का कहीं का ना कही
ई बतवले रही ऱऊवा
बात ऐतने ना रहे कह के
सुनवले रही ऱऊवा
कहीं दूर जाके ब़ईठल
अपना जिगर के दुसमन
ओकरा से जाके नेहियाँ
जोरवले रही ऱऊवा,
जिनगी के राह में केहुँ
कहवाँ ले संगे जाई
सभकर ईयाद मन में
सजवले रही ऱऊवा
ओस चटला से ना बुझी
ई पियास जिनगी के
आके लगे बुझा दी
कि बुझवले रही ऱऊवा
बात ऐतने कहे के बाटे
तोहरा से ऐं रमल
रहे मन में जब अन्हरियाँ
राँह देखवले रही ऱऊवा।
का कहीं का ना कही
ई बतवले रही ऱऊवा बात
ऐतने ना रहे कह के सुनवले रही ऱऊवा।
सूर्येश प्रसाद निर्मल शीतलपुर तरैयाँ।


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