लेखक: अहमद अली
पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ
पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा।
तो आज पर्दे के पीछे से गोटी खेलने वाले को लाचार होकर पर्दे से बाहर आना पडा़।
जी! मैं बिहार में हो रहे जाति जनगणना की ओर ही ईशारा कर रहा हूँ।पटना हाईकोर्ट ने हरी झंडी दे दी।
एक एन.जी.ओ. के सहारे भाजपा के भाई लोग सुप्रीम कोर्ट चले गये बिरोध करने। आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था। शायद यही भांप कर तुषार मेहता साहेब उठ खडे़ हुए और क्या कहा ? कहा कि सरकार को भी कुछ कहना है।समय दिया जाय।सरकार को कुछ कहना है,
मतलब क्या! क्या समर्थन करना है ? अगर करना था तो फिर समय लेने की आवश्यकता क्या थी ! न जाने कितने मुँह हैं इस भाजपा को। एक मुँह से आवाज आती है, हम जाति जनगणना के विरोधी नहीं है। दूसरे से आवाज आती है, इससे जातिवाद बढ़ जायेगा।तीसरे से आवाज आती है, जाति जनगणना अच्छा है पर ऐसे नहीं वैसे होनी चाहिये था। चौथे मुँह से प्रश्न बाहर आता है- इससे समस्या का समाधान हो जायेगा क्या।और न जाने क्या क्या।यानी हड्डी गले में फंस गयी है।
बोलिये ………
अब भी किसी को शक है क्या ? ये अतिपिछडा़ प्रधानमंत्री कितना अतिपिछडो़ के हितैशी हैं। सवाल है
खास कर उन दलित, पिछडा़ और अतिपिछडा़ नौजवानों से जो दशहरा और रामनवमी के मौके पर नंगी तलवार लेकर आर.एस.एस. के ऐजेंडों पर सवार होकर जूलूस निकालते हैं।मरने मारने पर उतारु हो जाते हैं।ये आर.एस.एस. और भाजपा कभी भी दलित, पिछडा़, अतिपिछडा़,आदिवासी और अल्पसंख्यक हितैषी रहा हो तो ज़रा मुझे भी बता देना।
(लेखक के अपने विचार हैं।)
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