नई दिल्ली, (एजेंसी)। 5 तारीख को हुई मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत के बाद अब इसका सियासी गणित लगना भी शुरू हो गया है। एक तरफ सत्तारूढ़ भाजपा है तो दूसरी तरफ आंदोलित किसान और उनको मजबूती देती सभी विपक्षी राजनीतिक पार्टियां। महापंचायत के बाद ऐसा नजर आ रहा है कि भाजपा के सामने सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर सत्ता की लगाम साधने के लिए तैयार हो रहे हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में पश्चिम के 14 जिलों की विधानसभा सीटों पर भाजपा ने 52 सीटों पर अकेले अपने विजय पताका फहराई थी। बागपत जिले में रालोद ने तो जरूर अपना खाता खोला था, लेकिन कालांतर में वह सीट भी भाजपा के पाले में आ गई। पश्चिम में सपा बसपा और कांग्रेस 19 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी। अब यदि 2022 को लेकर विपक्ष एकजुटता दिखाता है तो भाजपा का का यह गढ भी खतरे में पड़ता नजर आएगा।
भाजपा का पुरजोर दावा है कि, किसान आंदोलन का कोई असर पश्चिम उत्तर प्रदेश में उसके जनाधार पर नहीं पड़ेगा। उनका मानना है की पहले भी पश्चिम पर फतह हासिल की थी, इस बार भी पश्चिम को बेहतर तरीके से जीतेंगे। पश्चिम क्षेत्र ने 2017 में प्रदेश में भाजपा को सत्ता दिलाने में एक अहम भूमिका निभाई थी, क्योंकि पश्चिम क्षेत्र के 3 मंडल मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद के 14 जिलों में भाजपा को बड़ी बढ़त मिली थी। यहाँ की कुल 71 सीटों में से 52 सीटों पर भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की स्थिति यहां पर अच्छी रही थी। अब जब 2022 का विधानसभा चुनाव चुनाव सिर पर है तो भाजपा को घेरने की जबरदस्त कोशिश की जा रही है। जिसमें किसान आंदोलन को एक मजबूत और बड़ा हथियार माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर 9 महीने से भी ज्यादा से डटे किसानों के आंदोलन को करीब-करीब सभी विपक्षी दलों का समर्थन मिल रहा है। रालोद तो खुलकर किसान आंदोलन के साथ है। सपा नेताओं ने भी किसानों के समर्थन में लगातार प्रदर्शन कर आंदोलन को और मजबूती देने का काम किया है। कांग्रेस तो सड़क से संसद तक इस मुद्दे पर सरकार को घेरती रही है। यदा कद ही सही बसपा भी किसानों के समर्थन में अपना पक्ष रखती चली आ रही है।


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