जीवन युद्ध में संकोच कैसा कर रहे हो तुम
कविता:-
जिंदगी के हाल को
समझते चलो।
कुछ करने की ठान लो
बस करते चलो।।
लोग हसें तो
हंसने देना।
उनकी बातों में
कभी ध्यान मत देना।।
दूसरो को भूलकर
जो खुद में ध्यान दोगे।
मै दावा करता हूं
तुम बहुत कुछ कर लोगे।।
तुम बीर हो, बीरो की
राह अलग होती है।
करो या मरो
बस इच्छा यही होती है।।
तो युद्ध में संकोच कैसा
कर रहे हो तुम।
कमी क्या है बताओ
किस बात से डर रहे हो तुम।।
लेखक एवं राष्ट्रीय कवि –
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)


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