राष्ट्रनायक न्यूज। लेखक: अहमद अली
दिशा रवि की जमानत पर सहज ही वो पंक्तियां दिमाग में ताजा हो जाती हैं – “सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं ” पराजय हमेशा असत्य की ही होती है, चाहे उसमें वर्षों का फासला भी तय करना क्यों न परे। इसी सत्य को दिशा ने भी दुहराया था कि, किसान आन्दोलन का समर्थन अगर देशद्रोह है तो मेरे लिये ये जेल ही ठीक है। आज पूरा भारत जान चुका है कि किसान आन्दोलन , आन्दोलनकारियों तथा समर्थकों को सत्ता पक्ष की ओर से कितनी गालियाँ दी जा रही हैं या दी गयी हैं और प्रताड़ित की जा रही है। इसलिये दिशा की गिरफ्तारी कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं थी बल्कि एक जानकारी थी। वर्तमान सत्ता के विषय में, कि वो बेशर्मी, अलोकतांत्रिक, असत्यता और अनैतिकता की खाई में किस प्रकार डूब चूकी है।
दिशा की जमानत को किस विशेषण से अलंकृत किया जाय, यह तो हर कोई अपने अपने हिसाब से कर ही रहा है जो चलता रहेगा। पर यह समझने में किसी को कठिनाई नहीं होनी चाहिये कि उस 21 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता की गिरफ्तारी असल में असहमति की जनतांत्रिक आवाज और विरोध का लोकतांत्रिक तरीके पर खुला प्रहार था। अब फिर एक बार दरबार परस्त मिडिया का बदनुमा चेहरे से नकाब हट गया, जो अपने ऐजेंडे के मुताबिक रात-दिन देशद्रोह का सर्टिफिकेट बाँट रहे थे। दूसरी तरफ यह जमानत उन तमाम लोगों की भावनाओं को सहलाने वाला भी है, जो इस वर्तमान सरकार की निरंकुशता के विरुद्ध खडे़ हो कर उक्त गिरफ्तारी को फर्जी राष्ट्रवाद द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते हुए मुखर या चिन्तित थे।
जमानत तो मिलना ही था क्योंकि सच्चाई बनावटी वसूलों से ढ़की नहीं जा सकती है। पटियाला हाउस कोर्ट के सम्मानित सब जज माननीय धर्मेेन्द्र राणा द्वारा सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियां वर्तमान सरकार, उसके नेता, चाटूकार प्रचारतंत्र तथा गृह मंत्रालय को आईना दिखाने वाली है, जो अपने उस बुजदिल कारगुजारियों पर गदगद थे। जज की बेबाक एवं विद्वतापूर्ण टिप्पणियां, देश के जनतंत्र और न्यायिक व्यवस्था के लिये बेहद अहम और काबिले एहतराम तो है ही, नागरिक अधिकारों के प्रति चिन्तित नागरिकों के लिये हौसला अफजाई भी है।
आईये ज़रा गौर फरमाएँ
- हर नागरिक, सरकार के अंतरात्मा के चौकीदार होते हैं।उन्हें केवल इसीलिये जेल में नहीं डाला जा सकता क्योंकि वो सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं।
- राष्ट्रद्रोह का आरोप केवल इसीलिये नहीं लगाया जा सकता क्योंकि वो सरकार के समर्थक नहीं हैं।
- वैसे नागरिक जो आवाज उठाते हैं उनसे बेहतर हैं जो उदासीन हैं।
- संविधान हमें बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी देता है। अहानीकारक टौलकिट बनाना कोई अपराध नहीं है।
- सरकार के ज़ख्मी गुरुर पर राज द्रोह के मुकदमें थोपे नहीं जा सकते।
- विद्वान जज ने हमारी 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता का मिसाल देते हुए कहा कि हमारी सभ्यता कभी भी अलग अलग विचारों का मुखालिफ नहीं रही।इनके अलावा भी कई टिप्पणियां हैं जो अपने आप में आज की तारीकी में रौशनी के समान है।
- सोंचने की बात यह है कि आज राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रवाद तथा देशद्रोह की परिभाषा ही बदल दी गयी है। हर सत्ता का विरोधी देशद्रोह की पंक्ति में खडा़ कर दिया जाता है, भले उसका विरोध कितना भी तर्क संगत या समाजपक्षी ही क्यों न हो। वहीं हर उस सत्ता- पक्षधर का अपराध चाहे कितना भी गम्भीर या समाज विरोधी हो, फिर भी सरकार की नज़र में वह देश प्रेमी ही रहता है।
- दिल्ली पुलिस जो सीधे गृह मंत्रालय के अधीन है, उसकी कार्रवाईयाँ आज अक्सर उसी किस्म की देखी जा रही है जैसा दिशा के साथ।गनीमत है कि दिशा रवि को सात दिन ही में न्याय मिल गया।
- कई लेखक, कवि, साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता आज भी जेलों में न्याय का इन्तजार कर रहे हैं।मेरी सहमति तो इसमें है कि अनर्गल आरोप लगाने वाली ऐजेंसियों पर भी मुकदमें चलने चाहिये।ऐसी आवाज के बिना निर्दोषों को क्या इंसाफ नसीब होगा ?
- यह सावाल है , आप जरुर सोंचें।क्योंकि दिशा रवि आखिरी नहीं है और भी कई होंगें निशाने पर।
वतन की आबरु को गर बचाना है, निकल आओ ।
तेरी बर्बादियों का दौर है, अब भी सम्भल जाओ ।।
(लेखक के अपने विचार है।)


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