राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

तालिबान चाहे तो नया इस्लामी लोकतंत्र स्थापित कर अपनी छवि सुधार सकता है

राष्ट्रनायक न्यूज।
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को एकदम मान्यता देने को कोई भी देश तैयार नहीं दिखता। इस बार तो 1996 की तरह सउदी अरब और यूएई ने भी कोई उत्साह नहीं दिखाया। अकेला पाकिस्तान ऐसा दिख रहा है, जो उसे मान्यता देने को तैयार बैठा है। अपने जासूसी मुखिया ले. जनरल फैज हमीद को काबुल भेज दिया है। यह मान्यता देने से भी ज्यादा है। सभी राष्ट्र, यहां तक कि पाकिस्तान भी कह रहा है कि काबुल में एक मिली-जुली सर्वसमावेशी सरकार बननी चाहिए। जो चीन बराबर तालिबान की पीठ ठोंक रहा है और जो मोटी पूंजी अफगानिस्तान में लगाने का वादा कर रहा है, वह भी आतंकवादरहित और मिली-जुली सरकार की वकालत कर रहा है लेकिन मैं समझता हूं कि सबसे पते की बात ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कही है।

उन्होंने कहा है कि काबुल में कोई भी सरकार बने, वह जनता द्वारा चुनी जानी चाहिए। उनकी यह मांग अत्यंत तर्कसंगत है। मैंने भी महीने भर में कई बार लिखा है कि काबुल में संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना एक साल के लिए भेजी जाए और उसकी देखरेख में चुनाव के द्वारा लोकप्रिय सरकार कायम की जाए। यदि अभी कोई समावेशी सरकार बनती है और वह टिकती है तो यह काम वह भी करवा सकती है। जो कट्टर तालिबानी तत्व हैं, वे यह क्यों नहीं समझते कि ईरान में भी इस्लामी सरकार है या नहीं ? यह इस्लामी सरकार आयतुल्लाह खुमैनी के आह्वान पर शाहे-ईरान के खिलाफ लाई गई थी या नहीं ? शाह भी अशरफ गनी की तरह भागे थे या नहीं? इसके बावजूद ईरान में जो सरकारें बनती हैं, वे चुनाव के द्वारा बनती हैं। ईरान ने इस्लाम और लोकतंत्र का पर्याप्त समन्वय करने की कोशिश की है। ऐसा काम और इससे बढ़िया काम तालिबानी चाहें तो अफगानिस्तान में करके दिखा सकते हैं।

हामिद करजई और अशरफ गनी को अफगान जनता ने चुनकर ही अपना राष्ट्रपति बनाया था। पठानों की आर्य काल की परंपराओं में सबसे शानदार परंपरा लोया जिरगा की है। लोया जिरगा याने महा सभा! सभी कबीलों के प्रतिनिधियों की लोकसभा। यह पश्तून कानून याने पश्तूनवली का महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह ‘सभा’ और ‘समिति’ की आर्य परंपरा का पश्तो नाम है। यही लोया जिरगा अब आधुनिक काल में लोकसभा बन सकती है। बादशाह अमानुल्लाह (1919-29) और जाहिरशाह (1933-1973) ने कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर लोया जिरगा आयोजित की थी। पिछले 300 साल में दर्जनों बार लोया जिरगा समवेत की गई है। इस महान परंपरा को नियमित चुनाव का रूप यह तालिबान सरकार दे दे, ऐसी कोशिश सभी राष्ट्र क्यों न करें ? इससे अफगानिस्तान और इस्लाम दोनों की इज्जत में चार चांद जुड़ जाएंगे। बहुत-से इस्लामी देशों के लिए अफगानिस्तान प्रेरणा का स्त्रोत भी बन जाएगा।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

You may have missed