नई दिल्ली, (एजेंसी)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज देश के नाम अपना संबोधन दिया। अपने संबोधन की शुरूआत प्रधानमंत्री ने संस्कृत के एक श्लोक से किया। 100 करोड़ वैक्सीनेशन की सफलता को देशवासियों की सफलता बताते हुए पीएम ने लोगों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि हमारे देश ने एक तरफ कर्तव्य का पालन किया, तो दूसरी तरफ उसे सफलता भी मिली। कल भारत ने 100 करोड़ वैक्सीन डोज का कठिन लेकिन असाधारण लक्ष्य प्राप्त किया है। इस उपलब्धि के पीछे 130 करोड़ देशवासियों की कर्तव्यशक्ति लगी है इसलिए ये सफलता हर देशवासी की सफलता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 100 करोड़ वैक्सीनेशन सिर्फ आंकड़ा नहीं है बल्कि एक राष्ट्र के रूप में हमारी क्षमता को दशार्ती है। यह नए भारत को चित्रित करता है जो कठिन लक्ष्य निर्धारित करना और उन्हें प्राप्त करना जानता है। यह इतिहास का एक नया अध्याय है। यह दशार्ता है कि देश अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए कड़ी मेहनत करता है। मोदी ने कहा कि आज कई लोग भारत के वैक्सीनेशन प्रोग्राम की तुलना दुनिया के दूसरे देशों से कर रहे हैं। भारत ने जिस तेजी से 100 करोड़ का, 1 बिलियन का आंकड़ा पार किया, उसकी सराहना भी हो रही है। लेकिन, इस विश्लेषण में एक बात अक्सर छूट जाती है कि हमने ये शुरूआत कहां से की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के दूसरे बड़े देशों के लिए वैक्सीन पर रिसर्च करना, वैक्सीन खोजना, इसमें दशकों से उनकी ी७स्री१३्र२ी थी। भारत, अधिकतर इन देशों की बनाई वैक्सीन्स पर ही निर्भर रहता था। जब 100 साल की सबसे बड़ी महामारी आई, तो भारत पर सवाल उठने लगे। क्या भारत इस वैश्विक महामारी से लड़ पाएगा? भारत दूसरे देशों से इतनी वैक्सीन खरीदने का पैसा कहां से लाएगा? भारत को वैक्सीन कब मिलेगी? उन्होंने कहा कि लोगों ने यह भी सवाल उठाए कि भारत के लोगों को वैक्सीन मिलेगी भी या नहीं? क्या भारत इतने लोगों को टीका लगा पाएगा कि महामारी को फैलने से रोक सके? भांति-भांति के सवाल थे, लेकिन आज ये 100 करोड़ वैक्सीन डोज, हर सवाल का जवाब दे रही है।


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