ाई जारी रख पाती।

दरअसल यह कहानी पूरे देश के लाखों बच्चों की कहानी हो सकती है। आइए, इसे देखने की कोशिश करते हैं। इतने लंबे समय तक स्कूलों के बंद रहने के कारण भारत एक विनाशकारी शिक्षा आपातकाल की ओर बढ़ सकता है और संभव है कि लाखों बच्चे सीखने की प्रक्रिया से वंचित हो जाएं। ऑनलाइन शिक्षा ने निश्चित रूप से बच्चों की मदद की है, लेकिन महामारी ने हमारे डिजिटल इंडिया कथानक की दरारों को भी उजागर किया है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन बताता है कि तकरीबन साठ फीसदी बच्चे ऑनलाइन सीखने के अवसरों का लाभ नहीं उठा सकते। इसके कारणों में स्मार्टफोन का अभाव, भाई-बहनों के साथ एक ही स्मार्टफोन को साझा करना, लर्निंग एप के इस्तेमाल में दिक्कतें, इत्यादि शामिल हैं। ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंच दिव्यांग बच्चों के लिए और भी मुश्किल हो जाती है। जमीनी अध्ययन में पाया गया कि नौ फीसदी से अधिक दिव्यांग बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने में असमर्थ थे।

अनेक राज्य सरकारों ने शिक्षा, महिला, बाल, युवा तथा खेल मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति की हाल की उस रिपोर्ट के बाद भौतिक उपस्थिति के साथ कक्षाएं शुरू करने का फैसला किया, जिसने सीखने की गंभीर हानि को चिन्हित किया, जो कि विद्यार्थियों की ज्ञानात्मक क्षमता को क्षीण कर सकती है। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया कि एक वर्ष से अधिक समय तक की सीखने की हानि खासतौर से गणित, विज्ञान और भाषा के मामले में अनिवार्य रूप से विद्यार्थियों के बुनियादी ज्ञान को नुकसान पहुंचा सकती है।

इसके दीर्घकालिक कमजोर करने वाले निहितार्थ हैं, विशेष रूप से गरीब पृष्ठभूमि, ग्रामीण समुदायों और हाशिये के समूहों के बच्चों के लिए, जो महामारी के दौरान किसी भी प्रकार की डिजिटल शिक्षा से जुड़ने में असमर्थ रहे होंगे। यह अच्छी बात है कि जमीनी स्तर पर समस्या की गंभीरता को अब पहचाना जा रहा है। हालांकि, चुनौतियां बनी हुई हैं, और अब भी कई भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस ओर इशारा कर रहे हैं कि स्कूलों को फिर से खोलने के बारे में सार्वजनिक बहस को अनावश्यक रूप से बच्चों के टीकाकरण के मुद्दे से जोड़ा जा रहा है।

जाने-माने महामारी विशेषज्ञ तथा जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. चंद्रकांत लहरिया कहते हैं, ‘स्कूल दोबारा खोलने से पहले बच्चों का टीकाकरण अनिवार्य नहीं है। महामारी जब शुरू हुई थी और उसके सत्तरह महीने बाद अब हम स्कूल दोबारा खोलने के मद्देनजर कोविड-19 से संबंधित एहतियात के बारे में बहुत कुछ जान चुके हैं। घरों में सीमित रहने के दौरान बच्चों में भी वयस्कों जैसा कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया।’ लहरिया ने जोर देकर कहा कि संक्रमण अकेले चिंता का विषय नहीं है, जब तक कि वह गंभीर रूप न ले।

अब हम जानते हैं कि बच्चों में हलके से गंभीर संक्रमण विकसित करने का जोखिम कम है- वयस्कों की तुलना में सैकड़ों, हजारों गुना कम- लेकिन स्कूल बंद होने से उन्हें सीखने और पोषण की हानि के रूप में कहीं अधिक नुकसान हो रहा है। निस्संदेह भारत अकेला ऐसा देश नहीं है, जो महामारी के मद्देनजर डिजिटल डिवाइड और सीखने के संकट से जूझ रहा है, लेकिन हमें खराब स्थिति को और बदतर नहीं होने देना चाहिए। स्कूलों को फिर से खोलना बहुत जरूरी है और इसके साथ ही महामारी से जुड़ी वास्तविकताओं के कारण कई बदलाव भी करने होंगे। जैसा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, हर स्कूल में कक्षा के अंदर उचित वेंटिलेशन और दूरी के साथ बैठने की व्यवस्था के लिए संरचनात्मक बदलाव की जरूरत होगी। सेनेटाइजेशन की समुचित व्यवस्था भी करनी होगी। स्कूलों को क्रमिक रूप से खोलना चाहिए, और स्थानीय जमीनी हकीकत को ध्यान में रखकर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए। हम अपने बच्चों को निराश नहीं कर सकते।

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