नयी दिल्ली, (एजेंसी)। भारत के महानतम राष्ट्रपतियों में से एक प्रणब मुखर्जी का जन्म सामान्य से ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे और आजादी की लड़ाई में उन्होंने अपना योगदान दिया था। इसके अलावा पिता कामदा किंकर मुखर्जी पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 1964 तक सदस्य रहे थे। केंद्र में यूपीए की सरकार जाने के बाद साल 2014 में एनडीए ने सरकार का गठन किया और अभी भी एनडीए ही सरकार में मौजूद है। ऐसे समय में भारत रत्न से सम्मानित ‘प्रणब मुखर्जी’ के रिश्ते सभी दलों के साथ बेहतरीन थे। सबसे पहले भारत की आयरन लेडी और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की नजर प्रणब मुखर्जी पर पड़ी थी और उन्होंने ही उन्हें उच्च सदन का सदस्य बनवाया था। प्रणब ‘दा’ को इतिहास की थी अच्छी समक्ष: प्रणब मुखर्जी ने वीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज में पढ़ाई की और फिर उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री हासिल की। इसके साथ ही उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की थी। इतिहास के अच्छे जानकार रहे प्रणब मुखर्जी ने वकालत भी की है और कॉलेज प्राध्यापक भी रह चुके हैं। राजनीतिक सफर: साल 1969 में मेदिनीपुर उपचुनाव के दौरान प्रणब मुखर्जी ने एक निर्दलीय सदस्य के लिए चुनावी कैंपेन की थी। इसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की नजर उन पर पड़ी और फिर जुलाई 1969 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया। उनका राजनीतिक सफर करीब पांच दशक लंबा रहा है। अलग-अलग मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दे चुके प्रणब मुखर्जी ने कई महत्वपूर्ण टैक्स रिफॉर्म किए हैं। इसके अलावा वो योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
साल 1969 में राज्यसभा जाने वाले प्रणब मुखर्जी 1975, 1981, 1993 और 1999 में वापस राज्यसभा के लिए चयनित हुए। इंदिरा गांधी सरकार में ही उन्हें पहली बार 1973 में मंत्रिपद मिला था। इसके बाद उन्होंने कई मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दीं। साल 1980 में प्रणब मुखर्जी को सदन का नेता चुना गया। इसके बाद 1982 में वो पहली बार वित्त मंत्री बने थे। इसके बाद 1991 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार में प्रणब मुखर्जी का नाम गूंजा। उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसके बाद 1995-96 तक विदेश मंत्री , साल 2004-06 तक रक्षा मंत्री, 2006 में विदेश मंत्री, 2009-11 में वित्त मंत्री रहे।
कांग्रेसियों ने ही प्रणब ‘दा’ को बढ़ने से रोका था: प्रणब मुखर्जी पर सबसे ज्यादा भरोसा करने वाली इंदिरा गांधी के निधन के बाद एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया था। दरअसल, लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी के समर्थकों ने प्रणब मुखर्जी के खिलाफ मोचेर्बंदी कर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने दिया था और फिर कुछ वक्त बाद पार्टी से भी निकाल दिया गया। उत्तर भारत में एक कहावत बहुत आम है और अक्सर सुनाई भी देती है… कहते हैं- जहां चाह, वहां राह… प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया। हालांकि बाद में प्रणब मुखर्जी का राजीव गांधी के साथ समझौता हो गया और ससम्मान उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ। 31 अगस्त, 2020 को आखिरी सांस लेने वाले प्रणब मुखर्जी को यूपीए ने जून 2012 को राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया था। उनके सामने पूर्व लोकसभा स्पीकर पीए संगमा थे। 19 जुलाई को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान हुए और 22 जुलाई को परिणाम सामने आया था। जिसमें प्रणब मुखर्जी 7,13,763 वोट हासिल हुए और पीए संगमा को 3,15,987 वोट मिले। प्रणब मुखर्जी को भारत का 12वां राष्ट्रपति चुन लिया गया और 25 जुलाई को उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने शपथ दिलाई।
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