राष्ट्रनायक न्यूज।
‘‘इक रास्ता है जिन्दगी, जो थम गए तो कुछ नहीं,
ये कदम किसी मुकाम पे जो थम गए तो कुछ नहीं
जाते हुए कदमों से आते हुए कदमों से
भरी रहेगी रहगुजर जो हम गए तो कुछ नहीं।’’
रास्ते देश के विकास का सूचक हैं। राजमार्गों का ठप्प होना न केवल लोगों की आजीविका को प्रभावित करता है बल्कि उससे हर क्षेत्र को नुक्सान पहुंचता है। सड़कों के अवरुद्ध हो जाने का अर्थ विकास का अवरुद्ध होना है। सरकार और किसानों के बीच एक वर्ष से अधिक समय से चल रहा गतिरोध समाप्त हो जाने के बाद दिल्ली की सीमाओं से किसान अब अपने गांवों और खेतों को लौटने लगे हैं। जश्न मनाते पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत सभी राज्यों के किसानों के जत्थे लौटने शुरू हो गए हैं। किसान आंदोलन खत्म होने से सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बार्डर के खाली होने में अभी एक-दो दिन लगेंगे लेकिन दिल्ली की सीमाओं के आसपास दर्जनों गांवों के लोगों के लिए यह बड़ी राहत की बात है। लम्बे आंदोलन के दौरान धैर्य और समर्थन के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने सभी धरना स्थलों के इर्द-गिर्द रहने वालों का धन्यवाद करते हुए साथ ही उन्हें इस दौरान हुई परेशानी के लिए माफी भी मांगी है।
भारत में किसानो को अन्नदाता माना जाता है इसलिए आंदोलन लम्बा इसलिए चल गया क्योकि लोगों की सहानुभूति किसानों के साथ थी। इसलिए तमाम परेशानियों को झेलकर भी लोगों ने धैर्य बनाए रखा। किसानों की घर वापसी के फैसले से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल या जम्मू-कश्मीर जाने वाले यात्रियों को काफी राहत मिलेगी। दिल्ली से चंडीगढ़ जाने वाले यात्रियों को सिंघु धरना स्थल के पीछे से टूटे-फूटे रास्तों से गुजर कर जाना पड़ता था। अगर ट्रैफिक सामान्य हो तो ठीक है लेकिन दिन के समय वाहनों की लम्बी कतारें लग जाने से कभी-कभी डेढ़ या दोघंटे लग जाते थे। सीमाओं की सड़कें बंद होने की वजह से लम्बी दूरी तय करने की मजबूरी थी जो रास्ते खुलने से अब खत्म हो जाएगी। इससे जहां वाहनों पर पैट्रोल का खर्च घटेगा और प्रदूषण भी कम होगा। सड़कों को अवरुद्ध करने का मामला देश की सर्वोच्च अदालत के सामने भी आया था तो उसने भी यही कहा था कि देश में हर किसी को लोकतांत्रिक ढंग से शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन इससे दूसरों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। दूसरों के मानवाधिकारों पर कुठाराघात नहीं होना चाहिए। सड़कों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा करके बैठा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सख्त रुख भी अपनाया और किसान संगठनों से कहा था कि आप दिल्ली को बंधक बनाकर नहीं रख सकते। फिलहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि बिलों को वापिस लेने का ऐलान कर और बाद में किसानों की मांगें स्वीकार करने का प्रस्ताव भेजकर किसान आंदोलन समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
अब गाजीपुर बार्डर भी खाली हो जाएगा। इन सड़कों के खुल जाने से दिल्ली से नोएडा जाने वाले, गाजियाबाद से नोएडा और दिल्ली आने वाले लोगों को काफी राहत मिलेगी। सिंघु बार्डर और टीकरी बार्डर के आसपास की कम्पनियों को बड़ी राहत मिलेगी। स्थानीय कारोबारियों, दुकानदारों और उद्योगपतियों के लिए इससे बड़ी राहत का पल कोई और नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक सिंघु और टिकरी बार्डर दोनों ही जगह व्यापारियों और उद्योगपतियों ने एक साल के अंतराल में 50 हजार करोड़ रुपए का झटका लगा है। इसमें 15 हजार फैक्ट्रियां शामिल हैं। अकेले बहादुरगढ़ में ही उद्योगपतियों को 30 हजार करोड़ का नुक्सान हुआ है। अकेले बहादुरगढ़ में लैदर का बड़ा कारोबार है। कई नामी-गिरामी कम्पनियां टिकरी बार्डर के आसपास है जहां जूते-चप्पल बनाए जाते हैं लेकिन बार्डर बंद होने से इन कम्पनियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा है। 378 दिनों के किसान आंदोलन के दौरान बहादुरगढ़, कुंडली, सोनीपत, पानीपत, झज्जर, गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल, उत्तर प्रदेश व राजस्थान की 20,000 से अधिक उद्योग इकाइयां प्रभावित हुईं क्योंकि रास्ते बंद होने से उद्योगों में कच्चा माल लाने व फैक्ट्रियों में बना माल बेचने में बड़ी भारी दिकक्तें आ रही थीं। बार्डर के आसपास उद्योग, पैट्रोल पम्प, होटल, रेस्टोरेंट, मैरिज हाल और छोटे दुकानदारों को काफी आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ा। कोरोना काल में लगी पाबंदियों के दौरान उद्योग धंधे पहले ही प्रभावित थे जिससे बेरोजगारी और बढ़ी। हालांकि व्यापार व उद्योग को हुए घाटे की भरपाई जल्दी नहीं हो सकती लेकिन रास्ते खुलने से व्यापार और उद्योग के दुबारा पटरी पर लौट आने की उम्मीदें जरूर बंध गई हैं।
किसान आंदोलन के दौरान टोल नाके बंद होने से राज्य सरकारों और केन्द्र को अरबों रुपए के राजस्व का नुक्सान झेलना पड़ा। टोल प्लाजा और रेल सेवाएं बाधित होने से सप्लाई शृंखला प्रभावित हुई। कपड़ा, वाहन, कलपुर्जे, साइकिल, खेल का सामान जैसे उद्योग अभी अपने निर्यात आर्डर पूरे नहीं कर पाएंगे। देश में हाईवे फ्लाईओवर इसलिए बनाए जाते हैं ताकि शहरों की दूरी कम हो और व्यापार बढ़े इसलिए इनका अवरुद्ध होना अर्थव्यवस्था के लिए नुक्सानदेह होता है। पिछले एक साल से इन मार्गों का कोई रखरखाव नहीं हो पाया। अब सरकारों को इन मार्गों का रखरखाव करना पड़ेगा। उम्मीद है कि अब कुछ ही
दिनों में आवागमन सामान्य हो जाएगा।
‘‘ये रास्ते हैं जिन्दगी, जो खुल गए सो खुल गए।’’
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