राष्ट्रनायक न्यूज।
पटना (बिहार)। हिन्दू धर्म में एकादसी व्रत का विशेष महत्व है भगवान विष्णु के प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता है। यह व्रत शुभ फलदाई मानी जाती है महीने में कुल दो एकादसी मनाया जाता है। साल में 24 एकादशी मनाया जाता है। ज्येष्ट मास की एकादशी को निर्जला एकादसी के नाम से जाना जाता है। इसे भीमसेनी एकादसी भी कहते है इस व्रत को निर्जल रहकर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होता है लम्बी आयु तथा स्वास्थ ठीक रहता है। पाप को नाश करने वाला यह व्रत होता है।
व्रत का पूजा विधि :
- जो लोग बारह मास का एकादसी नहीं कर पाते है निर्जला एकादसी करने से पूर्ण हो जाता है। विधि व्रत का नियम इस प्रकार है।
- जिस दिन व्रत करना है उसके एक दिन पहले संध्याकाल से स्वस्छ रहे ।तथा संध्या काल के बाद भोजन नहीं करे ।
- व्रत के दिन सुबह में स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का पूजन करे पिला वस्त्र धारण करे।
- पूजन के बाद कथा सुने
- इस दिन जो व्रत करते है उनको विशेष दान (सरबत) करना चाहिए। मिट्टी के पात्र में जल भरकर उसमे गुड़ या शक्कर डाले तथा सफ़ेद कपड़ा से पात्र को ढक कर दक्षिणा के साथ ब्रह्मण को दान दे।
व्रत का मुहूर्त :
11 /0 6 /2022 दिन शनिवार
पारण का मुहूर्त :
12 /06 /2022 दिन रविवार सुबह 05:00 से 7 :00 बजे तक है
कथा :
महाभारत के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- ‘’हे मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं व मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं. लेकिन मैं भूख नहीं रह सकता हूं अत: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है.’’ भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- ‘’पुत्र तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो, इसे निर्जला एकादशी कहते हैं. इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है. जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे वर्ष में जितनी एकादशी आती हैं उन सब एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है.’’ महर्षि वेद व्यास के वचन सुनकर भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने लगे और पाप मुक्त हो गए. इसके बाद से निर्जला एकादशी मनाई जाती है.
संजीत कुमार मिश्रा, ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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