कोरोना मौत, मातम, बेफिक्र सत्ता और बेरोजगारी
हरिभूषण। छपरा
वो तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं, आपके सामने भी घूम रही होंगी, जो पिछले तीन दिनों से खबरों और खासकर सोशल मीडिया के जरिए देश भर में फैल चुका है। जी हां, बेतहाशा अपने घरों की ओर भागते लोगों के झुण्ड की तस्वीरें। इन्हें आप गरीब कह लिजिए, मजबूर कह लिजिए, लाचार कह लिजिए, या फिर आप थोड़ा सोचने-समझने की ताकत रखते हैं तो इन्हें ‘इंसान’ मान लिजिए। आज जब ये सड़क पर हैं तो कई तरह की बहसें चल रही हैं।
बहस दो तरह की है। एक वर्ग इस पक्ष का है कि इन्हें घरों में रहना चाहिए, जैसा कि सरकार ने कहा था। जबकि दूसरा वर्ग वह है, जो इन्हें सड़कों पर देख कर चिंतित है और अपने गांव की सरहद पर लट्ठ लेकर बैठा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब लॉकडाउन की घोषणा के बाद ही पुलिस सक्रिय हो गई थी, तो आखिर इतने सारे लोग सड़कों पर कैसे आ गए। क्या यह अचानक हो गया कि लाखों लोग दिल्ली-यूपी की सीमा पर दिखने लगे। क्या ये एकदम से अपने घरों से निकल कर सीधे बार्डर पर पहुंच गए? अगर सरकार इतनी सचेत थी तो आखिर इन लोगों को सड़कों पर आने से रोका क्यों नहीं गया?
बिहार में कांग्रेस से लेकर गरीबों का मसीहा कहे जाने वाले लालू यादव की भी सरकार रही, तो झारखंड में भी कई बार आदिवासी मुख्यमंत्री रहे हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश की सत्ता पर मायावती, मुलायम और अखिलेश यादव भी बैठें। इसलिए सिर्फ कांग्रेस या भाजपा को कोसने भर से काम नहीं चलेगा। सवाल इन लोगों पर भी उठते हैं। और उनकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा बनती थी, क्योंकि शहरों से गांवों की ओर पलायन सबसे ज्याद पलायन कमजोर वर्गों के लोग ही करते हैं। लेकिन आज जिस तरह गरीब अपने गांव और शहर के बीच बिना छत और रोटी के सड़कों पर मौजूद है, उसमें इन तमाम बहुजन नेताओं पर भी उंगली उठती है।
एनएसओर के आंकड़े के मुताबिक बिहार में बेरोजगारी दर 8.3 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में तो भाजपा की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सारे रिकार्ड ही तोड़ दिए। योगी के सीएम बनने के बाद पिछले दो सालों में यहां 12.5 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं। प्रदेश के लेबर डिपार्टमेंट की ओर से संचालित ऑनलाइन पोर्टल के मुताबिक 7 फरवरी 2020 तक करीब 33.93 लाख लोग बेरोजगार रजिस्टर्ड हुए हैं। और झारखंड में हर पांच युवा में से एक युवा बेरोजगार है।
लोगों के सामने यह आपदा भले ही आचनक आई है। लेकिन केंद्र सरकार को पता था कि वह लॉक डाउन करने जा रही है।ऐसे में उसे सारे इंतजाम पहले से करने चाहिए थे। ताकि लोग घरों से न निकले। तो राज्य सरकारों को भी सोचना चाहिए कि आखिर वह आज भी अपने लोगों को स्थानीय तौर पर अपने राज्यों में ही रोजगार दिलाने में क्यों विफल रही है। सवाल के घेरे में केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक हैं। कांग्रेस से लेकर भाजपा तक है। तो सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले नेता भी। पिस रहा है तो सिर्फ गरीब।


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