जारी रहेगा काले कृषि कानूनों के विरुद्ध आन्दोलन
लेखक: अहमद अली
आज भी वार्ता बेमतलब निकली। सरकार फिर एक बार अपने निर्लज्ज अडि़यल रवैये का प्रदर्शन करती हुई नजर आई। आजादी के बाद न ऐसी सरकार गद्दीनशीन हुई भारत में, जो चन्द कार्पोरेटों की तिजोरियाँ भरने के लिये रोज अन्नदाताओं की जान ले रहीं हो, तो ऐसा आन्दोलन भी स्वतन्त्रता के बाद पहली ही है, जिसमें लाख विपत्तियों के बावजूद इतने दिन तक अडिग है, बाल्कि रोज ब रोज इसमें नयी ताजगी ओर हौसलों में इजा़फा भी हो रहा है। लाखों की संख्या में रोज रोज हजारों की संख्या जुटती जाती है। लहू जमा देने वाली सर्दी भी मानों इस आन्दोलन के आगे नतमस्तक हो गयी हो।दो दिन पहले झमाझम बारिश भी हुई, टेंट चूने लगा और कितनों में पानी भी घुस गया, फिर भी आन्दोलन का वलवला वैसे ही दिखा जैसे पानी के उपर सोडियम नाचता है।
अपने लाडले, लूटेरे कार्पोरेटों के लिये और कितने अन्न दाताओं की जान लेगी और घर उजारेगी ये सरकारी ! अब तो फिजा़ओं में ये प्रशन तैरते हुए नजर आ रहे हैं।पूरी दुनिया में थू-थू हो रही है और देश में लोकतंत्र मजाक बनता जा रहा हैं, फिर भी “शर्म उनको मगर नहीं आती “। माफीनामा को अपना दर्शन मानने वाली सरकार को शायद इसका अन्दाजा नहीं है कि ये अन्नदाता जमीन के सीने को चीर कर अन्न पैदा करना जानते हैं तो जा़लिमों के सीनों के भीतर धधकती नफरत की आग को ठंढा़ करना भी इन्हें आता है।इन्हें फूस की खून जमा देने वाली शीतलहरी रातों से जूझना आता है तो जेठ की , खून जला देने वाली चिलचिलाती धूप से मुकाबला करना भी आता है।
और अब तो मध्यप्रदेश से खबरें आ रही हैं कि वहाँ साम्प्रदायिक आग लगाने की साजिश जारी है।यानी आन्दोलन से मुँह की खाई सरकार का शुरु हो गया उनका पूराना हथकंडा, मुद्दों से ध्यान भटकाने की योजना। पूरे देश में अब ये आग लगायेगें ताकि किसान आन्दोलन से ध्यान भटक जाये। वही पूराना षड्यंत्रकारी हथियार जिसको सी़.ए.ए. के विरुद्ध चल रहे आन्दोलन में इन्होंने चलाया था। भूल रहे हैं वो कि गाँवों में बैठे हुए किसान, उनकी हर चाल को अब समझ चुके हैं। जनता जान गयी है कि वो अपने नापाक इरादों की खातिर फूट डालते हैं, झूठ बोलते हैं, तोहमत लगाते हैं तथा षड्यंत्र करना इनका फितरत है। इसीलिये आज किसान आन्दोलन के नेताओं ने दो टूक जवाब दिया, “तीनों काले कानूनों की समाप्ति एंव एम एस पी को कानूनी दर्जा मिलने तक आन्दोलन जारी रहेगा” ।
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