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दिन में 3 बार रंग बदलता है यह अनोखा पहाड़, सूर्य ढलते ही हो जाता है सतरंगी!

दिन में 3 बार रंग बदलता है यह अनोखा पहाड़, सूर्य ढलते ही हो जाता है सतरंगी!

मध्यप्रदेश। आपने कई तरह के पहाड़ों के बारे सुना होगा या फिर उन्हें देखा होगा। इनमें कोई छोटे, ऊंचे, बफीर्ले तो कुछ लाल, काले और सफेद होंगे। कई पहाड़ तो ऐसे भी हैं जिन्हें देखकर आंखे दो पल के लिए खुली की खुली रह जाती है और सिर्फ मन में ये ही बात आती है कि कुदरत की कारीगरी भी क्या अद्भुत है, जिस पर भरोसा करना यकीकन काफी मुश्किल हो जाता है। वहीं, आज हम आपको जिस सतरंग पहाड के बारे में बताने जा रहे हैं उसके बारे में जानकर भी आप हैरत में पड़ने वाले हैं। यहां मौजूद रंग-बिरंगे पहाड़ की खूबसूरती के कई लोग दीवाने हैं। आइए आपको इस सतरंगी पहाड़ के बारे में बताते हैं…

जबलपुर से करीब 20 किलो मीटर की दूरी में भेड़ाघाट की वादियों में प्रवेश करते ही सतरंग पहाड़ मौजूद हैं। ये ऐसे पहाड़ हैं जो समय के साथ अपना रंग बदलते हैं। सुबह से लेकर रात तक आप इन पहाड़ों का रंग बदलता हुआ देख सकते हैं। मार्बल के बने हुए हैं पहाड़: आपको बता दें कि ये पहाड़ मार्बल के पथरों से बने हुए हैं जिन पर सूरज की धूप पड़ने पर चमक आती है। जैसे-जैसे सूरज का रंग बदलता है वो उगने के बाद ढलने लगता है तो इन पहाड़ों का रंग भी इसके मुताबिक बदलने लगता है। इस तरह से इन पहाड़ों का रंग हरा, लाल, नीला समेत सतरंगी दिखता है। वहीं, चंद्रमा की रोशनी से पहाड़ में कई तरह के रंगों का बदलाव होता है। जबकि घने अंधेरे होने पर भी ये पहाड़ काफी चमकदार नजर आते है और ये अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

भूल भुलैया: आपको बता दें कि ये जगह घूमने के लिए काफी रोमांचक है, क्योंकि यहां सैर करने के दौरान रास्ता भूलने का भी खतरा रहता है। यहां पर एक ऐसी जगह भी है जहां आपको पहुंचने के लिए नांव का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन यहां पहुंचने के बाद वापसी का रस्ता समझ नहीं आता है। यहां से दूर-दूर तक आपको केवल मार्बल के पहाड़ और पानी ही नजर आएगा। इसलिए ये जगह भूल भुलैया के नाम से जानी जाती है। यहां पहुंचने के लिए आप पारंगत नाविक से जा सकते हैं।

बंदर कूदनी: ऐसा कहा जाता है कि यहां कभी बड़ी संख्या में बंदर रहते थे। उनके लिए एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक पहुंचना काफी आसान होता था। ऐसा भी कहा जाता है कि उस दौरान बंदर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी आतंक मचाते थे, ऐसे में जब लोग उनके पीछे जाते थे तो वो पहाड़ से कूदकर नर्मदा के दूसरी तरफ आ जाते थे। इसलिए इन्हें बंदर कूदनी नाम से जाना जाता है।

लेटे हुए डायनासोर: दूधिया वॉटर फॉल के बीच में स्थित एक चट्टान लेटे हुए डायनासोर की तरह नजर आता है। इसके आकार को देखकर कई वर्ष पूर्व वैज्ञानिकों ने इसकी खोज भी की थी कि कहीं ये डायनासोर का जीवाश्म तो नहीं। लेकिन शोध करने के बाद ये चट्टान ही जाना गया। जानकारी के लिए बता दें कि नर्मदा के नजदीक डायनासोर अपना घोंसला बनाकर रहते थे। इनकी मौजूदगी का भी यहां साक्ष्य पाया गया हैं, इसी के बाद इस चट्टान पर शोध किया गया।
सिमरन सिंह

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