मध्य प्रदेश की असली लड़ाई “राजा” और “महाराजा” के बीच है
अशोक दास, वरीय पत्रकार, नई दिल्ली।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बिगड़ते सियासी गणित की वजह वैसे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया दिख रहे हैं, लेकिन इसकी असली वजह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह है। दरअसल कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मिलकर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हनक कम करने पर तुले हैं। यह खेल काफी समय से चल रहा था। सिंधिया के लोकसभा चुनाव हारने और फिर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से पिछड़ने के बाद जहां दिग्विजय सिंह को मौका मिल गया। रही सही कसर मुख्यमंत्री कमलनाथ के उदासीन रवैये और सिंधिया के काम में रोड़ा अटकाने से पूरा हो गया।
सिंधिया अपने क्षेत्र में जो भी विकास कार्य करवाना चाहते, उन्हें सरकार से बहुत मदद नहीं मिल रही थी। इससे सिंधिया की साख कमजोर होती जा रही थी और यही उनकी छटपटाहट भी थी।
लेकिन इन तमाम बातों में असली खेल दिग्विजय सिंह कर रहे हैं। सिंधिया का साफ आरोप है कि कमलनाथ सरकार दिग्विजय सिंह के इशारे पर चल रही है और सरकार का रिमोट कंट्रोल दिग्गी राजा के पास है।
लेकिन दिग्विजय सिंह ‘राजा’ हैं तो सिंधिया ‘महाराजा’। दोनों के बीच सियासी खिंचतान नया नहीं है। बल्कि यह तब से है, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया जिंदा थे। सिंधिया परिवार मध्यप्रदेश की राजनीति में आम लोगों के बीच खासा लोकप्रिय है, लेकिन उसकी दुखती रग यह है कि वह मध्यप्रदेश की सत्ता पर नहीं बैठ सके हैं। तो वहीं दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन उन्हें जनता के बीच वह लोकप्रियता हासिल नहीं है जो सिंधिया परिवार को है।
दिग्विजय सिंह को यह बात हमेशा से सालती रही है।
एक वक्त में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बननी थी तो मुकाबला माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच था लेकिन अपने सियासी कौशल और जोड़-तोड़ के बूते दिग्विजय सिंह सिंधिया को पछाड़ कर सत्ता पर पहुंचने में कामयाब रहे थे। इस बार भी ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेल बिगाड़ने में दिग्विजय सिंह की भूमिका सबसे ज्यादा रही। हालिया राजनीति को देखें तो मध्यप्रदेश से राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्यसभा जाना चाहते हैं जबकि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह उन्हें रोकना चाहते हैं।
बस यही बात सिंधिया को चुभ गई है। ऐसे में अपनी सियासत बचाने खातिर सिंधिया बागी हो गए हैं। जहां तक कमलनाथ की बात है तो भले ही वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं लेकिन वह जननेता नहीं हैं। ऐसे में उन्हें सत्ता से जाने का डर हमेशा सताता रहता है और फिलहाल उन्हें सबसे बड़ी चुनौती ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिल रही है। राजनीति ऐसी चीज है जहां नेता वर्तमान के अलावा भविष्य की चालें भी चल रहा होता है और कमलनाथ लंबे समय तक मध्यप्रदेश की सत्ता में तभी बने रह सकते हैं जब सिंधिया को कमजोर कर दिया जाए।
फिलहाल कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच रस्साकस्सी जारी है और दिग्विजय सिंह अंदरखाने खुल कर खेल रहे हैं। तो इस विद्रोह के जरिए ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बता देना चाहते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार तभी चल सकती है, जब उन्हें भी पूरा सम्मान मिले।


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