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किसान आंदोलन संबंधी विदेशी लड़कियों के ट्वीट के पीछे कौन?

किसान आंदोलन संबंधी विदेशी लड़कियों के ट्वीट के पीछे कौन?

दिल्ली। एजेंसी। निश्चय ही ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा गया। पॉप गायिका रिहाना, पूर्व पोर्न कलाकार मिया खलीफा और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के किसान आंदोलन संबंधी ट्वीटों के विरुद्ध सरकार के अलावा फिल्मी हस्तियां, अन्य क्षेत्र के नामचीन लोगों सहित मीडिया तथा सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों ने जोरदार प्रतिक्रिया व्यक्त की है। हालांकि इसमें भी दो पक्ष हैं। एक पक्ष उनका समर्थन कर रहा है, तो दूसरे का मानना है कि यह भारत का आंतरिक मामला है। हमें इन दोनों खेमों से बाहर निकल कर इस पूरे प्रकरण पर विचार करना चाहिए। किसी भी देश में आंदोलन होता है, तो कहीं से भी लोग प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। प्रतिक्रियाएं सही हैं, गलत हैं, यह हमारे आपके नजरिये पर निर्भर करता है। यह विकसित सूचना संचार वाले वर्तमान विश्व की सच्चाई है। कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन जब से शुरू हुआ, तब से विदेशों से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री ने आंदोलन पर सरकार के रवैये की आलोचना की। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और कई अन्य देशों के कुछ सांसदों ने भी किसान आंदोलन के मुद्दे उठाए। यह बात अलग है कि किसी देश की सरकार ने कृषि कानूनों की आलोचना नहीं की। सरकार की ओर से उन सबका उत्तर दिया गया, आम भारतीयों ने भी अपनी प्रतिक्रियाएं दीं। लेकिन वर्तमान स्थिति अलग है। इनकी भाषा और विषय वस्तु अलग हैं। ये तीनों लड़कियां न आर्थिक विशेषज्ञ हैं, न कृषि विशेषज्ञ।

इन्होंने तीनों कृषि कानूनों का ठीक प्रकार से अध्ययन किया होगा, यह भी संभव नहीं। बावजूद अगर वे कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन को विश्वव्यापी बनाने, उसमें लोगों को शिरकत करने के लिए प्रेरित करने और पूरी कार्ययोजना देने की सीमा तक जा रही हैं, तो मानना पड़ेगा कि यह सामान्य घटना नहीं है। रिहाना ने एक लेख को ट्वीट करते हुए लिखा कि हम इसकी चर्चा क्यों नहीं कर रहे हैं। ग्रेटा थनबर्ग ने एक गूगल डॉक्यूमेंट फाइल शेयर की। इसमें किसान आंदोलन के समर्थन में सोशल मीडिया सहित अभियानों का पूरा विवरण था। इस फाइल को शेयर करते हुए ग्रेटा ने टूलकिट शब्द प्रयोग किया। ग्रेटा ने ट्वीट में भाजपा को फासीवादी पार्टी कह दिया। ऐसी भाषा कोई विदेशी हस्ती प्रयोग करे, तो यह संदेह स्वाभाविक है कि निश्चित रूप से कुछ लोग, या कुछ समूह इसके पीछे हैं। इस फाइल में मुख्यत: पांच बातें लिखी गई थीं: धरातल पर हो रहे प्रदर्शन में हिस्सा लेने पहुंचें, किसान आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाने वाली तस्वीरें 25 जनवरी तक ई-मेल करें, इसके अलावा डिजिटल स्ट्राइक आस्क इंडिया ह्वाई के साथ फोटो/वीडियो मैसेज 26 जनवरी तक ट्विटर पर पोस्ट कर दिए जाएं, चार-पांच फरवरी को ट्विटर पर तूफान, यानी किसान आंदोलन से जुड़ी चीजों, हैशटैग और तस्वीरों को ट्रेंड कराने के लिए तस्वीरें, वीडियो मैसेज पांच फरवरी तक भेज दिए जाएं और आखिरी दिन छह फरवरी का होगा।

हालांकि थनबर्ग ने यह टूलकिट बाद में हटा ली थी। प्रश्न है कि इस तरह विरोध की पूरी योजना बनाई किन लोगों ने? दिल्ली पुलिस ने किसान आंदोलन के संदर्भ में सोशल मीडिया की मॉनिटरिंग करते पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन को पकड़ा था, यह टूलिकट तैयार करने में उसकी भूमिका को लेकर सवाल हैं। कृषि कानून हमारा आंतरिक मामला है। सरकार से हमारे मतभेद हो सकते हैं, पर विदेशों से अगर निहित स्वार्थी तत्व या भारत के ही वे लोग, जो निहित स्वार्थों के कारण ऐसी छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत में एक ऐसी सरकार है, जो अपने विरोधियों को सहन नहीं करती, एक ही मजहब को प्रश्रय देती है, केवल पूंजीपतियों को प्रोत्साहित करती है, किसानों, गरीबों, मजदूरों की विरोधी है, तो इसका जोरदार प्रतिकार करना ही होगा। इस प्रकरण ने बड़े वर्ग के अंदर यह चेतना पैदा कर दी है। हमारा संघ, भाजपा, नरेंद्र मोदी, अमित शाह से मतभेद हो सकता है, पर हम सब भारतीय हैं। हमारे विरोध की एक सीमा और मयार्दा होगी। इन विदेशी हस्तियों को यह बताने की जरूरत है कि वे हमारी लड़ाई हमारे तक रहने दें।