चंदा मामा के घर भारत का विज्ञान
इसरो के वैज्ञानिकों को बहुत बहुत बधाई।आज उनकी मेहनत रंग लाई और चाँद पर चन्द्रयान-3 का सफलतापूर्वक लैंडिंग हो गया।लगभग तीन साल पहले हमारे वैज्ञानिकों ने प्रयास किया था पर किसी चूक ने सफलता से हमें महरुम कर दिया था।लेकिन देश के महान वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी और असफलता को सफलता का गाईड बना डाला।आज देश के उन 16 हजार लाजवाब वैज्ञानिकों पर गर्व करने का दिन है , जिन्होंने रात दिन अपने मेहनत के बदौलत यह मकाम आखिर कार हासिल कर लिया है।
सबसे अहम बात ये कि चन्द्र अभियान की सफलता से अब कई अंधविश्वासों से हमें मुक्ति तो मिलेगी ही वैज्ञानिक सोंच के नवीन अध्याय का आगाज भी होगा।राहू केतू की कहानी तो खैर वैज्ञानिकों ने पहले ही खत्म कर दिया था।आज के बाद ज्ञान की नयी रौशनी की उम्मीद भी की जा सकती है जो हमारी आँखों के सामने से अंधे विश्वासों को दूर कर सकेगा।
सभी धर्मों में चाँद से गहरा रिश्ता दिखाई देता है।चाँदनी रात का क्या कहना! हुस्न और इश्क का फलसफा बिना चाँद के अधूरा रह जाता है।माँ अपने बच्चे को चाँद की ओर इशारा कर चंदा मामा वाला गीत सुना कर सहलाती पुचकारती है।चाँद में जो दाग दिखाई देता है, बचपन में उस पर भी न जाने क्या क्या मिथक वचन प्रचलित है।कहने की बात नहीं कि चाँद से हर इंसान को आत्मिक लगाव सदियों से रहा है।साथ ही उत्सुकता भी , कैसा होगा यह चाँद!आज से इस उत्सुकताओं की तृप्ति की उम्मीद की जा सकेगी।
आज तो मानों इसरो के वैज्ञानिक ही चाँद पर
उतर गये हों।हाँ, एक बात गाँठ बाँध लेनी चाहिये कि वैज्ञानिकों के इस अभियान की सफलता का श्रेय किसी राजनीति को देना वैज्ञानिकों के साथ नाइंसाफी होगी।कुछ वर्षो से यह चलन चल पडा़ है। देश में कुछ भी अद्भुत हो, श्रेय का सेहरा अपने माँथे पर बाँधने के लिये बेचैनी बढ़ जाती है।यदि यह क्षुद्रता नुमाया हुई तो नाईंसाफी होगी देश के वैज्ञानिकों की लगन और दुर्दशिता के साथ।नाइंसाफी होगी उनके अथक परिश्रम और हौसलों के साथ भी।
वतन के वैज्ञानिकों को सलाम।
बहुत बहुत बधाई और अपार शुभकामनाएं ।
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