राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। क्या आप लेनिन को जानते हैं ? जी ठीक कहा आपने । रुसी क्रांति के नायक थे वो। लेकिन इतना ही नहीं। जिसने पूरी दुनिया को शोषण के विरुद्ध लामबंदी का संदेश दिया। जिसने मनुष्य के द्वारा मनुष्य का और एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के शोषण के विरुद्ध खडे़ होने का एक हुँकार दिया।जिसके नेतृत्व में तानाशाह जार का तख्त उखार फेंका गया था।उनके लिये संज्ञा और विशेषण तलाशो तो ज़रा ।थक जाओगे। भारत में तो उनकी प्रतिमा तोड़ दिया गया , त्रिपुरा में जहाँ भा ज पा सरकार चला रही है।मूर्ति तोड़को को क्या पता कि अलीगढ़ में जिन महेन्द्र प्रताप सिंह की मूर्ति स्थापित की गयी है।नरेन्द्र मोदी के द्वारा जिन्हें महिमा मंडित कर उनकी शान में कसीदे पढे़ गये थे।वो (महेन्द्र प्रताप सिंह) लेनिन के पक्के भक्त थे। महेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने दो साथियों के साथ लेनिन से मिल कर स्वतन्त्रता संग्राम के लिये मार्ग दर्शन प्राप्त किया था।लेनिन वो थे जो हमेशा भारत के स्वतन्त्रता के लिये चिन्तित रहते थे।अपनी सटीक विश्लेषण के द्वारा भारत को एक निश्चित कालावधि में स्वतन्त्र होने के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की थी।शहीदे आजम भगत सिंह की भी प्रबल इच्छा थी उनसे मिलने की लेकिन जुगार नहीं बैठ पाया।कहा जाता है कि फाँसी के ठीक पहले भगत सिंह अपनी काल कोठरी में लेनिन की ही जीवनी पढ़ रहे थे।पुलिस ने जब जाकर कहा कि फाँसी का वक्त हो चला है, तो भगत सिंह ने थोरी मोहलत माँगते हुए कहा था।रुक जा, अभी एक क्रांतिकारी , एक दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है।पुस्तक को समाप्त किया, हवा में उछाला और चल दिये फाँसी के तख्ते पर।आजादी की जंग के दुश्मनों के ह्रदय में जब भगत सिंह के प्रति कोई स्नेह नहीं हैं, फिर लेनिन की कीमत वो क्या जानें।ये अज्ञानी, मूर्ति तोड़ने के सिवा और कर ही क्या सकते हैं।
आईये थोड़ा और जानें लेनिन को।
जिनके नेतृत्व में जारशाही को समाप्त कर समाजवादी व्यवस्था कायम की गयी थी , उस देश (सोवियत संघ) में जब तक समाजवादी व्यवस्था कायम रही , वह भारत का सच्चा मित्र था।जिस सरकार ने, स्वतंत्रता के बाद कई कल कारखाने भारत में स्थापित कराई।देश पर जब भी कोई खतरा आया सोवयत एक सच्चे मित्र की तरह अपना फर्ज निभाया।लेनिन के ही देश में हिटलर का अन्त हुआ था, जिसने पूरी मानव जाति को अपनी मुठ्ठी में कैद करने का सपने देखा करता था।ये बात और है कि गोलवलकर साहब ने कई जगह उसका अनुसरण करने पर जोर दिया है कुछ लेखकों द्वारा लेनिन और गाँधी में समानताएँ तलाशने की कोशिश में कई लेख लिखा गया है। ये उनका अपना विचार हो सकता है।लेकिन दोनों में एक अन्तर से कौन इन्कार कर सकता है, कि गाँधी के नेतृत्व में जहाँ एक पूँजीवादी- सामंती सरकार की स्थापना हुई थी, वहीं लेनिन के नेतृत्व में पूँजीवाद , साम्राज्यवाद , सामंतवाद के विपरीत एक शोषण विहीन समाजवादी व्यवस्ता कायम की गयी!जिसका प्रभाव स्वतन्त्रता संग्राम में भी देखा गया।हसरत मोहानी, अल्लामा इकबाल जैसे कई अजी़म शायर और अदीब प्रभावित हुए थे।इकबाल ने लिखा —
” जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर न हो रोटी
उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो “
1921 में हसरत मुहानी ने ” इन्कलाब जिन्दाबाद ” नारे का इजाद किया था।बहुत सम्भव है, रुसी क्रान्ति ( 1917) के दिमागी असर ने ही पहली बार ये नारा उनकी कलम से लिखवाया हो ! महात्मा गाँधी भी लेनिन के कई बडे़ प्रशंसको में से एक थे।लेनिन की सादगी के वो कायल थे।कहते हैं, लेनिन जैसे प्रौढ़ व्यक्ति ने बोलशेविक क्रान्ति के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था; ऐसा महात्याग व्यर्थ नहीं जा सकता और उस त्याग की स्तुति हमेशा की जाएगी।गाँधी जी ने 13 जनवरी 1929 को विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा था , “लेनिन ने सादगी, दुःखादि की सहनशक्क्ति,भोग त्याग, एकनिष्ठा और सतत जागृति का, योगियों को भी शर्माने वाला नमूना दुनिया के सामने प्रतुत किया है”। लेनिन का नाम आते ही एक ऐसे दार्शनिक क्रान्तिकारी की छवि जेहन में आ जाती है जिसका मिसाल बिरले ही मिल पाता है।उन्हीं का स्मृति दिवस ( 22 जनवरी) है आज। आईये, बा अदब खडे़ होकर श्रद्धांजलि पेश करें और उनके सपनों की व्यवस्था कायम करने एंव उनका सच्चा शिष्य बनने का पुनः एक बार संकल्प दुहरायें।
लेखक: अहमद अली
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