राष्ट्रनायक न्यूज

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जयप्रकाश विश्वविद्यालय के कुलपति ने कश्मीरा सिंह की सद्य: प्रकाशित पुस्तक “कर्ण महाकाव्य का अन्तर्लोक” का किया लोकार्पण

रंजीत भोजपुरिया। राष्ट्रनायक न्यूज।

छपरा (सारण)। कश्मीरा सिंह की सद्य: प्रकाशित पुस्तक “कर्ण महाकाव्य का अन्तर्लोक” का लोकार्पण कुलपति महोदय जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के कर कमलों द्वारा 7 दिसम्बर को विश्वविद्यालय परिसर स्थित सीनेट हॉल में किया गया। कार्यक्रम में जयप्रकाश विश्वविद्यालय के अलावा शहर के जाने माने साहित्यकार उपस्थित थे। विश्व विद्यालय के प्राध्यापकों सहित यूनिवर्सिटी के शोध छात्र छात्राओं और मीडिया कर्मियों भी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। कुलपति महोदय ने कर्ण के जीवन की मार्मिकता के साथ ही अंग क्षेत्र से अपने सम्बन्ध को उद्धृत किया। माननीय महोदय स्वयं भी अंग क्षेत्र के निवासी हैं। कुलपति महोदय ने कर्ण के जीवन प्रसंगों को उल्लेख करते हुए दिनकर की रश्मिरथी से पंक्तियों का उद्धरण भी प्रस्तुत किया। वक्ताओं ने अपने उद्बोधन में द्वापर से लेकर कलियुग तक कर्ण की उपस्थिति को अपने विचार का विषय बनाया। कार्यक्रम में सिलीगुड़ी से आने वाले मुख्य अतिथि देवेन्द्र नाथ शुक्ल ने कर्ण, कश्मीरा और कर्ण महाकाव्य का अन्तर्लोक पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनके साथ ही मुन्ना लाल प्रसाद जी ने भी छपरा और जयप्रकाश विश्वविद्यालय से अपनी सम्बद्धता स्थापित करते हुए पुस्तक प्रकाशन पर लेखिका को बधाई दी। पुस्तक की एक भूमिका लिखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अवधेश पर्व ने भी अपने उद्बोधन में कर्ण कुन्ती और कश्मीरा के अन्तर्सम्बन्धों पर प्रकाश डाला। लेखिका कश्मीरा सिंह ने कर्ण महाकाव्य के अन्तर्लोक शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट करते हुए कर्ण के जीवन से संबंधित कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। इन बिन्दुओं को बहुत साहस के साथ सामने लाया गया है। प्रतिकुलपति महोदय ने अध्यक्षीय भाषण में कर्ण को देखने के नज़रिए में बदलाव लाने की बात कही। उन्होंने कुंवारी मां होने के साथ संकृति उन्नयन के उस काल में मां की नैतिक विडंबनाओं का उल्लेख किया जिसके दो योद्धा पुत्र युद्ध क्षेत्र में एक दूसरे के विरुद्ध खड़े थे । जीत या हार की किसी भी स्थिति में अंतिम क्षति मां ही झेलने को बाध्य थी। पुस्तक सारव प्रकाशन से सुंदर आवरण पृष्ठ से सजी अच्छे बंधन में आई है । सारव प्रकाशन के संस्थापक प्रो पृथ्वी राज सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय सेवा से निवृत्त होने के बाद उन्होंने यह प्रकाशन साहित्य संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित की है और यह संस्था एक अलाभकारी संस्था के रूप लागत मूल्य पर सस्ते में पुस्तकों को प्रकाशित करती है। धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी की विभागाध्यक्ष अनीता ने किया। मनोहारी मंच संचालन विजय जी ने किया।