अनजानी राहों पर अनजाने दोस्त
कविता
अनजानी राहों पर अनजाने दोस्त भी अच्छे लगते है।
रिश्ते कुछ पल के ही होते फिर भी सच्चे लगते है।।
सच्ची लगती है वो गलियां सच्चे लगते है चौराहे।
जब दो जन मिल जाते है तो दोनों बच्चे लगते है।।
कट जाता है रस्ता दोनों की बातों में ही।
दोनों पागलपन जैसी अपनी अपनी बकते है।।
खूब मजा आ जाता है कुछ पल की ही दूरी में।
कभी अतीत तो कभी भविष्य के ख्वाबों में जब रंगते है।।
अनजानी राहों पर अनजाने दोस्त भी अच्छे लगते है।
रिश्ते कुछ पल के ही होते फिर भी सच्चे लगते है।।
लेखक एवं राष्ट्रीय कवि:-
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)


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