दुनिया से जाने वाले जाने कहाँ जाते हैं कहाँ?, शिद्दत से याद किए गए सिने-गायक मुकेश
के के सिंह सेंगर। राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
छपरा (सारण)। पूर्वांचल की सांगीतिक व अभिनय की राजधानी दिघवारा गुरुवार को गीतकार मुकेश चंद माथुर को कैसे भूल जाए? कोरोना लाॅक डाऊन के कारण भले ही मुकेश डे या मुकेश नाइट का जलसा मुन्नकिद नहीं हो सका। मगर, स्वर्गीय मुकेश कुमार आज भी फनकरों के हर दिल अजीज हैं। बहरहाल, जिले के नामचीन रंगकर्मी महेश स्वर्णकार ने उन्ही के गाए हुए गीत ‘ दुनिया से जाने वाले जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ? गाकर सांगीतिक कार्यक्रम का विजुअल आगाज किया। इधर आर्य मंडल क्लब- नेहरू पुस्तकालय के रंगकर्मी व नगर पार्षद अशोक पासवान ‘ सुमन ‘ ने ‘ सब कुछ हमने सीखा न सीखा होशियारी’ तो नाट्य विधा पर लेखनी चलाने वाले रंगकर्मी मनोज उज्जैन ने ‘ कई बार यूँ देखा है ‘ गाकर सांगीतिक श्रद्धांजलि अर्पित की । तो उधर ठाकुर जीवन प्रकाश सिंह, पंडित शशिकांत मिश्र बुढाई बाबा, डाॅक्टर शैलेश कुमार सिंह प्रभृति कलाकारों ने विजुअल सांगीतिक श्रद्धांजलि दी। लाइफ लाइन एकेडमी के प्राचार्य मनोज उज्जैन ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित स्वर्गीय मुकेश कुमार के इतिवृत्त पर प्रकाश डाला। 22 जुलाई 1923 में अवतरित मुकेश चंद माथुर पार्श्वगायक के रूप में फिल्म ‘निर्दोष 1941’ में दस्तक दी और स्वर साधना के बदौलत गीत और संगीत की दुनिया के बादशाह बने। 27 अगस्त 1976 को अमेरिका के डेट्राल्स मिशिगन में वाणी के वरदपुत्र धराधाम से प्रस्थान कर गए।


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