राष्ट्रनायक न्यूज।
हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा जी को निर्माता का सिर्जन का देवता माना जाता है .पुरे ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है भगवान विश्वकर्मा को देवताओ का वास्तुकार माना जाता है .यह त्योहार मुख्य रूप में कारखाने तथा मशीनरी दुकानों में जहा पर शिल्पकार, यांत्रिक वेल्डर, फिटर ,टर्नर के काम करने वाले लोग अपने बेहतर भविष्य तथा सुरक्षा के साथ काम करने तथा अपने कार्य क्षेत्र को ज्यादा सफल बनाने के लिए पूजन करते है .इन्हे चारो युगों में विश्वकर्मा ने कई नगरो तथा भवनों का निर्माण किया .यह त्योहार संक्रांति पर निर्धारित की जाती है.इस दिन सूर्य का कन्या राशि में गोचर होता है .आदि काल से विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञानं के कारण ही मात्र मानवों अपितु देवतागण के लिए पूजनीय है .भगवान विश्वकर्मा के अविष्कार एवं निर्माण के कार्य के सन्दर्भ पुष्पकविमान का निर्माण किया .सभी देव के भवन का निर्माण किये .यमपुरी ,कुबेरपुरी ,सुदामापुरी ,वरुणपुरी इन्द्रपुरी का निर्माण किया .इस वर्ष विश्वकर्मा पूजन में बन रहे है कई खाश संयोग .अमृत योग, विर्द्धि योग ,रवियोग ,सवार्थ सिद्ध योग साथ में द्विपुष्कर योग बना रहेगा इन सभी योग में पूजन करने से धन्य धान की वृधि होती है साथ में अपने कार्य में कुशलता मिलेगा .
भगवान विश्वकर्मा की पूजन करने का शुभ मुहुर्त
17 सितंबर दिन शनिवार को विर्द्धि योग पुरा दिन मिलेगा अमृत सिद्धि योग , रवियोग ,तथा सवार्थ सिद्ध योग द्विपुष्कर योग सुबह 06:06 से लेकर 12:22 तक बना रहेगा.
चौघडिया :
- शुभ सुबह 07 बजकर 07 मिनट से लेकर 08 :39 मिनट तक रहेगा.
- लाभ दोपहर 01 बजकर 16 मिनट से 02 बजकर 48 मिनट तक रहेगा .
- अमृत दोपहर 02 बजकर 48 मिनट से 04 बजकर 20 मिनट तक रहेगा.
पूजा करने के लिए सामग्री:
कलश ,मिट्टी या धातु का दिया,कपूर,केसर,धूपबत्ती,दूध,गंगा जल,पंच मेवा.चावल.अबीर.पुष्प या फुल.कुशा व दूर्वा
केले के पत्ते.तुलसी पत्ता.रोली.सिंदूर.चन्दन.मूर्ति.पंचरत्न.मिठाई.काले तील.सुपारी.मौली.कच्चा दूध.शहद.साबुत हल्दी. हवन सामग्री,पांच ऋतू फल,नारियल,घी,पान,सुपारी,लाल और पीला कपडा,जौ भगवान के लिए वस्त्र .केले का पत्ता
विश्वकर्मा पूजा मंत्र :
मंत्र: ओम आधार शक्तपे नम: ओम कूमयि नम: ओम अनन्तम नम: पृथिव्यै नम:
पूजन कैसे करें:
इस दिन सुबह उठकर स्नानादि कर पवित्र हो जाएं. इसके बाद पूजन स्थल को साफ कर गंगाजल छिड़क कर उस स्थान को पवित्र कर ले . एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं और पीले कपड़े पर लाल रंग के कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं. भगवान विश्वकर्मा को ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें इसके बाद स्वास्तिक पर चावल और फूल अर्पित करें. फिर चौकी पर विश्वकर्मा जी की प्रतिमा या फोटो लगाएं. एक दीपक जलाकर चौकी पर रखें. ऋषि विश्वकर्मा जी के मस्तक पर तिलक लगाएं. विश्वकर्मा जी को प्रणाम करते हुए उनका स्मरण करें. साथ ही प्रार्थना करें कि वे आपके नौकरी-व्यापार में तरक्की करवाएं. विश्वकर्मा जी के मंत्र का 108 बार जप करें। फिर श्रद्धा से भगवान विश्वकर्मा जी की आरती करें. आरती के बाद उन्हें फल-मिठाई का भोग लगाएं..
विश्विकर्मा पूजा कथा:
विश्वकर्मा जी को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है. भगवान विश्वकर्मा की एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में काशी में रहने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था.वह अपने कार्य में निपुण तो था लेकिन स्थान- स्थान पर घूमने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था. उसके जीविकापर्जन का साधन निश्चित नहीं था. इतना ही नहीं उस रथकार की पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहा करती थी. पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों साधु और संतों के पास जाते थे. लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी. तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार से कहा तुम दोनों भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ. तुम्हारी सभी इच्छाएं अवश्य ही पूरी होंगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा का महत्व सुनों. इसके बाद अमावस्या को रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जिससे उसे धन धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगे.
आरती :
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का ।
स्वामी दुःख विनसे मन का ।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी ।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता ।
स्वामी तुम पालन-कर्ता ।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे ।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।
स्वमी पाप हरो देवा ।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
श्री विष्णु जी की आरती, जो कोई नर गावे ।
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
संजीत कुमार मिश्रा, ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594 /9545290847


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