गंडामन मिड डे मील हादसा: दर्द और दीनता के सात साल, 16 जुलाई 2013 मौत, मातम और सियासत
ये निशानी मूक है पर बहुत कुछ है बोलती
कशिश भारती एवं महाराज की कलम….
यह तस्वीर मूक है, स्थिर है फिर भी बहुत कुछ बोलती है। यह वही कब्र है, जहां बच्चों को उनके उम्मीदों, हसरतों को कफन में लपेट कर दफन कर दिया गया। मिड डे मील की अंतिम खुराक 23 बच्चों के लिए जहर की खुराक साबित हो गई। उन्हें क्या पता था कि उनका यह अंतिम सरकारी भोजन है। ये कब्र मूक व शांत जरुर है, मगर उसकी हलचल व कराह उन बच्चों के माता-पिता सुनते हैं। प्रतिदिन निहारते हैं, कभी काश मुन्ना निकल कर गोद में आ जाता। ऐसी ही दर्द भरी दस्तान बच्चों के मां के आंसू बनकर बह जाते हैं। उसे कौन समझे और कौन जाने? यह घटना भारत ही नहीं बल्कि एशिया के इतिहास में बदकिश्मत के दाग बन कर रहेगी।
आह!, दर्द और आंसू के सिवाय अब तो कुछ भी शेष नहीं
मीड डे मीड हादसा: मौत, मातम और सियात
धर्मासती गंडामन में एमडीएम हादसे के सातवे वर्ष दर्द, दीनता के सात साल की कहानी…बस और कुछ भी नहीं सिर्फ और सिर्फ मौत, मातम और सियासत ही रह गया। ऐसी ही दर्द भरी दस्तान जो केवल आंसू ही बनकर रह गये! उसे भला कौन समझे, अपनी राजनीति की रोटी सेंकने वाले तो सिर्फ सियासत की ही परिभाषा को समझते है। घटना गत दिनांक 16 जुलाई 2013 की है। सारण जिले के मशरक प्रखंड के गंडामंन धर्मासती गांव में नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में मध्याह्न भोजन योजना यानी एमडीएम खाने से 23 बच्चें काल के गाल में समा गये और पूरा सिस्टम देखते ही देखते मातम में तब्दील हो गया, बस हुआ तो केवल सियासत! और आज भी सियासत के सातवे साल में उन निवाले के शिकार 23 बच्चों की बरसी मनायी गई। ऐसे ही दर्द के सातवे, आठवें… साल बीत जायेंगे। फिर भी चलता रहेगा मौत, मातम और सियासत…
दर्द, दीनता के सातवें साल की कराह उन बच्चों के माता-पिता के वैदीक परंपराओं के साथ याद…
गुरूवार को लोगों के चेहरे गमगीन थे। माता-पिता अपने जिगर के टुकड़ों के कराह की यादें लिये वैदिक परंपरा का निरवहन करते हुए उनके आंसू बह रहे थे….कि काश! मुन्ना अब भी गोद में आ जाता। बस इन्हीं दर्द भरी वैदीक परंपराओं के साथ उनकी यादे भी सियासत की परंपरा बनकर रह गई है। दर्द और दीनता के सातवे साल की सियासत के तौर पर गंडामन में बने स्मारक पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। लेकिन इस बार सियासत में सरकारी सिस्टम के आला अधिकारी डीएम, कमिश्नर, डीआईजी हिस्सा नहीं बने। कोरोना लॉकडाउन ने सबकुछ अपने ही आगोश में ले लिया। सिर्फ दिखा तो ब वैदिक परंपरा के अनुसार उन बच्चों के स्मारक पर सियासत की पूजा और फुल। भला और हो भी क्या सकता है। सदियों से चले आ रहे बने-बनाये परंपरा के अनुसार उस सरकारी भोजन के काल के गाल में समाये उन बच्चों के माता-पिता ने हवन पूजा-पाठ कर अपने जेहन के साथ-साथ बच्चों को याद कर दिल को ठंडा कर लिया। सियासत ने भी बच्चों के स्मारक पर फुल, मोमबत्ती जलाकर बच्चों के आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना सभा आयोजित की।
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