गरखा (सारण)- होली को हर कोई अपने अपने अंदाज से मनाने में लगा हुआ है। पहले होली आपसी भाईचारा और समाजिक प्रेम को बढ़ाती थी। वहीं आज की होली पर्यावरण, सामाजिक और शारीरिक गतिविधियों को खराब कर रही है। इतना ही नहीं बल्कि सामाजिक स्तर पर अश्लीलता,फूहड़पन और मर्यादा को शर्मसार भी कर रही है। होली कहां से शुरू हुई थी और आज हम कहां पर लाकर छोड़ दिए। स्थिति इतनी भयावह हो गई कि जिसकी कल्पना भी नहीं की गई होगी। होली के नाम पर होलिका दहन के माध्यम से अपने मन में बसे हुए ईर्ष्या द्वेष और भेदभाव को मिटाने का संकल्प लिया जाता था, परंतु आज होलिका दहन के नाम पर हरे हरे पेड़ों को काटकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। वही होलिका दहन के दौरान कहीं-कहीं आग की लपटे गिराने और असामाजिक तत्व की करतूतों से कई लोगों के घर भी जल जाते हैं। होली में लोग कई प्रकार के मिष्ठान से लेकर मांसाहार तक बनाते/ खाते हैं। बाजार में मिलावटी मिठाइयां और निर्दोष जीव जंतु की हत्याओं से समाज काफी छलनी हो जाता है। मांसाहार और मिलावटी सामान खाने से सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि मन भी दूषित होती है।वही केमिकल युक्त रंग शरीर के त्वचा को रोग ग्रस्त करते हैं। जिससे आज समाज में अधिकांश लोग चर्म रोग से ग्रसित हैं। पहले होली के आध्यात्मिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक कारणों को जानने की आवश्यकता है।फिर होली मनाई जानी चाहिए ऐसे में आधी अधूरी जानकारी के कारण समाज पर्यावरण संस्कृति और मर्यादा तार तार हो रही है। देखिए होली रंगों का त्योहार है और इसे उल्लास पूर्वक मनाई है परंतु सावधानी के साथ भी ताकि आपकी किसी गलती के कारण किसी को दुख ना पहुंचे बल्कि सभी के जीवन में खुशियों के रंग भरने का कार्य करें।


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