वो गाली भी दे दें तो कोई पूछता नहीं
हम वजह पूछ लें तो फाँसी का फंदा है
राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। सत्ता का गरुड़ जब सर पर सवार हो जाता है तो यही सब होता है जो आज कल पूरे देश में चल रहा है। मूल मुद्दे पर आते हैं। पटना के एस. एस. पी. मानवजीत सिंह ढिल्लो ने प्रेस वार्ता में, पत्रकारों के पी. एफ. आई. की कार्यशैली सम्बन्धित सवालों के जवाब में बस इतना ही तो कहा; जैसे आर. एस. एस अपने कार्यकार्ताओं को शारीरिक रुप से ट्रेनिंग देता है वैसे ही पी. एफ. आई अपने कैंप में प्रशिक्षण देता है। इत्ती सी बात पर भाजपा की बौखलाहट शुरु हो गयी।ढिल्लो ने दोनों संगठनों में से किसी के न दर्शन की चर्चा की और ना ही किसी के लक्ष्य या उदेश्य की ही।हालाँकि कि यह जग जाहिर है कि एक का लक्ष्य भारत को हिन्दू राष्ट्र तो दूसरे का एक मुस्लिम राष्ट्र है। दोनों लक्ष्य भारत के संविधान के विरुद्ध हैं। जिसमें देश को एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है। अब यहाँ जो भाजपा के, खास कर अशोक सम्राट और हरिभुषण सिंह बचौल सहित कई केन्द्रीय नेताओं द्वारा एस.एस.पी को सजा देने की माँग की जा रही है, उनसे पूछा जाना चाहिये, क्या आर.एस.एस अपनी में शाखाओं में लाठी चलाना या शारीरिक प्रशिक्षण नहीं देती है? श्री ढिल्लो का बयान केवल इन्हीं प्रशिक्षणों की तुलना तक ही सीमित है। फिर हाय तौबा क्यों ? दरअसल मिडिया भी हमेशा की तरह इस बार भी आग लगाने मे अहम भूमिका निभा रहा है।उनके प्रशनों पर ज़रा गौर किजिये” एस.एस.पी ने जो पी.एफ.आई की तुलना आर.एस.एस से की है वो सही है या गलत” ?फिर यह कहना कि एस.एस.पी का बयान विवादित था। जिस भाषा का प्रयोग भा ज पा के नेता कर रहे हैं, ठीक वही भाषा इन प्रसारणों का भी है।उन्हें तो अपना टी आर पी बढा़ने के लिये पक्ष विपक्ष का गर्मा गर्म बहस और चिल्लाहट चाहिये।सच यह है कि एस.एस.पी,पटना का बयान, चाहे आप किसी भी दृष्टिकोण से देखे, विवादित है ही नहीं।बल्कि पूरी तरह स्पष्ट और निष्पक्ष है। उन्हें बे वजह विवादों में घसीट कर अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने की कोशिश की जा रही है।साथ ही अपनी ताकत का एहसास भी कराया जा रहा है। आज जो भी एस.एस.पी. के बयान का समर्थन कर रहे हैं, सभी धन्यवाद के पात्र हैं। चाहे सत्तापक्षी हैं या विपक्षी।
लेखक- अहमद अली
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