राष्ट्रनायक न्यूज। जश्ने फतह का दिन है आज। आज की तारीख (11 दिसम्बर 2021) विश्व इतिहास के पन्नों में वैसी ही दर्ज की जायेगी जिस प्रकार बडी़ बडी़ तहरीकों की तिथियाँ दर्ज होती हैं।युगों युगों तक और पीढी़ दर पीढी़, यह “11 दिसम्बर” भारत ही नहीं, दुनिया के मेहनतकशों को शिक्षित करता रहेगा कि दृढ़ प्रतिज्ञ, अनुशासित और संगठित आन्दोलन कभी हारता नहीं है, बल्कि बडे़ बडे़ तानाशाहों के गरुर और ऐंठन को तहे मिट्टी दफ़्न कर जीत का परचम लहरा देता है।
जो कल तक इस आन्दोलन को पानी पी पी कर गाली देते , बदनाम करते और नीचा दिखाते थे।आज उनकी हालत खीसीयानी बिल्ली के समान हो गयी है।कहते हैं ना,
” खीसीयानी बिल्ली खम्भा नोचे”।ठीक वैसा ही।पूछते हैं वो।क्या मिला ? दर असल सच्चाई यही है , उन्हें भी पता है कि जो भी मिला वह केवल किसानों को ही मिला।जीत मीली,
आत्मविश्वास मिला,अपनी ताकत का एहसास हुआ, जनतांत्रिक ताकतों तथा कौमी एकता को एक नयी उर्जा मीली, साम्प्रदायिकता के विरुद्ध एक प्रखर आवाज मीली और एक ऐसा इतिहास मिला जो संसार का पहला ईतिहास है।इस सच्चाई से भला कौन इन्कार कर सकता है, कि यह न केवल आन्दोलन की जीत है बल्कि सही मायने में देश के लोकतंत्र की भी जीत है। आप स्वयं स्मरण कर लिजिये , कृषि कानून बनाने की सारी प्रक्रियाएं, लोकतांत्रिक
मर्यादाओं को किस प्रकार रौंद रही थी तथा देश के संविधान का कितना माखौल उडा़ रही थी। एक और जीत है ।आईये उस पर भी निगाह डाल ही लेते हैं। अपनी किताब वी और आवर नेशनहुड डिफाइंड में गोलवलकर लिखते हैं–” एक अच्छे प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके राज्य में जनता की आमदनी कम से कम रहे।धनवान नागरिकों पर नियंत्रण करना कठिन होता है, इसलिए दौलत एक दो या अधिक से अधिक तीन ऐसे लोगों के हाथों में केंद्रित कर दी जानी चाहिए जो प्रशासक के प्रति बफादार हों ”
आप समझ सकते हैं कि किसान आन्दोलन के प्रति जिस रवैये का प्रदर्शन सरकार की ओर से हो रहा था, उसमें केवल मोदी ही शामिल नहीं थे, बल्कि यह RSS के ऐजेंडे के तहत किया जा रहा था।तीनों काले कृषि कानून, अडानी अम्बानी की तिजोरियों को भरने के लिये ही तो बनाये गये थे ! देश के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों की धरल्ले से बिक्री किन के हाथों हो रही है, सर्वविदित है।इस आन्दोलन ने वतन के सौदागरों से यह कहने में भी अपनी जीत दर्ज करा दी कि देश का किसान
आर एस एस के एजेंडों को हर्गिज सफल नहीं होने देंगे।
किसान आन्दोलन का यह विजय भारत के मजदूरों, छात्र – नौजवानों और शोषित पीड़ित अवाम के लिये संघर्ष एवं जागरण का एक पैगाम भी है।देश के हुक्मरान जिस तरह गैर लोकतांत्रिक, गैर संविधानिक एवं फासीवादी – तानाशाही तरीकों से, हर तबके की बार्बादी का फरमान जारी कर रहे हैं।ऐसा ही आन्दोलन और अभियान सुरक्षा कवच हो सकता है।तो आईये, आज विजय का जश्न मनाने से पहले, उन सभी 709 शहीद किसानों को तहे दिल विनम्र खेराजे़ अकीदत पेश करें जिन्होंने इस आन्दोलन की राह में अपनी सर्वोच्च कुर्बानी दी। हाड़ कंपा देने वाली सर्दी,खून जला देने वाली गर्मी तथा घनघोर बरसात में टप टप चूते हुए कैम्पों में भींग कर भी अपने जिन बुलन्द हौसलों का किसानों ने परिचय दिया उस “हौसले” को झुक कर सलाम करें।
सलाम
किसान आन्दोलन ।
किसान आन्दोलन की जीत। जिन्दाबाद !!
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल।
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया।।
-जिगर मुरादाबादी
लेखक – अहमद अली
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