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पढ़ाई छोड़ मजदूरी करने को मजबूर हो रहे गरीब, कमजोर वर्ग के बच्चे, कागजी फाइलों की शोभा बढ़ा रहीं बाल मजदूरी रोकने को ले गठित धावा दल व नियमें

  • वर्ष 2020 के बाद  बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए धावा दल ने नहीं की कार्रवाई

अरूण विद्रोही। छपरा

भारत का भविष्य कहलाने वाले नन्हें-मुन्हें बच्चे के हाथों में पाटी-पौथी की बजाय सफ़ाई करने वाला झाडू, होटलों में जुठा साफ करने वाला बर्तन, बैण्ड पार्टी में सिर पर झालर लाइल और ‌ईट भट्‌ठों पर नजर आने लगा है। बस स्टैंड पर सरकारी एवं प्राइवेट बसों के आते ही सड़कों पर ऐसे दौड़ते हुए पानी की बोतलें, नाश्ता इत्यादि बेचते अक्सर नजर आते है, जहां ये कभी-भी दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं। ऐसे में ’बाल श्रमिकों का है अधिकार, रोटी- खेल- पढ़ाई प्यार, शिक्षा का प्रबंध करो, बाल मजदूरी बंद करो’ ये नारे दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। भले ही सरकार की ओर से गरीब लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए बड़े- बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन इन दावों की हवा निकलती हुई आमतौर पर देखी जा सकती है। साथ हीं श्रम संसाधन विभाग द्वारा इन बाल मजदूरों को मुक्त कराने के लिए गठित धावा दल कागजी फाइलों की शोभा बढ़ा रहीं है। अपने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए, कोई अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए, तो कोई अपने गरीब, बूढ़े मां-बाप की दवाई के लिए मजबूरन मजदूरी कर रहा है। कुछ बच्चे गंदगी के ढेरों में तलाशते, होटलों, ढाबों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों पर बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं, इनका छिनता बचपन 21वीं सदी के भारत की आर्थिक तरक्की के काले चेहरे को पेश करता हैं। इन बच्चों के तबाह हो रहे बचपन को देखकर आजादी के 7 दशकों बाद भी सभ्याचार समाज की उस तस्वीर पर कई सवाल खड़े होते हैं, जहां बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता है। भले ही बाल मजबूरी को रोकने के लिए सरकारों की ओर से कानून तो बनाए गए हैं। परंतु कानून की फाइलें जिला प्रशासन एवं श्रम संसाधन विभाग के दफ्तरों में ही दम घुटती रह जाती हैं।

बाल मजदूरी कराने वाले पर 50 हजार जुर्माना व दो साल तक सजा का है प्रावधान

सरकार की ओर से वर्ष 1986 के दौरान चाइल्ड लेबर एक्ट बनाकर बाल मजदूरी को अपराध माना गया है।श्रमसंसाधन विभाग द्वारा होटलरेस्टोरेंटईट भट्ठोंघरेलू नौकर एवं अन्य उद्योगों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम लेना दंडनीय अपराध है।बाल श्रमिकों से काम करवाते हुए पाए जाने पर 20 हजार से 50 हजार रुपए का जुर्माना तथा दो वर्ष की सजा का प्रावधान है। साथ बाल मजदूरी कराने वाले पर एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावे सुप्रीम कोर्ट अवमानना के तहत भी कार्रवाई करने का प्रावधान किया गया है। वहीं श्रम के दौरान किसी के द्वारा बाल श्रमिक के शोषण की जानकारी मिलने पर उसके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जाती है। लेकिन धरातल पर इन नियमों की पालना नहीं हो पा रही है।

वर्ष 2020 के बाद बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए धावा दल ने नहीं की कार्रवाई

जिले में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के होटल, व्यवसायिक प्रतिष्ठान, बैण्ड पार्टी, रेस्टुरेन्ट, ईट भट्‌ठा, मैरेज पैलेस, बस स्टैण्ड व रेलवे स्टेशनों पर बाल मजदूरी करने वाले बच्चों को मुक्त करने को लेकर श्रम संसाधन विभाग एवं जिला प्रशासन के द्वारा धावा दल गठन किया गया है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि ये धावा दल कागजी फाइलों में ही सिमट कर रह गया है। जो सरकारी सिस्टम पर बड़ा हीं यक्ष प्रश्न है, जिसे आम लोगों को समझने मे ज्यादा परेशानी नहीं होगी। जानकारी केअनुसार जिले के तत्कालील श्रम अधीक्षक रमेश कमल रत्नम ने बाल मजदूरों को मुक्त कराने के लिए धावा दल गठित कर अभियान चलाकर दर्जनों बच्चों को मुक्त कराया था। लेकिन वर्ष 2020 में तत्कालीन श्रम अधीक्षक के सेवा निवृत होने के बाद से आज तक बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। जिससे जिले में बाल मजदूरी एवं घरेलू मजदूरी कराने वाले का मनोबढ़ा हुआ है और बेरोकटोक बाल मजदूरी करा रहे है। ये दृष्य शहर में आसानी से नजर आ रहा है।

छपरा में कई सफेदपोश नेताओं का चलता है व्यवसायिक दुकान व होटल

शहर के सफेदपोश नेता तो सभ्याचार समाज की स्थापना को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते है, लेकिन इन्हीं नेताओं का शहर के प्रमुख स्थानों पर व्यवसायिक प्रतिष्ठान, होटल, रेस्टुरेन्ट है। परंतु जब बाल मजदूरी की बात आती है तो इनका सभ्याचार समाप्त हो जाता है और व्यक्तिगत लाभ की बात करने लगते है। शहर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते बाल मजदूरी से के प्रचलन से अब इन नेताओं के पोल खुलने लगा है। आश्चर्य की बात है कि  जिले के अधिकारी भी इन नेताओं के राजनीतिक रसूक के प्रभाव में आकर कार्य कर रहे है। जो बड़ा हीं यक्ष प्रश्न है, जिसे आम लोगों को समझने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी।

गैर-सरकारी संस्था व एनजीओ भी बाल मजदूरी रोकने को ले हुए निष्क्रिय

जिले में समाज कल्याण, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन के नाम पर दर्जनों एनजीओ व गैर-सरकारी संस्थाओं के संचालक अपनी दुकान चला रहे है। परंतु इन संचालकों को अपनी दुकान के अलावे समाज कल्याण, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन की बात बेमानी लगती है और सरकार की योजनाओं का लाभ उठा रहे है। जिसे जिले के अधिकारी भी ऐसे संस्थाओं के कार्यों का अवलोकन करना मुनासिब नहीं समझती है। जिससे  इन संचालकों की नजर बाल मजदूरों पर नहीं पड़ रहा है।

सोनपुर में श्रम संसाधन विभाग का लगा प्रदर्शनी, बाल मजदूरों को चिढ़ा रहा

विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र पशु मेला सोनपुर में श्रम संसाधन विभाग द्वारा मजदूरों के कल्याण के  लिए चलाये जा रहे योजनाओं को लेकर प्रदर्शनी लगाया गया है। जिसका शुभारंभ श्रम संसाधन मंत्री सुरेन्द्र राम ने किया है। लेकिन जरूरी है कि विभाग द्वारा चलाये जा रहे योजनाओं का लाभ मजदूरों तक कितना पहूंच रहा है। ताजा उदाहरण है कि जिले में बाल मजदूरी बेरोकटोक हो रहा है। बाल मजदूरों को मुक्त कराने के लिए जिलाधिकारी राजेश मीणा के निर्देश पर श्रम अधीक्षक के नेतृत्व में धावा दल का गठन किया गया है। जो कितने ईमानदारी से कार्य कर रहे है, ये आम लोगों को स्पष्ट दिख रहा है। शहर की बात करे तो मौना चौक, सरकारी बाजार, साहेबगंज, हथुआ मार्केट, थाना चौक, नगरपालिका चौक, कचहरी स्टेशन रोड, सांढ़ा, बाजार समिति, नेवाजी टोला, भगवान बाजार से लेकर गुदरी बाजार तक आसानी से होटल, ठेला, रेस्टुरेन्ट, व्यवसायिक प्रतिष्ठान, बैण्ड पार्टी, रेस्टुरेन्ट, ईट भट्‌ठा, मैरेज पैलेस, बस स्टैण्ड व रेलवे स्टेशनों बाल श्रम  आसानी से देखने को मिल जाएगा। और तो और प्रखंड मुख्यालय के बाजारों में तो बाल मजदूरी मानों संचालकों का अधिकार बन गया है।

क्या कहते है श्रम संसाधन मंत्री:

श्रम संसाधन मंत्री सुरेन्द्र राम ने कहा है कि जिले में बाल मजदूरी को मुक्त कराने के लिए धावा दल का गठन किया गया है। अभियान चलाकर होटल, रेस्टुरेन्ट, व्यवसायिक प्रतिष्ठान, बैण्ड पार्टी, रेस्टुरेन्ट, ईट भट्‌ठा, मैरेज पैलेस, बस स्टैण्ड व रेलवे स्टेशनों पर छापेमारी कर बाल श्रमिकों को मुक्त कराया जाएगा। सबको शिक्षा, सबको सम्मान के लिए जरूरी कदम उठाया जाएगा।

 

फाईल फोटो।