राष्ट्रनायक न्यूज

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ये हैं वो मंदिर, जहां देवता नहीं, दानवों की होती है पूजा

राष्ट्रनायक न्यूज।
भारतवर्ष की परंपरा में देवी देवताओं का बड़ा महत्व है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के संचालन के लिए तमाम देवता अलग-अलग रोल निभाते हैं। जैसे आग का कोई देवता है, बरसात का कोई देवता है। ऐसे ही प्रकाश फैलाने के लिए सूर्य देवता हैं। इसी प्रकार से जल के देवता हैं। अलग-अलग डिपार्टमेंट जिस प्रकार से किसी सरकार में बांटे जाते हैं, ठीक वैसे ही सृष्टि-सञ्चालन के लिए तमाम देवताओं के डिपार्टमेंट हैं। इसलिए इन की पूजा की जाती है, और इसलिए इनको शक्तिशाली भी माना जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि भारतवर्ष में जहां तमाम मंदिरों में देवताओं की पूजा होती है, वहां ऐसे प्राचीन मंदिर भी हैं, जहां देवता नहीं पूजे जाते हैं, बल्कि राक्षसों की पूजा होती है।

हिडिंबा टेंपल: महाभारत काल में महाशक्तिशाली भीम की पत्नी हिडिंबा का जिक्र आता है, जो राक्षसी थीं। इनका मंदिर हिमाचल प्रदेश के मनाली में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि हिडिंबा देवी के मंदिर में खून चढ़ाया जाता है, और इससे वह प्रसन्न भी होती हैं। हालांकि अंधविश्वास के लेवल पर देखा जाए तो ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि हिडिंबा ने राक्षस कुल की होते हुए भी धर्म का साथ दिया था, इसलिए उनकी पूजा की जाती है, जो न्यायोचित भी है।
पूतना मंदिर: यह उत्तर प्रदेश के गोकुल में स्थित है। पूतना राक्षसी का वर्णन भी द्वापर युग में आता है। पापी कंस के आदेश पर जब श्री कृष्ण भगवान को दूध पिलाते हुए उन्होंने प्रभु को मारने का प्रयत्न किया था, वह दृश्य याद करें। अपने स्तन में विष लगाकर कृष्ण भगवान को मारने के प्रयास में ही पूतना – वध हुआ था। राक्षसी पूतना की पूजा करने के पीछे यह कारण बताया जाता है कि चाहे विषपान करा कर ही सही, किंतु कृष्ण भगवान की मां के रूप में उन्होंने दूध पिलाया था, इसलिए उनकी पूजा की जाती है।

अहिरावण मंदिर: अहिरावण का जिक्र त्रेतायुग में आता है, जब राक्षसराज रावण, धर्म के प्रतीक राम और लक्ष्मण के मुकाबले कमजोर पड़ने लगे थे। तब उन्होंने मायावी राक्षस अहिरावण को आमंत्रित किया था, जिन्होंने राम एवं लक्ष्मण का अपहरण किया था। इनका मंदिर झांसी शहर के पंचकुइयां क्षेत्र में है, और यह तकरीबन 300 साल पुराना है। यह अपनी तरह का इकलौता मंदिर है।

शकुनी टेंपल: शकुनी को भला कौन नहीं जानता! छल, कपट, प्रपंच के माहिर के रूप में शकुनी पूरे महाभारत के कुख्यात चरित्रों में सबसे आगे खड़ा नजर आता है। मामा शकुनि का मंदिर केरल के कोल्लम जिले में बनाया गया है। इनके दर्शन करने वाले लोग इनको नारियल और रेशम के कपड़े चढ़ाते हैं, तो यहां पर तांत्रिक क्रियाएं भी संपन्न की जाती हैं।

दुर्योधन मंदिर: जी हां! केरल के कोल्लम जिले में ही शकुनि मंदिर से कुछ दूरी पर दुर्योधन का मंदिर भी है, जिसमें लोग पूजा-पाठ करते हैं। माना जाता है कि दुर्योधन बेशक कुरु वंश में जन्म लिया था, किंतु राक्षसी प्रवृत्ति का था। बावजूद इसके उसका मंदिर है और उसकी पूजा की जाती है।

रावण मंदिर: पौराणिक चरित्रों में सबसे खतरनाक राक्षस माने जाने वाले रावण के भी 2 मंदिर हैं। मध्य प्रदेश के विदिशा में और उत्तर प्रदेश के कानपुर में यहां पर रावण को पूजा जाता है। विदिशा जिले की नटेरन तहसील में रावण नाम का गांव भी है, और वहां जो रावण की प्रतिमा है, वह लेटी अवस्था में है। तमाम प्रयासों के बावजूद भी उसे कोई हिला नहीं पाया। माना जाता है कि इसी स्थान पर रावण बाबा की पूजा नहीं की तो कोई कार्य सफल नहीं होगा।
वहीं कानपुर के शिमला इलाके में 1890 में रावण का मंदिर बनाया गया, और यहां पर मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं। चूंकि रावण शिव भक्त भी था, इसलिए उसकी इस मंदिर में पूजा की जाती है। इन दोनों जगहों के अलावा भी उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव, जोधपुर, मंदसौर में रावण का मंदिर है, तो आंध्र प्रदेश के काकीनाडा शहर में भी समुद्र के किनारे रावण का मंदिर बना हुआ है।

निश्चित रूप से हर व्यक्ति के अंदर कुछ अच्छाई और बुराई होती है। देवताओं के अंदर भी बुराइयां होती हैं, उनमें भी अच्छाई की अधिकता होने के बावजूद भी कभी-कभी बुराई के प्रसंग भी मिलते हैं। इसी प्रकार से राक्षसों में भी तमाम बुराइयां होने के बावजूद भी एकाध अच्छाइयों के भी दर्शन हो जाते हैं। उनकी बहादुरी, उनकी भक्ति और संघर्ष करने की क्षमता से इंसान बहुत कुछ सीख सकता है।आप क्या कहते हैं, राक्षसों की बुराइयों को छोड़कर, क्या हमें उनकी अच्छाइयां सीखनी चाहिए या नहीं?

विंध्यवासिनी सिंह

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