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उत्तराखंड: ग्लेशियर फटने से पहले मछलियों में देखने को मिली थी असामान्य हलचल, जानिए कारण

उत्तराखंड: ग्लेशियर फटने से पहले मछलियों में देखने को मिली थी असामान्य हलचल, जानिए कारण

नई दिल्ली, (एजेंसी)। उत्तराखंड के चमोली जिले की ऋषिगंगा घाटी में रविवार को अचानक आई विकराल बाढ़ से अब तक 32 लोगों की मौत हो गई है जबकि 170 से ज्यादा लापता हैं। इन सबके बीच ग्लेशियर फटने से पहले मछलियों में एक अलग और अजीब व्यवहार देखने को मिला। दरअसल, सुबह 9:00 बजे के आसपास अलकनंदा नदी में मछलियां इकट्ठा हो गई। आलम यह रहा कि इस नजारे को देखते हुए ग्रामीण बाल्टी और अन्य बर्तनों के जरिए मछलियां पकड़ने लगे। अंग्रेजी अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मछलियां पकड़ने के लिए ग्रामीणों को ना तो छड़ी का इस्तेमाल करना पड़ा और ना ही जाल का। लेकिन किसी को आने वाले आपदा के बारे में नहीं पता था। अब जब उस दृश्य को याद किया जा रहा है तो यह माना जा रहा है कि यह मछलियां शायद उस त्रासदी की अग्रदूत थी।

ग्लेशियर फटने से सबसे ज्यादा नुकसान रैनी गांव को हुआ है जो धौलीगंगा के किनारे हैं। धौलीगंगा अलकनंदा की सहायक नदी है। रैनी में नंदप्रयाग, लंगासू, कर्णप्रयाग जैसे छोटी नदियां भी हैं। इन नदियों में पानी भरे होने के बावजूद असंख्य और विभिन्न प्रकार की मछलियां किनारे पर ही तैर रही थी। स्थानीय लोगों के लिए यह असामान्य था क्योंकि यह मछलियां हमेशा नदियों के बीच धारा में तैरती रही हैं। आसपास के गांव से दर्जनों लोग इस असामान्य गतिविधि को देखने के लिए पहुंचे। आमतौर पर खाली हाथ मछली पकड़ना आसान नहीं होता है। लेकिन उस दिन यह करना काफी आसान था। बहुत सारे लोग अपने घरों पर मछली पकड़ कर लाए।

अब इस पर लेकर विशेषज्ञ मंथन कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे का कारण कंपन हो सकता है जोकि आपदा के आने का संकेत था। इस संकेत को मछलियों ने भाप लिया होगा। मछलियों के पास एक पाश्व रेखा अंग होता है। यह रेखा उन्हें पानी में थोड़ी सी भी हलचल और दबाव में परिवर्तन का पता लगाने में मदद करता है। संभव है कि इसी कारण मछलियों को यह पूवार्भास हो गया होगा कि कुछ होने वाला है, तभी वे किनारों पर तैरने लगी होंगी। इसके अलावा यह भी दावा किया जा रहा है कि हो सकता है कि कुछ बिजली के स्रोत पानी में गिर गए होंगे और बिजली के झटके आ रहे होंगे। इसी के कारण मछलियां किनारे तैर रही होंगी। एक वरिष्ठ वन्य जीव वैज्ञानिक ने कहा कि यही कारण है कि हम हमेशा नदियों के किनारे डायनामाइट ब्लास्टिंग नहीं करने की बात करते हैं।

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