लेखक: अजय कुमार सिंह
‘‘अगर हिन्दू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। हिन्दू कुछ भी कहें, हिन्दू धर्म स्वतन्त्रता, समता और बन्धुता के लिए खतरा है। उस आधार पर वह लोकतन्त्र के साथ मेल नहीं खाता है। हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।”
इस साल 14 अप्रैल को बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 131वीं जन्म वर्षगांठ है। हम और हमारा देश एक अभूतपूर्व परिस्थिति से गुज़र रहा है। जहां 1940 में डॉ. भीमराव अम्बेडकर हिंदू राज के खतरे को बताते हुए उसे हर हाल में रोकना चाहते थे, वहां आज हिंदू राज के लिए हमारा देश समाज नफ़रत की दलदल में धंस रहा है। जहां डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दमित समाज और बहुजन समाज को सत्ता में हिस्सेदारी के लिए चौतरफा संघर्ष करना पड़ा था और उन्हें धोखे के साथ आंशिक जीत मिली भी।
वहीं आज उस हिंदू राज के वाहक दमित और बहुजन जातियों को सत्ता में पालतू एजेंटों की तरह बिठा रहे हैं। जहां इसी हिंदू राज के सिद्धांतकार डॉ. अंबेडकर को जाति के आधार पर गालियां देते थे वहीं आज वे डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को मात्र वोट के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। और डॉ. भीमराव अम्बेडकर के आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारों के साथ ही भारत के संविधान और लोकतंत्र को खत्म करते जा रहे हैं।
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने जाति और जातिभेद का खात्मा चाहा था। उन्होंने देश में एक समान सिविल कोड के लिए पहले हिंदू बहुसंख्यक समाज में एक समान सिविल कोड के लिए प्रयास किया था। परंतु इसी हिंदू राज के सपना देखने वाले और कांग्रेस में भी हिंदू राज की ख्वाहिश वाले उन्हें जाति सूचक गालियां दिए थे। आज वे अपने हिंदू राज के एजेंडे को पूरा करने के लिए उस डॉ. भीमराव अम्बेडकर का इस्तेमाल करके दमित-पिछड़ी जातियों से दलाल नेताओं के माध्यम से दमित पिछड़ी जातियों को गुमराह कर रहे हैं।
मित्रों, डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने गौतम बुद्ध, कबीर, नारायणगुरु, पेरियार, गुरु रविदास, जोतीबा – सावित्री बाई फुले सहित सभी जाति विरोधी नायकों से सीखने पर जोर दिया था। उन्होंने नारा दिया कि शिक्षित बनो!, संगठित हो ओ!! और संघर्ष करो!!! परंतु आज हम क्या देख रहे हैं? हम दमित पिछड़ी जातियों के बहुसंख्यक आबादी को शिक्षा के नाम पर सिर्फ मिड-डे-मील दिया जा रहा है। संगठित होने के नाम पर यज्ञों में कलस ढोने, शिव चर्चा में जाने, प्रजा की तरह हिंदू राज के लिए रैलियों में जाने या तरह-तरह के अंध विश्वासों के आयोजन की प्रेरणा और छूट दी जा रही। और संघर्ष के नाम पर सिर्फ इतना समझाया जा रहा कि तुम हिंदू राज के लिए वोट दो। डॉ. भीमराव अम्बेडकर हमें नागरिक बनाना चाहते थे और ये हिंदू राज के पैरोकार हमें स्वामिभक्त प्रजा बनाना चाहते हैं।
हम प्रजा बने रहें, उनकी दया पर जीते रहें, उनके लिए मुसलमानों से नफरत करें, दंगाई बनें तो बदले में वे हमारे ही टैक्स के धन से हमें शौच करना सिखाएं, हमें आधा पेट अनाज दें, और स्वयं हमारे टैक्स के पैसे पर ऐश करें। वे चाहते हैं कि हमारे बच्चे अच्छी शिक्षा न ले पाएं, डॉक्टर- इंजीनियर- जज – वकील या बड़े पदों पर न जा पाएं, हम या हमारे बच्चे लेखक – पत्रकार – बुद्धिजीवी न बनें।
दोस्तों, उन्होंने डॉ. भीमराव अम्बेडकर की आत्मा को मार दिया है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवन भर दमित जातियों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने पत्रकार के रूप में अखबार निकाला, वकालत किया, मंत्रीमंडल में शामिल होकर कानून बनाया, भारत के संविधान को लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया, संगठन बनाकर मंदिर प्रवेश और सार्वजनिक तालाब से पानी पिया। उन्होंने उस वंचित समय में जबकि दमित समाज में पढ़े-लिखे, नौकरी पेशा या बुद्धिजीवियों का सर्वथा अभाव था तो घृणा पर आधारित हिंदू राज के हर प्रकार के विचार का विरोध किया। और आज क्या हो रहा? उनके संघर्षों से जो मुठ्ठीभर दमित समाज के लोग आगे बढ़ पाए थे उनमें से कुछ को इस जन विरोधी हिंदू राज और व्यवस्था के नीति नियंताओं ने अपना पालतू एजेंट बना लिया है। और बहुसंख्यक समाज को आपस में नफरत करना, मुस्लिमों से नफरत करना, बुद्धिजीवियों से नफरत करना, यहां तक कि ज्ञान से नफरत करना सीखा रहे हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को तो सिर्फ मूर्ति बनाकर पूजो यही उनका संदेश है। परंतु कभी अधिकार की मांग न करो। मांगना है तो सिर्फ मिड-डे-मील, राशन की दुकान पर भीड़ बनो, इलाज के नाम पर आयुष्मान कार्ड बनवाने की लाइन में लगे रहो।
साथियों, डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के इतने प्रयासों के बाद भी आए दिन इस हिंदू कहे जाने वाले समाज द्वारा ही जाति भेद, उत्पीड़न, बलात्कार, हत्या की घटनाएं जाति के नाम पर देश में कहीं न कहीं रोज होती रहती हैं। हिंदू समाज में आप किराए पर मकान लीजिए,या किसी भी सोशल रिश्ते में आइए आप सिर्फ हिंदू बोलकर काम नहीं चला सकते। हिंदू सिर्फ तभी हैं जब मुसलमानों से नफरत की बात आए। बाबा साहेब कत्तई ऐसा देश नहीं चाहते थे। वे जमींदारी और बड़ी पूंजी का विनाश चाहते थे। वे चाहते थे कि देश की संपत्ति समाज के हित में इस्तेमाल हो। इसीलिए उन्होंने राजकीय समाजवाद की वकालत की थी।
जबकि हिंदू राज वाली सत्ता समाजवाद की धुर विरोधी और पूरे देश को चंद मुनाफाखोर पूंजीपतियों को सौंप रही है। दमित लोगों के उत्थान के लिए तीन समस्याओं का समाधान बहुत जरुरी है जाति, जमीन और जनवाद का सवाल। यह तीनों चीजें कैसे हल होंगी सही अम्बेडकरवादी नजरिये का प्रस्थान बिंदु यही होना चाहिए। शिक्षा, जमीन-रोजगार और इसकी रक्षा के लिए अस्त्र। सच्चाई यह है की समाज के वंजित लोगों को इन तीनों साधनों से रोका गया है।
इसलिए हम आह्वान करते हैं कि आइए बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर हम संकल्प लें कि हम उन्हें ब्राह्मणवाद की तरह मात्र पूजा की मूर्ति नहीं बनने देंगे। बल्कि उनके शिक्षित होने, संगठित होने और संघर्ष करने के मंत्र को अपनाते हुए उनके जाति विहीन, शोषण विहीन लोकतांत्रिक भारत के सपने को पूरा करने के लिए एकजुट प्रयास करेंगे।
( लेखक के अपने विचार हैं।)


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