राष्ट्रनायक न्यूज

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64 साल की उम्र में टीबी  से जीता जंग, अब दूसरों को कर रहे हैं जागरूक

64 साल की उम्र में टीबी  से जीता जंग, अब दूसरों को कर रहे हैं जागरूक

  • परिवार समाज के लोगों ने बढ़ाया हौसला
  • आशा कार्यकर्ता की भूमिका रही अहम
  • छह माह तक नियमित दवा का सेवन कर दी टीबी को मात
  • सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर जताया भरोसा

राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।

छपरा (सारण) बालदेव राय की जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था। एक दिन खांसते वक्त अचानक उनके मुंह से खून आ गया। आनन-फानन में घरवाले नजदीक के सरकारी अस्पताल में ले गये। जहां बलगम सहित कई जांचों के बाद पता चला कि टीबी हो गया है। उसके बाद उनके मन में एक डर भी था और इससे जीतने की उम्मीद भी। नाउम्मीदी के अंधेरे में उम्मीद का एक जुगनू झिलमिलाया और बालदेव ने तय किया कि वह हारेगा नहीं। बस, इसी सकारात्मक सोच के साथ वे नियमित दवाइयां लेने लगे, जिससे सेहत में सुधार  होने लगा। छह माह तक दवा के सेवन के बाद अब वह पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं ।

अब दूसरों को कर रहे हैं जागरूक:

आमतौर पर देखा जाता है टीबी का मरीज समाज में बताना नहीं चाहता कि उसे यह बीमारी है। ठीक होने के बाद भी वह इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि लोगों को बताएं कि कभी उन्हें टीबी थी और अब वह एकदम स्वस्थ हैं। जिले में ऐसे टीबी चैंपियन भी हैं, जिन्होंने  न केवल इस बीमारी को हराया बल्कि वह अब दूसरों को भी जागरूक कर रहे हैं। हम बात कर रहे हें  हैं है सारण जिले के दरियापुर प्रखंड के दुर्बेला गांव निवासी 64 वर्षीय बालदेव राय की। जिन्होंने जिन्होने 64 वर्ष की के उम्र में टीबी जैसी से गंभीर बीमारी बिमारी को मात देकर अब गांव के अन्य लोगों को जागरूक करने का  काम कर रहे हें हैं। अब उन्होंने खुद टीबी के प्रति जागरूकता अभियान शुरू कर दिया है। वह जगह-जगह जाकर लोगों को इसके प्रति जागरूक करते हैं।

छह माह में टीबी को दी दिया मात:

बालदेव राय ने कहा “टीबी होने से पहले मुझे हेपटाइईटिस-बी हो गया था। जिसका इलाज पटना के निजी अस्पताल में कराया  रहा है। हेपटाइईटिस-बी ठीक होने के बाद मुझे टीबी हो गया। तब मैं  मैने निजी अस्पताल में नहीं जाकर सरकारी अस्पताल में गया। जहां पर मुझे बेहतर उपचार मिला। दवा के साथ-साथ प्रत्येक माह 500 रुरूपये भी मिलता रहा । छह माह तक नियमित रूप से मैने दवा का सेवन किया। जिसका परिणाम है कि आज मैं पूरी तरह से ठीक हो चुका हूं।

आशा की भूमिका रही अहम:

64 वर्षीय बालदेव राय आज टीबी को मात दे चुके हैं |से जंग जीत चुके है। लेकिन इसमें आशा कार्यकर्ता रेणु देवी की का भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता है। आशा कार्यकर्ता रेणु देवी ने अपने ना कर्तव्यों का निवर्हन करते हुए नियमित रूप से बालदेव राय के घर का दौरा करती थी  और उन्हें नियमित रूप से दवा सेवन व अन्य स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों को देती थी। जिसका पालन बालदेव राय करते थे।

परिवार समाज ने अपनाया:

बालदेव राय का कहना है, ‘टीबी बीमारी की बीमारी से वजन कम हो जाता है और रंग-रूप भी बदल जाता है। इससे हम असहज महसूस करते हैं कि लोग क्या कहेंगे? मुझे लगता है दुनिया का सबसे बड़ा रोग है ‘लोग क्या कहेंगे’। पहले इससे छुटकारा पाना होगा। ‘बीमारी में अपनों की भूमिका अहम होती है। यह वह समय होता है, जब आपको दवा के साथ अपनों के साथ की भी बेहद जरूरत होती है। मुझे हर किसी का साथ मिला। मेरे परिवार व समाज के लोगों ने मेरे साथ भेदभाव नहीं किया, बल्कि मेरा साथ दिया और हौसला बढाया कि मैं ठीक हो जाऊंगा और मैं ठीक हो भी गया। मैंने मैने चिकित्सक की के सलाह पर अपने ना खाने ना का बर्तन अलग रखा और अपने आप को भी परिवार से थोड़ा अलग रखा ताकि मेरे परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी बिमारी नहीं हो।

विभाग ने घोषित किया टीबी चैँपियन:

स्वास्थ्य विभाग के द्वारा बालदेव राय को वर्ष 2020 का टीबी चैंपियन घोषित किया गया है। नवंबर माह के अंतिम समय में वे टीबी जैसी से गंभीर बीबिमारी को मात देने में सफल रहे। अब वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इसके साथ-साथ टीबी चैंपियन की भूमिका में समाज के अन्य लोगों को जागरूक कर रहे हैँ।

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