राष्ट्रनायक न्यूज।
भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अवमस्या तक चलने वाला यह पितृपक्ष का समय पिंडदान करने के लिए उतम समय रहता यह पुरे वर्ष भर में 16 दिन का होता है ऐसे में भारत कई जगह है जहां पर पितृपक्ष में पिंडदान किया जाता है .लेकिन इन स्थानों में सबसे उतम स्थान गया का स्थान का दिया जाता है यह स्थान बिहार के पटना से 100 किलोमीटर की दुरी पर है यहाँ जाने के लिए ट्रेन तथा बस भी मिलती है गया फाल्गुन नदी के किनारे बसा हुआ है इसी नदी के किनार पर पिंडदान किया जाता है.गरुड़ पुराण में कहा गया है पृथ्वी के सभी तीर्थो में गया का स्थान सर्वोतम है .गया में पिंडदान करने से माता,पिता के साथ कुल के सभी पीढ़िय तृप्त हो जाती है .गरुण पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करने के लिए गया के लिए जाता है, उसका एक-एक कदम पूर्वजों को स्वर्गारोहण के लिए सीढ़ी बनाता है। यहां पर श्राद्ध कर्म करने से पूर्वज सीधे स्वर्ग चले जाते हैं। क्यों स्वंय भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में मौजूद होते हैं। इसलिए गया को पितृ तीर्थ स्थल भी कहा जाता है। इसकी चर्चा विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी की गई है।गया में भगवान राम ने माता सीता और लक्ष्मण के साथ राजा दशरथ का पिंडदान किया था, जिससे उनकी आत्मा को मुक्ति मिली थी। गया में रेत का भी पिंडदान किया जाता है। माता सीता ने फल्गु नदी के रेत का पिंड बनाकर दशरथजी को अर्पण किया था। दरअसल इसके पीछे कथा यह है कि जब भगवान राम इस जगह राजा दशरथ का पिंडदान करने पहुंचे थे तब वह सामग्री जुटाने के लिए अपने भाई के साथ नगर चले गए थे। उनको सामान जुटाने में बहुत देर हो गई थी और पिंडदान का समय निकलता जा रहा था। तब माता सीता नदी के तट पर बैठी हुई थीं, तभी दशरथजी ने उनको दर्शन देकर कहा कि पिंडदान का समय निकल रहा है इसलिए जल्दी मेरा पिंडदान करें। तब माता सीता ने रेत से पिंड बनाया और फल्गु नदी, अक्षय वट, एक ब्राह्मण, तुलसी और गाय को साक्षी मानकर उनका पिंडदान कर दिया। जब भगवान राम पहुंचे तब उन्होंने सारी बात बताई और अक्षय वट ने भी इसकी जानकारी दी। लेकिन फल्गु नदी कुछ नहीं बोली तभी माता सीता ने नदीं को शाप दे दिया और अक्षय वट को वरदान दिया कि तुम हमेशा पूजनीय रहोगे और आज से पिंडदान के बाद तुम्हारी पूजा करने के बाद ही सफल होगी। प्रेतशिला के पास यहां पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण कर लेते हैं, जिससे उनको कष्टदायी योनियों में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती। प्रेतशिला के पास कई पत्थर हैं, जिनमें विशेष प्रकार के दरारें और छिद्र हैं। कहा जाता है कि ये दरार और छिद्र लोक और परलोक के बीच कड़ी का काम करती हैं। इनमें से होकर प्रेतत्माएं आती हैं और पिंडदान का ग्रहण करती हैं
संजीत कुमार मिश्रा, ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594 /9545290847


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