राष्ट्रनायक न्यूज।
पितृपक्ष के दौरान पितरो के आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तथा तर्पण किया जाता है .धार्मिक मान्यतानुसार पुर्बजो की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है .जो लोग अपने पितरो की पूजन नहीं करते है.उनके पूर्वजो को मिर्तुलोक में जगह नहीं मिलती है और उनकी आत्मा भटकती रहती है .देव पितर का काम न्याय करना है .जब ये अपने परिवार पर न्याय नहीं करते है वह परिवार विखंडित हो जाता है .यह मनुष्य तथा अन्य जीवो के कर्मो के अनुसार उनका न्याय करते है .भगवान कृष्ण ने कहा है की वह पितरो में अर्यमा नमक पितर है पितरो की पूजा करने से भगवान विष्णु की पुजन होती है विष्णु पुराण के अनुसार श्रृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी के पीठ से पितर उत्पन हुए है .पितर को उत्पन होने के बाद ब्रह्मा जी उस शारीर को त्याग दिए और पितर को जन्म देने वाला शारीर संध्या बन गया .इसलिए संध्या काल में पितर बहुत शक्तिशाली होते है .
कब करते है पूजन:
भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अवमस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते है .जिस तिथि को माता -पिता का देहांत होता है.उस तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है शास्त्रों के अनुशार पितृपक्ष में अपने पितरो के निर्मित जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रध्दापूर्वक श्राद्ध करता है उनका मनोरथ पूर्ण होता है .
किनकी पूजन की जाती है:
पितृपक्ष के अवधि में जो पूजन होता है पिंडदान तथा श्राद्ध कर्म हेतु उसमे भगवान विष्णु की विशेष पूजन की जाती है विष्णु की पूजन से ही प्रेत से पितृ योनी में जाने की दरवाजा खुल जाती है साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है .
संजीत कुमार मिश्रा, ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594 /9545290847


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