चहल्लुम पर याद किये गए इमामे हुसैन
रईश सुलेमान की रिर्पोट। राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
जलालपुर (सारण)। जलालपुर प्रखण्ड अंतर्गत पियानो गांव में चहल्लुम पर लोगो ने इमामे हुसैन और उनके 72 शाहिद साथियों को याद किया। गांव स्थित इमामबाड़े पर सैकड़ो लोगो ने फ़तया पढ़ कर नम आंखों से कर्बला में शहीदो को याद किया। इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का एक दिन भी चहल्लुम है। चहल्लुम मोहर्रम के चालीसवें पर इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है।करबला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन मानवता की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। हालांकि इस मातम के दिन भी मोहर्रम की तरह ताजिया जुलूस निकाला जाता है। लेकिन सरकार ने पहले ही सख्त हिदायत दे दि थी कि कोरोना की वजह से किसी भी प्रकार की धार्मिक आयोजन नही किया जाएगा। लोगो ने सरकार के द्वारा जारी गाईडलाइन्स को मानते हुए किसी प्रकार की आयोजन चहल्लुम के मौके पर नही किया। कर्बला का युद्ध दुनिया की इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस जंग में एक तरफ पैगम्बर मुहम्मद साहब के नवासे और हज़रत अली के बेटे इमामे हुसैन तो वही दूसरी ओर क्रूर शासक यजीद के सैनिकों के बीच हुआ था। इमामे हुसैन की ओर से मात्र 72 लोग थे जिसमें उनके परिवार के महिलाये और बच्चे शामिल थे वही दूसरी ओर यजीद के सेना में 22000 हज़ार सैनिक थे। यजीद की सेना ने इमामे हुसैन के परिवारवालों को कई यातनाये दी और अंततः मार डाला फिर भी इमामे हुसैन ने क्रूर शासक यजीद की अधीनता स्वीकार न कि। कर्बला की इस लड़ाई में अंततः लड़ते हुए इमामे हुसैन भी शहीद हो गए। जिस दिन शाहिद हुआ उस दिन इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मुहर्रम के 10वे दिन ताजिया निकलते है और 40वे दिन चहल्लुम को नवासा-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 हकपरस्त सैनिकों को याद किया जाता है।


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