नवजात शिशुओं के लिए बेहतर पोषण निमोनिया रोकथाम में कारगर: सिविल सर्जन
निमोनिया प्रबंधन को लेकर चलाया जा रहा है सांस कार्यक्रम: डीपीएम
पूर्णियां। बदलते मौसम की शुरुआत के बाद नवजात शिशुओं में निमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। कोविड-19 संक्रमण के इस दौर में नवजात शिशुओं में निमोनिया का संक्रमण उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे में निमोनिया को लेकर अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एक अध्ययन से इस बात की पुष्टि भी की गई है कि 5 वर्ष तक के बच्चों में निमोनिया मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। लिहाज़ा निमोनिया जैसी घातक बीमारी को लेकर प्रभावी नियंत्रण बहुत ही ज़्यादा जरूरी है। ताकि बच्चे में होने वाली मृत्यु दर को कम किया जा सकें। वहीं बाल स्वास्थ्य के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ वीपी राय का कहना है कि नवजात शिशुओं में निमोनिया होने के कई कारण होते हैं। लेकिन ग्रामीण परिवेश में घरेलू प्रदूषण निमोनिया का एक सबसे बड़ा व प्रमुख कारण है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि ग्रामीण इलाकों में लोग मच्छर भगाने के लिए घर में धुआं या मच्छर को भगाने के लिए अगरबत्ती का प्रयोग किया जाता है। जो कि यह सबसे ज्यादा खतरनाक साबित भी होता है। ठण्ड के मौसम में नवजात शिशुओं को गर्मी देने के लिए आग का सहारा भी लिया जाता हैं। जिस कारण आग जलने से काफ़ी मात्रा में धुआं निकलता है। जो बच्चों में निमोनिया का कारण भी बनता है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चे को निमोनिया से सुरक्षित रखने के लिए घरेलू प्रदूषण से बचना करना चाहिए।
नवजात शिशुओं के लिए बेहतर पोषण निमोनिया रोकथाम में कारगर: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ एसके वर्मा ने बताया नवजात शिशुओं में निमोनिया जैसी बीमारियों से बचाने के लिए पीसीवी का टीका दिया जाता है। ज़िले वासियों से अपील करते हुए कहा कि हम सभी को अपने बच्चे की सुरक्षा और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए यह टीका जरूर लगवाना चाहिए। साथ ही पेंटावेलेंट एवं मीजिल्स का भी टीका निमोनिया रोकथाम में काफ़ी मददगार साबित होता है। इसलिए हम सभी की यह जिम्मेदारी बनती है कि अपने बच्चों को सभी टीके समय पर लगवाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि बेहतर पोषण भी निमोनिया रोकथाम में कारगर होता है। नवजात शिशुओं को जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराना चाहिए। इसके बाद लगातार 6 महीने तक केवल मां का ही दूध शिशुओं को देना चाहिए। इसके साथ ही 6 महीने के बाद स्तनपान के साथ ही बच्चों को संपूरक आहार शुरू कर देना चाहिए। क्योंकि इससे बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है।
निमोनिया प्रबंधन को लेकर चलाया जा रहा है सांस कार्यक्रम: डीपीएम
डीपीएम स्वास्थ्य ब्रजेश कुमार सिंह ने बताया केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार की ओर से सामाजिक स्तर पर जागरूकता लाने के उद्देश्य से “सोशल अवेयरनेस एंड एक्शन प्लान टू नयूट्रीलाइज निमोनिया सक्सेसफुली (सांस) कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यह है कि राज्य के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में निमोनिया जैसी बीमारी से बचाव के लिए प्रबंधन को सुदृढ़ करना है। हालांकि इसको लेकर बिहार के 14 जिलों में सांस कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इसको लेकर फ्रंट लाइन वर्कर्स को प्रशिक्षित भी किया जा चुका है। प्रशिक्षण के दौरान उनलोगों को यह बताया गया है कि निमोनिया बीमारी की पूर्व में ही पहचान करने एवं मरीज की स्थिति को देखकर उचित उपचार के विषय में जानकारी दी जानी है। यह एक बहुत अच्छी पहल है। जिससे आने वाले दिनों में निमोनिया जैसी बीमारी पर प्रभावी रूप से नियंत्रण के साथ ही सफलता मिल सकती हैं। निमोनिया जैसी बीमारी की शिकायत अक्सर एक वर्ष से कम उम्र के नवजात शिशुओं को सबसे ज्यादा होती है। शिशुओं की देखभाल के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दिया जाए तो नवजात बच्चों को निमोनिया से बचाया जा सकता है।
निमोनिया से बचाव को लेकर निम्न उपाय:
- नवजात शिशुओं को हमेशा टोपी, मोजे व गर्म कपड़े पहनाकर रखें।
-अपने व बच्चों के हाथों की सफाई के साथ ही आस-पास की सफाई पर भी ध्यान दें।
– नवजात शिशुओं में सर्दी या खांसी के लक्षण दिखे तो आशा कार्यकर्ता या नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सकों से संपर्क स्थापित करें।
– मौसम परिवर्तन के साथ ही शिशुओं में बीमारियों की शुरुआत होती है।
-धातृ माताएं अपने शिशुओं को 6 माह तक नियमित रूप से केवल स्तनपान ही कराएं।
– घर के अंदर किसी भी तरह के धुआं से परहेज करना चाहिए। जबकिं बच्चे को धुएं वाली जगहों से दूर रखें।
-उल्टी, दस्त या बुखार होने पर बच्चों को तत्काल चिकित्सक के पास लेकर जाएं


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