नई दिल्ली, (एजेंसी)। फास्टैग को अनिवार्य बनाने के केंद्र सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमणियन की तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय में जाएं। इसके साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी। वहीं दूसरी तरफ नेशनल हाईवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया (एनएचएआई) ने शुक्रवार को कहा कि फास्टैग के जरिए उसका दैनिक टोल संग्रह लगभग 104 करोड़ रुपये हो गया है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने कहा है कि सरकार ने 15 फरवरी की मध्य रात्रि से फास्टैग को अनिवार्य बना दिया है। जिस वाहन में फास्टैग नहीं लगा है, उसे देश भर के इलेक्ट्रॉनिक टोल प्लाजा पर दोगुना भुगतान करना होगा। शुल्क के अनिवार्य भुगतान के बाद, फास्टैग के माध्यम से टोल संग्रह में लगातार वृद्धि देखी गई है। एनएचएआई ने एक बयान में कहा कि इस सप्ताह के दौरान टोल संग्रह 100 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। 25 फरवरी को फास्टैग के माध्यम से टोल संग्रह 64.5 लाख से अधिक दैनिक लेनदेन के साथ 103.94 करोड़ रुपये के उच्चतम निशान तक पहुंच गया है।
पीठ ने कहा, याचिकाकर्ता की तरफ से पेश होने वाला वकील दिल्ली उच्च न्यायालय में जाने की छूट के साथ इस याचिका को वापस लेने का आग्रह करता है। अनुरोध को मंजूर किया जाता है। इसी मुताबिक रिट याचिका खारिज की जाती है। पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के वकील ध्रुव टम्टा के इस तर्क को स्वीकार नहीं करता है कि यह पूरे देश का मामला है। उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में जाने के लिए कहा। अदालत राजेश कुमार की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें फास्टैग को आवश्यक करने की केंद्र सरकार की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई।
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