रुचि कमल सिंह सेंगर। राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। जिले के मांझी प्रखंड के टेघरा गांव निवासी प्रो राजगृह सिंह ने जब नंदलाल सिंह महाविद्यालय जैतपुर-दाउदपुर में हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर योगदान किया, तो उसके कुछ दिनों बाद ही एकमा बाजार में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नाम पर राहुल नगर नामक एक नया मोहल्ला बसाया और उसमें अपना निवास बनाया था। प्रोफेसर साहब के रिश्तेदार नचाप गांव निवासी व उत्क्रमित मध्य सह उच्च माध्यमिक विद्यालय गौसपुर के शिक्षक कमल कुमार सिंह ने बताया कि विधाता को भी शायद यही मंजूर था कि राहुल नगर एकमा मोहल्ले में महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जयंती व पुण्यतिथि पर कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद करने वाले शिक्षाविद व विद्वान प्रो राजगृह सिंह ने भी महापंडित राहुल सांकृत्यायन की पुण्यतिथि 14 अप्रैल को ही अंतिम सांस ली है। समाजसेवी व प्रो राजगृह सिंह के पड़ोसी भूपेंद्र प्रसाद सिंह, अजय कुमार, प्रो अजीत कुमार सिंह, डॉ सत्यदेव प्रसाद यादव, पत्रकार वीरेंद्र कुमार यादव, स्नातक एमएलसी डॉ वीरेंद्र नारायण यादव आदि बताते हैं कि ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित केदारनाथ सिंह जब भी एकमा आते तो राजगृह बाबू के घर पर इनके साथ समय जरूर बिताते। राजगृह बाबू के अनुज व प्रसिद्ध कवि गीतकार राजनाथ सिंह कहते हैं कि केदार नाथ बाबू अपने ननिहाल परसागढ़ भी होते तो राजगृह बाबू को वहां बुला लेते। इस इलाके में केदार बाबू का जब भी कोई कार्यक्रम होता, तो राजगृह बाबू उनके साथ होते थे। उसी तरह डॉ. प्रभुनाथ सिंह जब भी कोई आयोजन करते, तो उसमें राजगृह बाबू की बड़ी भूमिका होती थी। छपरा में रिबेल कोचिंग के संस्थापक विक्की आनंद, युवा पत्रकार व शिक्षक के के सिंह सेंगर राजगृह बाबू को अपना मार्गदर्शक मानते हैं। राजगृह बाबू के गांव टेघरा निवासी जय प्रकाश सिंह, आईपीएस जो वर्तमान में आईजी, पुलिस शिमला हैं, वह राजगृह बाबू को अपना आदर्श मानते हैं। राजगृह बाबू के प्रिय शिष्य डॉ. साकेत रंजन प्रवीर, शहीद स्मारक समिति दाउदपुर के सचिव सुमन गिरि, जेपी सेनानी शारदानंद सिंह, स्व नंदलाल सिंह के पुत्र जितेन्द्र सिंह, भांजे व कवि मनोज भावुक, भतीजे रविकुमार सिंह बड़े व शिक्षक नीरज कुमार सिंह भाव विह्वल होकर बताते हैं कि राजगृही बाबू के आवाज़ में जादू रहे। जब उहां के पढ़ाईं त जेकर सब्जेक्ट हिंदी ना रहे, उहो खिड़की से झांक के सुने। आखिरी वक्त में बाकिर बीमारी सर के आवाजे पर अटैक कर देलस। पर अब राजगृह बाबू की आवाज़ फिर कभी सुनाई नहीं देगी। वह चीर निद्रा में सो गये। उनके जाने से एकमा, मांझी सहित पूरे जिले के साहित्यिक जगत में शोक की लहर है।
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