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बिहार में राजनीति के मौसम वैज्ञानिक नहीं ले पा रहे है निर्णय, फार्मूला पर भी छाया बादल

बिहार में राजनीति के मौसम वैज्ञानिक नहीं ले पा रहे है निर्णय, फार्मूला पर भी छाया बादल

बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के लिए अंतिम समय चल रहा है। यानि कभी भी चुनाव आयोग अधिसूचना जारी कर सकती है। आसन्न विधानसभा चुनावी अखाड़े में राजनीतिक दलों के अधिकांश पहलवान अपने-अपने क्षेत्रों में कसरत कर रहे है। लेकिन, पिछले दो महीने से ज्यादा समय से 143 सीटो पर चुनावी तैयारी पूरी होने का दावा करने वाली लोजपा के चिराग अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाये हैं कि आखिर करना क्या है ? राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो पहली बार बिहार के मौसम वैज्ञानिक रामविलास पासवान अभी तक कोई निर्णय नहीं ले पा रहे है। 2005 में यूपीए की सरकार में सत्ता का सुख भोगनेवाले रामविलास ने बिहार में लालू के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन इसबार ऐसा संभव नहीं है। जानकारो के मुताबिक जदयू ने साफ तौर पर लोजपा के साथ जाने से मना कर दिया है। यानि लोकसभा चुनाव की तरह 17-17 सीटों पर जदयू और भाजपा और 6 सीटों पर लोजपा ने चुनाव लड़ा था। वह फार्मूला अब जदयू को मंजूर नहीं। यानि जदयू और भाजपा में बराबर-बराबर सीटों का बंटवारा होगा और भाजपा अपने कोटे से लोजपा को और जदयू अपने कोटे से हम को सीट देगी। अगर 2015 विधानसभा चुनाव की मानें तो उस समय एनडीए में शामिल लोजपा 42 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें केवल दो सीटें गोविंदगंज और लालगंज पर उसकी जीत हुई थी। शेष 40 सीटों पर उसकी हार हुई थी। केवल लालगंज की सीट पर ही लोजपा ने जदयू के प्रत्याशी को पराजित किया था, जबकि करीब दो दर्जन सीटों पर जदयू ने लोजपा के प्रत्याशी को चुनावी मात दी थी। इन दो दर्जन सीटो में आलमनगर, कल्याणपुर, चेरिया बरियारपुर, जमालपुर, सिमरी बख्तियारपुर, गौरा बौराम, बाबूबरही समेत आधा दर्जन सीटे ऐसी हैं जिसमें जदयू के जीते प्रत्याशी नीतीश कैबिनेट के मंत्री हैं, जो सीटें लोजपा को मिलना संभव नहीं है।

बहरहाल, रामविलास पासवान का गृहजिला खग़डिया का अलौली हो या फिर दरभंगा जिले का कुशेश्वरस्थान या फिर समस्तीपुर का कल्याणपुर या वारिसनगर ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां अगर लोजपा अपनी उम्मीदवारी नहीं देगी तो फिर पार्टी का अस्तित्व ही संकट में होने की आशंका है। इस सूरत में अगर ये दो दर्जन सीटें लोजपा को नहीं मिलती है तो संकट के बादल मंडराने लगेगा।

ऐसे में चिराग पैंतरा तो ले रहे, लेकिन कोई फैसला नहीं। कारण महागठबंधन में राजद की अधीनता स्वीकार कर तेजस्वी के पीछे जाना कठिन नहीं तो आसान भी नहीं। इसलिए पहली बार सत्ता में रहने के बावजूद विधानसभा चुनाव मौसम वैज्ञानिक कर संभावना फेल हो रही है और चिराग लड़खड़ा रहे है। शायद यही वजह है कि पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सूरजभान कम से कम 20 मनचाही सीटें मिलने की वकालत करते हैं तो उनके भाई नवादा के सांसद चंदन 143 सीटों पर लड़ने का दावा।

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