राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

पुत्र की जीवन रक्षा के उद्देश्य से किया जाता है जीवत्पुत्रिका व्रत, जानिये व्रत कथा

राष्ट्रनायक न्यूज।
यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की जीवन रक्षा के उद्देश्य से करती हैं। स्त्री समाज में इस व्रत का बड़ा महत्व तथा सम्मान है। स्त्रियां इस व्रत को निर्जल रहकर करती हैं और 24 घंटे के उपवास के बाद की व्रत का पारण करती हैं। सप्तमी के दिन उड़द की दाल भिगोई जाती है कुछ लोग उसमें गेहूं भी मिला देते हैं। अष्टमी के दिन प्रात: काल व्रती स्त्रियां उनमें से कुछ दाने साबुत ही निकल जाती हैं। इसके बाद ना कुछ खाती हैं और ना ही जल आदि पीती हैं। इस दिन उड़द तथा गेहूं के दान का बड़ा महत्व है।

जीवत्पुत्रिका व्रत कथा: जीभूतवाहन नामक राजा बड़े दयालु और धर्मात्मा थे। एक दिन वह पर्वत पर घूमने गए। उस पर्वत पर मलयवती नामक राजकन्या देव पूजन के लिए आई हुई थी। एक दूसरे को देखते ही उन्हें प्रेम हो गया। परस्पर प्रेम प्रदर्शन का यह दृश्य राजकुमारी के भाई ने देख लिया था। राजकुमारी अपने भाई के साथ लौट गई। जब राजा जीभूतवाहन पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे तभी उन्हें अचानक किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। वह आवाज की ओर चल दिए। थोड़ी दूर जाकर उन्होंने देखा कि शंखचूड़ सांप की मां रो रही है। उन्होंने उससे रोने का कारण पूछा तो ज्ञात हुआ कि उसका एकमात्र पुत्र आज गरुड़ के भोजन के लिए जाने वाला है। जीभूतवाहन का हृदय द्रवित हो गया। वे स्वयं गरुड़ के भोजन के लिए नियत स्थान पर जाकर लेट गए। नियत समय पर आकर गरुड़ ने जीभूतवाहन पर चोंच से प्रहार किया किंतु वे शांत भाव से पड़े रहे। गरुड़ को आश्चर्य हुआ, वह सोचने लगा यह कौन पड़ा हुआ है। जब गरुड़ ने उन्हें खाना बंद कर दिया तो जीभूतवाहन ने पूछा आपने खाना बंद क्यों कर दिया मेरी नसों में अभी रक्त प्रवाहित हो रहा है। मेरे शरीर पर अब भी मांस है।

गरुड़ राजा जीभूतवाहन को पहचान कर पश्चाताप करने लगा और शांत भाव से सोचने लगा यह तो दूसरे के लिए प्राण दे रहा है और एक मैं हूं कि प्रतिदिन अपनी भूख मिटाने के लिए दूसरों के प्राण हर लेता हूं। यह सोचते हुए गरुड़ ने अपने कलंकित रूप के दर्शन किए उसने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए राजा से वर मांगने को कहा। तब राजा ने कहा कि आज तक आपने जितने भी सांप मारे हैं उन सब को जीवित कर के भविष्य में सांप ना खाने की प्रतीक्षा कीजिए। गरुड़ ने तथास्तु कहकर अपना धर्म निभाया। जिस समय यह घटना घट रही थी उसी समय राजकुमारी के पिता तथा भाई राजा जीभूतवाहन की खोज करते करते वहां पहुंचे थे। इस घटना से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने राजकन्या का विवाह उनसे कर दिया। उस दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी थी।

जीवत्पुत्रिका व्रत से संबंधित अन्य कथा: महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों की अनुपस्थिति में कृतवर्मा कृपाचार्य के साथ अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में प्रवेश करके वहां के अनेक सैनिकों को मार डाला। अश्वत्थामा ने सोए हुए द्रोपदी के पुत्रों को पांडव समझा और उनके सिर काट लिए। दूसरे दिन अर्जुन ने केशव को सारथि बनाकर अश्वत्थामा का पीछा किया और बंदी बना लिया। धर्मराज युधिष्ठिर के आदेश तथा श्री कृष्ण के परामर्श से उसके सिर की मणि लेकर तथा केश मूंडकर गुरुपुत्र अश्वत्थामा को बंधन मुक्त कर दिया गया। अश्वत्थामा ने इस अपमान का बदला लेने के भाव से अमोघ अस्त्र का प्रयोग पांडवों की वंश उत्तरा के गर्भ पर किया। पांडव उस अस्त्र का प्रतिकार ना कर सके। उन्होंने केशव की शरण ली। भगवान ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के उदर में प्रवेश कर के गर्भ की रक्षा की। किंतु जब पुत्र पैदा हुआ तो वह मृतप्राय था। भगवान ने उसे प्राण दिया। वही पुत्र पांडव वंश का भावी कर्णधार परीक्षित हुआ। परीक्षित को इस प्रकार जीवन दान देने के कारण ही इस व्रत का नाम जीवत्पुत्रिका पड़ा है। व्रतियों द्वारा उड़दों को निगलना श्री कृष्ण का सूक्ष्म रूप में उदर प्रवेश माना जाता है।

शुभा दुबे

You may have missed