राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। ऐसे तो मई दिवस अपने आप में एक संदेश ही होता है वर्तमान चुनौतियों से मुकाबिल होने का। पर 2022 का यह मजदूर दिवस कातिलाना चुनौतियों के बीच ही आया है। सबसे बड़ी चुनौती है,आज मजदूर वर्ग की एकता के सामने। नवउदारवादी नीतियों के तहत तो पहले से ही इन पर हमले जारी हैं, जिसे यह वर्ग अपनी चट्टानी एकता के बदौलत उनका मुंहतोड़ जवाब भी दिया है। वर्तमान में जो हथियार शासक वर्ग इस्तेमाल में ला रहा है, वह है “साम्प्रदायिकता”। “दुनिया के मजदूरों एक हो” के सामने एक जल्लाद के मानिंद खड़ा है, तो दूसरी तरफ फासीवाद का दरवाजा भी खोलने पर उतारू है यह। आज वही तूफानी जोश दरकार है इस दैत्य को धूल चटाने के लिए जो 136 वर्ष पूर्व शिकागो में था।ज़रा सुनिये, उनकी सदाएं, यदि वो कामयाब हो गये तो न मई दिवस की और ना ही जंगे आजादी की विरासत बचने वाली है। लोकतंत्र के साथ ही वतन की साझी विरासत की संस्कृति एवं गंगा जमूनी तहजी़ब के सिर्फ कातिल ही नजर आएंगे। 1886 की शहादत का अपमान तो होगा ही 1947 की कुर्बानियों की चमक भी फीकी पड़ जायेगी। इसे रोकने की ताकत बस एक ही में है, और वह है मेहनतकशों की फौलादी एकता ।
अब वो दिन लद गए, जब मई दिवस को एक पर्व की तरह सैलिब्रेट किया जाता था। मौजूदा दौर में यह एक पर्व दिवस नहीं बल्कि एक संकल्प दिवस के रूप में आयोजित करने का वक्त है। संकल्प, एकता की हिफाजत के लिए; संकल्प, शासक वर्ग की मजदूर विरोधी नीतियों के विरुद्ध; संकल्प, जनवाद की हिफाजत के खातिर और संकल्प, उस संस्कृति को बचाए रखने के लिए, जिससे गोरों की सांसें भी रुक जाती थी।मौजूदा दौर में इसी संकल्प की अग्नि परीक्षा है। यदि असफल हुए तो: मासूमों और बेसहारों की बस्तियों की तबाही ही सिर्फ नजर आएगी। झोपड़ियों से आग की लपटें, सड़कों पे तड़पते हुए जिस्म, सरे बाजार आबरु का चीरहरण, इंसानियत का संहार, भाईचारे का अपहरण और भविष्य की चिता के सिवा कहीं भी कुछ नजर नहीं आएगी। आज(एक मई) अंतर्राष्ट्रीय ऐतिहासिक दिवस के साथ ही एक पाक दिवस भी है। मैं जानबूझकर पाक (पवित्र) शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं, क्योंकि जिन साथियों ने आज से 136 वर्ष पहले जाम-ए- शहादत पिया था वह किसी कौम या सांप्रदाय विशेष के लिए नहीं, बल्कि पूरे मजदूर वर्ग के लिए, शोषित पीड़ित आवाम के लिए और यूं कहें की पूरी मानवता के लिए। शहादत कितना अजीम था, आज यही तो समझना है।जी, इतना अजी़म था कि दुश्मन भी सर झुकाने को विवश है।
दोस्तों, यदि हम अपने वर्ग की रक्षा कर करना चाहते हैं, तो हमें हिंदू मजदूर, मुस्लिम मजदूर, सिख या ईसाई मजदूर बनने के बजाय सिर्फ और सिर्फ मजदूर ही बनना होगा। चार अक्षर के इस शब्द में इतनी ताकत है कि बड़े-बड़े तानाशाहों के छक्के छूट जाते हैं। कितने हिटलर, मुसोलिनी, चंगेज और जार को इतिहास का छारन बना दिया इसी मजदूर वर्ग ने।
तो आइए, हम अपने देश में भी मजदूर वर्ग की एकता के लिए,” दुनिया के मजदूरों एक हो” में अंतर्निहित “भारत के मजदूरों एक हो” के परचम को बुलंदियों तक पहुंचाएं। यही शिकागो के शहीदों की सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।


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