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मुहर्रम पर खास रिपोट: इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद

मुहर्रम पर खास रिपोट: इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद

  • यजीद के मुखालफत में नबी के नवासे ने दी थी छः माह के बच्चे सहित शहादत

राणा परमार अखिलेश।दिघवारा

” कत्ले-हुसैन अव्वल में मर गए यजीद हैं ।
इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद ।” किसी शायर के शेर का एक एक हुर्फ बड़ी साफगोई से फतवा देता है कि इस्लाम यानी अमनो-अमान (शांति) के दुश्मन कुका के खुद मुख्तार के सामने नबी के नवासे हजरत हुसैन ने सर कटाना मुनासिब समझा, सर झुकाना नहीं। लिहाजा, अल्लाह के हुक्म पर अमन के दुश्मनों के मुखालफत की नकीब कर दी। मैदाने- कर्बला में हजरत इमाम हुसैन रजिउल्लाह ने अपने छः महीने के लख्ते-जिगर अली असगर सहित 72 अजीजों के साथ शहादत देकर इस्लाम को महफूज कर दिया। बहरहाल, मुहर्रमे-पाक- कर्बला आज भी शहीदों की यादगार को सहेजे हुए हर कौम व हर फिरके को जुर्मो-सितम से लड़ने की ताकत अता कर रहा है।
मुहर्रम की अहमियत जर्नलिस्ट अब्बास अली के मुताबिक मुहर्रम इस्लाम के वास्ते सहर (सुबह) है। इस्लामी कैलेंडर का यह पहला महीना है और इस्लाम को मिटाने वाले यजीद की हैवानियत को रोकने के वास्ते हजरत इमाम हुसैन इब्न अली,अल अब्बास इब्न अली, हबीब इब्न अली समेत 72 आदमजातों ने अपनी शहादत देकर इस्लाम की हिफाजत की।
कहाँ है मैदाने- कर्बला? दक्षिणी बगदाद का पाक शहर कर्बला फिलवक्त इराक का मरकजी हिस्सा है। यह वही जगह है, जहाँ यजीदी लश्कर के हजारों फौजियों के तीरों, तलवारों, नेजे का मुकाबला हजरत इमाम हुसैन रजिउल्लाह ने की थी।
सुन्नी व शिया दोनों महाज के वास्ते यादगारें हैं शहीदों की शहादत यजीद जीत कर भी हार गया और हजरत इमाम हुसैन रजिउल्लाह की शहादत हर दिल अजीज हो गया। हिंदुस्तानियों में हुसैनी ब्राह्मणों का भी जिक्र है। बहरहाल, जहाँ शिया महाज मातमी जंजीर व मजलिसे-अजा,मर्शिया, नोहा के मार्फत उन्हे याद करता है वही सुन्नी महाज ताजिए के साथ। गैर-मुसलमानों में भी दिले-अजीज हजरत इमाम हुसैन हैं और हिन्दुस्तान के लोग उन्हें खिराजे-अकीदत पेश करते है। कोरोना लाॅक डाऊन में दिलों से याद व अमनो-अमान की दुआ व मालिक से फरियाद ही मुमकिन है। बहरहाल, इस बार यही मंजूरे-इलाही है।