संगीत से विधार्थियों में आ सकती है राष्ट्रीय और स्वच्छ सामाजिक भावना : अरूणा
पंकज कुमार सिंह की रिपोर्ट
मशरक केन्द्रीय विद्यालय की संगीत शिक्षिका अरूणा कुमारी ने बताया कि वर्तमान समय में अभिभावकों की यह प्रमुख शिकायत होती है कि आज के परिवेश में विद्यार्थियों में नैतिकता व अनुशासन का पतन होता जा रहा है। जो समाज समेत पारिवारिक जीवन के लिए एक चिंतनीय बात है। क्या संगीत इसमें कारगर भूमिका अदा कर सकती है? तो हां! यदि वात्सल्य बाल्यावस्था से ही विद्यार्थियों को नैतिकता व अनुशासन का प्रवचन ना देकर ऐसा गीत सिखाया जाए जो ऐसी भावनाओं को प्रचार कर सके तो यह राष्ट्र और समाज में बहुत बड़ा बदलाव लाने में सहायक सिद्ध होगा। संगीत द्वारा पारस्परिक भावनाओं को परिष्कृत कर सहचार्य, सहायता तथा सद्भावना में तृप्ति की अनुमति दिलाई जा सकती है। अतः संगीत नैतिक विकास में सहायक होता है, साथ ही इसके द्वारा अनुशासन का विकास किया जाता है। संगीत बौद्धिक विकास में भी सहायक है क्योंकि संगीत सुनने के स्वरों का उतार-चढ़ाव की कमी उसकी घनिष्ठा विभिन्न प्रकार के कंठ स्वर और वाद्यों की ध्वनियों की पहचान, संगीत की लय कारी आदि पहचान के साथ-साथ निरीक्षण शक्ति, चिंतन शक्ति तथा एकाग्रचित्त होने की क्षमता का विकास होता है। लेकिन याद रहे संगीत की उपयोगिता तब है जब उसे उद्देश्य के लिए प्रयुक्त किया जाए। कलाएँ तेज दुधारी तलवार की तरह होती है। यदि उसे अनैतिक प्रवृतियां भड़काने के लिए काम में लाया जाए तो घातक भी हो सकती है। इसलिए अक्सर गुनी जनों द्वारा कहा गया है कि संगीत का उपयोग मात्र आत्मोकर्ष के निमित्त किया जाना श्रेष्ठकर होता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस सृष्टि का निर्माण ही संगीत से ही हुआ है। संगीत हमारे जीवन का सार है, एक अभिन्न अंग है। इसके सुनियोजित द्वारा आत्मिक प्रगति सुनिश्चित है इसमें कोई संदेह नहीं है।
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